जबलपुर। वन्यजीवों के प्राकृतिक निवास में लगातार बढ़ती इंसानी दखल की वजह से वन्यजीवों का प्राकृतिक निवास कम होता चला जा रहा है. ऐसी विपरीत परिस्थितियों में जबलपुर की परियट नदी में मगरमच्छों ने अपनी संख्या बढ़ाई है. यहां आसपास के लोग भी मगरमच्छों के साथ रहना सीख गए हैं. इसलिए गांव वाले इन वन्य प्राणियों को नुकसान नहीं पहुंचाते, यदि कभी कोई मगरमच्छ गांव में घुस भी जाता है, तो उसे पकड़ कर वापस नदी में छोड़ दिया जाता है. इसी क्षेत्र के वन्य प्राणी संरक्षक शरदेंदु नाथ बताते हैं कि परियट नदी में 1000 से ज्यादा मगरमच्छ हैं.
जबलपुर की परियट नदी
यह जबलपुर की एक स्थानीय नदी है. जो जबलपुर के कुंडम ब्लॉक से निकलती है. अपने उद्गम से लगभग 5 किलोमीटर बाद इसका स्वरूप कुछ बड़ा हो जाता है. यहां नगर निगम ने पानी का एक जलाशय बनाया है. जिसे परियट टैक के नाम से जानते हैं. इस बांध से शुरू होकर अगले लगभग 15 किलोमीटर की लंबाई में परियट नदी में अच्छी गहराई और चौड़ाई है. इसके एक और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की जमीन है. इसलिए इस लंबाई में जो जंगल है, उसमें किसी की आवक जावक नहीं है. इसी की वजह से यहां मगरमच्छों ने अपना निवास बना लिया है.
1995 में सर्वे के दौरान पहली बार दिखा था मगरमच्छ
इसी क्षेत्र में रहने वाले शरदेन्दु नाथ हर साल दो दर्जन से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू करते हैं. वह इसी इलाके में पले-बढ़ें हैं, इसलिए उन्हें मगरमच्छों के क्रियाकलाप के बारे में अच्छी जानकारी है. वह बताते हैं कि 1995 में इस इलाके में पानी की कमी हुई, तब परियट नदी के पानी का सर्वे हुआ. इसी सर्वे के दौरान पहली बार लोगों की नजर मगरमच्छों पर पड़ी थी. उसके बाद से लोग चौकस हो गए और इस इलाके में धीरे-धीरे मगरमच्छों की संख्या बढ़ने लगी. शरदेंदु बताते हैं कि वर्तमान समय में नदी में लगभग 1000 से ज्यादा छोटे और बड़े मगरमच्छ हैं. कभी-कभी यह नदी से निकलकर आसपास के खेतों में घुस जाते हैं. वहीं कभी कभार गांव में भी इनको देखा गया है. 2 दिन पहले ही पास के एक गांव में एक गौशाला में मगरमच्छ आ गया था. गांव के लोगों ने ही पकड़कर उसे वापस नदी में छोड़ दिया.
बस्तियों में पहुंच जाते हैं मगरमच्छ
शरदेंदु नाथ के पास मगरमच्छ को पकड़ने की ट्रेनिंग है. उन्होंने बताया कि यूएनडीपी की तरफ से इन मगरमच्छों के संरक्षण के लिए एक बार लगभग 50 लाख रुपए आए थे. इस नदी में लगभग 12 किलोमीटर लंबे इलाके में तार बाउंड्री की गई थी. हालांकि यह काफी दिन पुरानी बात हो गई है. तार बाउंड्री कई जगह से टूट गई. इसलिए मगरमच्छ नदी से निकलकर आसपास के खेतों और बस्तियों में आ जाते हैं.
बढ़ती जा रही मगरमच्छों की संख्या
इसी गांव के रहने वाले राजा रजक ने बताया कि 'अब यहां पर्यटन के अलावा कुछ तालाबों और बरगी बांध के नहर में भी मगरमच्छ पहुंच गए हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि गांव वालों का कहना है कि बीते 30 सालों से मगरमच्छ यहां रह रहे हैं, लेकिन अब तक किसी मगरमच्छ ने किसी आदमी पर जानलेवा हमला नहीं किया. केवल एक घटना हुई थी, जिसमें नदी में कपड़े धो रहे एक युवक के पैर को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था.
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इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र बनाने की मांग
शरदेंदु नाथ का कहना है कि 'इस क्षेत्र को मगरमच्छों के प्राकृतिक निवास के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए. मगरमच्छों की बढ़ती तादाद को देखते हुए इस इलाके में पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि बाहर से आने वाले लोग इन मगरमच्छों को उनके प्राकृतिक निवास में देख सकें. बता दें वन्यजीवों के लिए प्राकृतिक निवास लगातार काम होते जा रहे हैं और इंसानी दखल बढ़ता जा रहा है. ऐसी स्थिति में जबलपुर की पर्यटन नीति एक अनूठा उदाहरण पेश कर रही है. जहां अनजाने में ही एक वन्य प्राणी को उसका प्राकृतिक निवास मिल गया है. अच्छी बात यह है कि आसपास के लोग इस वन्य जीव को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं और यह अपनी संख्या बढ़ा रहा है. यदि सरकार का थोड़ा भी प्रयास यहां हो जाता है, तो इस क्षेत्र में क्रोकोडाइल सेंचुरी विकसित की जा सकती है.