भोपाल: इसरो अंतरिक्ष में भारत का पहना मानव यान भेजने की तैयारी कर रहा है. इसके लिए एस्ट्रोनाट को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है. इसको लेकर और क्या खास तैयारी चल रही है, यह जानने के लिए ईटीवी भारत ने चंद्रयान की टीम का हिस्सा रहीं इसरो की सीनियर साइंटिस्ट अनुजा शर्मा से बात की. वो भोपाल के निजी कॉलेज में नेशनल स्पेस डे के अवसर पर एक कार्यक्रम में शामिल होने आई थीं. इस दौरान उन्होंने चंद्रयान के एक साल पूरा होने पर देश में हो रहे आयोजन और इसरो द्वारा किए जा रहे कार्यों से मानव जीवन पर होने वाले बदलावों को लेकर चर्चा की.
नाविक से अमेरिका के जीपीएस की निर्भरता होगी कम
अनुजा शर्मा ने बताया कि 'नाविक इसरो द्वारा विकसित एक एपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली है. जो आन वाले समय में अमेरिकी जीपीएस पर निर्भरता काफी कम कर देगा. वहीं इसके उपयोग से मानव जीवन पर भी बहुत बदलाव होंगे. मसलन अभी जोमैटो और स्विगी जैसे फूड डिलीवरी और ओला-उबर जैसी सर्विसेज नेविगेशन के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करती है. नाविक इन कंपनियों के लिए नेविगेशन सब्सक्रिप्शन कॉस्ट को कम कर सकता है और एक्यूरेसी बढ़ा सकता है. इंटरनेशनल बॉर्डर सिक्योरिटी ज्यादा बेहतर होगी. चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस, सेना और हवाई व जल परिवहन को बेहतर नेविगेशन सिक्योरिटी मिलेगी. यह भारत की क्षेत्रीय सीमा से 1500 किलोमीटर दूर तक उनकी गतिविधियों को ट्रैक करने में सक्षम है.
रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट से मिलेगी सटीक जानकारी
बता दें कि अनुजा शर्मा इसरो में माइक्रोवेव डेटा क्वालिटी एव्यूलेशन और कैलिवेशन विंग की प्रमुख हैं. उन्होंने बताया कि इसरो नासा के साथ मिलकर नासा इसरो सार प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. इससे हम सैटेलाइट के जरिए भौगोलिक गतिविधियों का समय से पहले ही पता लगा सकते हैं. इसरो के रिमोट सेंसिग सैटेलाइट 36 हजार किलोमीटर की उंचाई से भी धरती की सटीक जानकारी देने में सक्षम है. इसकी टाउन प्लानिंग के लिए बहुत जरुरत है. सैटेलाइट के जरिए हम सड़क, घर, मैदान और धरती के किसी भी हिस्से की स्पष्ट तस्वीर ले सकते हैं.
समुद्र में किस जगह मछली इसकी भी सैटेलाइट से मिल रही जानकारी
इसरो के पास ऐसा सैटेलाइट भी है. जो बता सकता है, कि समुद्र में किस जगह मछलियां अधिक है. जिससे मछुआरों को मछली पकड़ने में मदद मिले. इसके साथ मिट्टी के माश्चराइजर और भूकंप, मॉनसून, चक्रवात, भू स्खलन आदि की जानकारी आसानी से मिल जाती है. अनुजा शर्मा ने बताया कि अभी देश में नेशनल स्पेश-डे को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसमें हम इसरो द्वारा किए जा रहे कार्यों से मानव जीवन पर पड़ने वाले असर और आंतरिक्ष घटनाओं को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. इसके प्रचार, कार्यशाला और अन्य कार्यक्रमों में होने वाले खर्च को भी इसरो ही वहन कर रहा है.
मानव यान के लिए कैप्सूल का एक्सपेरिमेंट पूरा
अनुजा शर्मा ने बताया कि एयरफोर्स के 4 एस्ट्रोनाट को रुस में आंतरिक्ष यान में रहने की ट्रेनिंग दी गई है. अब उनको देश में प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिस मानव यान को आंतरिक्ष में भेजा जाएगा, उसके रिकवरी वाले कैप्सूल का एक्सपेरिमेंट हो चुका है. संभवतः साल 2025 तक आंतरिक्ष में भारत का पहना मानव यान पहुंच सकता है. इससे पहले रोबोट व्योम को स्पेस में भेजा जाएगा. साल 2035 तक भारत आंतरिक्ष में खुद का स्पेस स्टेशन डेवलप करेगा.