पटना : आज अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है. दुनिया भर में हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. यह वह दिन है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में मानवाधिकारों की यूडीएचआर को अपनाया था. देश में मानवाधिकार से जुड़े हुए मामलों को देखने के लिए अनेक संस्थाएं कम कर रही है. इन्हीं संस्थानों में एक संस्था है ह्यूमन राइट अंब्रेला फाउंडेशन. इसके फाउंडर बिहार के विशाल रंजन दफ्तुआर हैं.
अंतर्राष्ट्रीय शख्सियत हैं विशाल दफ्तुआर : किसी भी जरूरतमंद की एक गुहार पर दुनिया के किसी भी कोने में त्वरित, सफल और सार्थक पहल करते हैं मशहूर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर. वे वैश्विक स्तर की संस्था ह्युमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन- एचआरयूएफ के फाउंडर चेयरमैन भी हैं जिसकी स्थापना तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की प्रेरणा से की गई थी. यह दुनिया के प्रमुख ह्युमन राइट्स औरगेनाईजेशन में से एक है.
कौन हैं विशाल रंजन दफ्तुआर : विशाल रंजन दफ्तुआर मानवाधिकार के क्षेत्र में आम लोगों के लिए हमेशा खड़े रहने वाले शख्स के रूप में अपनी पहचान बनाई है. बिहार के गया के रहने वाले विशाल रंजन दफ्तुआर पिछले लगभग तीन दशकों से मानवाधिकार को लेकर आम लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने अपना सारा जीवन मानवाधिकार संरक्षण को समर्पित कर दिया है.
मिशन ह्यूमन राइट विथ ह्यूमन ड्यूटी : विशाल रंजन दफ्तुआर ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि उन्होंने अपने जिंदगी का लक्ष्य वैसे लोगों की लड़ाई को समर्पित किया है, जिसकी लड़ाई लड़ने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है. उन्होंने कहा कि उनके जीवन का मूल मंत्र ही ह्यूमन राइट विद ह्यूमेन ड्यूटी है. उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनको दूसरों की पीड़ा का एहसास होता था. यही कारण है कि शिव भक्त होने के कारण उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी वंचितों और शोषितों की लड़ाई के नाम कर दिया. जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे उनका दूसरों की पीड़ा के प्रति उनका काम बढ़ता गया.
पूर्व राष्ट्रपति की प्रेरणा से एचआरयूएफ का गठन : ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों की बात साझा की. उन्होंने बताया कि अपने जनसेवा के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिये विशाल दफ्तुआर ने जून 2019 में उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की प्रेरणा से वैश्विक स्तर की नॉट फार प्रॉफिट औरगेनाईजेशन ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन- एचआरयूएफ की स्थापना की. वे इसके फाउंडर चेयरमैन हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्था बनाने की चाहत : विशाल दफ्तुआर ने ईटीवी भारत से फोन पर हुई बातचीत के क्रम में कहा कि मानवाधिकार के क्षेत्र में इंग्लैंड का एमनेस्टी इंटरनेशनल और अमरीका के ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाओं का बोलवाला है. बिहार के रहने वाले विशाल दफ्तुआर ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला को एक भारतीय संस्था के तौर पर विश्व विख्यात बनाना चाहते हैं. इसकी स्थापना के महज चंद सालों के अंदर इनके नेतृत्व में ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन-एचआरयूएफ ने लगातार कई ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा किया.
"एक भारतीय के तौर पर ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला को अंतरराष्ट्रीय संस्था बनाने की चाहत है. महज कुछ सालों में इस संस्था ने कई ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा किया है."- विशाल रंजन दफ्तुआर, फाउंडर, ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला
विशाल दफ्तुआर के प्रमुख मिशन : दरभंगा के सतीश कुमार की लड़ाई : इस मिशन की पहली शुरुआत बिहार के दरभंगा के अत्यंत गरीब और मानसिक तौर पर बीमार सतीश चौधरी की बांग्लादेश की जेल से 11 सालों बाद 12 सितंबर, 2019 को उसके वतन वापसी से होती है. इस मार्मिक मामले में उसका परिवार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार और दूसरे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर थक चुका था और उम्मीदें छोड़ दी थी. विशाल दफ्तुआर ने इस मामले पर लड़ाई शुरू की. अंतरराष्ट्रीय बार्डर पर बिहार पुलिस की गैरमौजूदगी में ही उन्होंने सतीश को रिहा करवाया.
यूपी के अनिल कुमार सिंह की लड़ाई : इसके तुरंत बाद उन्होंने बलिया,उत्तरप्रदेश के अनिल कुमार सिंह की 5 दिसंबर को बांग्लादेश की जेल से वतन वापसी करवाई. उत्तर प्रदेश बलिया के रहने वाले अनिल कुमार सिंह कई वर्षों से बांग्लादेश की जेल में बंद थे. अनिल का परिवार के लोग उत्तर प्रदेश सरकार एवं केंद्र सरकार के सामने के बार फरियाद लगा चुके थे. अनिल सिंह की लड़ाई भी विशाल दफ्तुआर ने लड़ी. जिसमें उनको बड़ी कामयाबी हासिल हुई.
बांग्लादेश की महिला की वतन वापसी : वर्ष 2020 के अक्टूबर माह में बिहार के शेल्टर होम में पिछले पाँच सालों से रह रही बांग्लादेशी महिला सवेरा बेगम की इन्होंने ईद के समय वतनवापसी करवाने में विशाल रंजन दफ्तुआर ने उनकी लड़ाई को लड़ा. बांग्लादेश की महिला की लड़ाई को याद करते हुए ईटीवी भारत से बातचीत में विशाल दफ्तुआर ने एक रोचक जानकारी दी. उन्होंने कहा कि जिस दिन सवेरा बेगम की रिहाई हुई थी उसी दिन दशहरा की नवमी तिथि भी थी. उन्होंने एक मुस्लिम बहन को उसके परिवार से मिलाने के लिये सालों से किये जा रहे अपने पूजन-हवन के कार्यों को इंसानियत को समर्पित कर दिया था.
बांग्लादेश सरकार ने की थी तारीफ : विशाल दफ्तुआर ने कहा कि इस संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मामले में बांग्लादेश सरकार ने लिखित तौर पर उनके कार्यों की न सिर्फ तारीफ की बल्कि कॉर्डिनेशन का अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मा भी इन्हें ही दे दिया. बांग्लादेश हाई कमीशन ने एचआरयूएफ चेयरमैन विशाल दफ्तुआर के नाम से जारी पत्र की उक्त कापी को भारतीय विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के सेक्रेटरी को भी भेजा. यह अत्यंत गौरव की बात थी और प्रोटोकॉल के उलट भी.
इतना ही नहीं सवेरा बेगम के पासपोर्ट के गुम हो जाने के बाद उसके एवज में उन्हें उपलब्ध करवाये गये ट्रेवल परमिट पर उनकी फोटो,हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान को अभिप्रमाणित करने की अथॉरिटी भी बांग्लादेश सरकार ने विशाल दफ्तुआर को दे दी. यह अत्यंत अभूतपूर्व उपलब्धि थी.
भागलपुर के राजेंद्र रविदास की लड़ाई : विशाल दफ्तुआर ने भागलपुर के महादलित परिवार से संबंध रखने वाले राजेंद्र रविदास की लड़ाई लड़ी. राजेंद्र के मामले में भी उसके परिवारवालों ने प्रधानमंत्री कार्यालय , विदेश मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के यहाँ फरियाद की थी. 2 मार्च 2021 को बिहार के भागलपुर के उस्तु गांव के भूमिहीन और महादलित राजेंद्र रविदास को चार सालों बाद बांग्लादेश की जेल से रिहा करवा कर विशाल दफ्तुआर ने अपने चौथे अंतरराष्ट्रीय मिशन को भी सफलतापूर्वक पूरा किया.
इथोपिया से 21 लोगों की वतनवापसी : वर्ष 2024 के जुलाई माह में इथोपिया में फंसे 21 भारतीयों की एचआरयूएफ चेयरमैन विशाल दफ्तुआर के पहल करते ही त्वरित वतन वापसी हुई. इसमें उत्तर प्रदेश के 10, बिहार के 9 और हिमाचल प्रदेश के 2 लोग हैं शामिल थे. इन 21 लोगों की वतन वापसी में विशाल दफ्तुआर की संस्था ने लंबी लड़ाई के बाद सफलता हासिल की.
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