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जोधपुर में सरदार पटेल की मूर्ति का गृहमंत्री अमित शाह ने किया अनावरण, सुनाई विलय की कहानी, कांग्रेस को लेकर कही ये बड़ी बात - SHAH UNVEILED SARDAR PATEL STATUE

जोधपुर में सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण करने के बाद शाह ने कांग्रेस पर बोला हमला. सुनाई जोधपुर रियासत के विलय की कहानी.

SHAH UNVEILED SARDAR PATEL STATUE
शाह ने सुनाई विलय की कहानी (ETV BHARAT JODHPUR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 8, 2024, 4:47 PM IST

Updated : Dec 8, 2024, 5:29 PM IST

जोधपुर : देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जोधपुर में लगी पहली मूर्ति का रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अनावरण किया. इसको लेकर सर्किट हाउस के बाहर विशेष समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, मंत्री जोगाराम पटेल समेत स्थानीय विधायक व पार्टी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुए. इस मौके पर समारोह को संबोधित करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सरदार पटेल का जोधपुर से गहरा नाता रहा. अगर वो नहीं होते तो आज शायद जोधपुर पाकिस्तान का हिस्सा होता.

कांग्रेस ने नहीं दिया सरदार पटेल को सम्मान : इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने कभी सरदार पटेल को सम्मान नहीं दिया. वहीं, यह भी सच है कि अगर सरदार पटेल नहीं होते तो देश की रियासतों का एकीकरण भी संभव नहीं था. उन्होंने ही गुजरात सहित राजस्थान की जोधपुर जैसी रियासतों का भारत में विलय कराया था. साथ ही जोधपुर के एयरवेज को रणनीति रूप से विकसित कराया और यहां के महाराज को विलय के लिए राजी कराया.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (ETV BHARAT JODHPUR)

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चर्चिल की भविष्यवाणी को साबित किया गलत : खैर, यह भी हकीकत यह है कि सरदार पटेल के साथ किसी ने भी न्याय नहीं किया. भाजपा के शासन से पहले उन्हें सम्मान नहीं दिया गया. कांग्रेस पार्टी में एक ही परिवार को सम्मान दिया गया, जबकि सरदार पटेल ने देश के स्वाधीन होने के समय चर्चिल की भारत के खंड-खंड होने की भविष्यवाणी को गलत साबित किया.

सरदार पटेल के सपनों को मोदी सरकार ने किया पूरा : गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सरदार पटेल ने सोमनाथ का मंदिर बनवाया था. उसे समय उन्होंने कहा था कि देश के सभी तीर्थ स्थलों व मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जाएगा, लेकिन कांग्रेस की मानसिकता के चलते 75 साल तक अयोध्या में मंदिर नहीं बन सका. सरदार पटेल धारा 370 के खिलाफ थे. वो कॉमन सिविल कोड लागू करना चाहते थे. वहीं, उनके अधूरे कार्यों को मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में पूरा किया है. आज धारा 370 का अस्तित्व खत्म हो चुका है. कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग बन गया है. कॉमन सिविल कोड उत्तराखंड में लागू हो चुका है. आज संसार का सबसे बड़ा स्मारक उनके नाम का है.

इसे भी पढ़ें - BSF Foundation Day : जोधपुर में BSF ट्रेनिंग कैंप में समारोह, गृह मंत्री अमित शाह ने शहीदों को किया नमन

आजादी से 4 दिन पहले माने थे महाराजा : जोधपुर जैसी मारवाड़ की बड़ी रियासत ने आजादी से सिर्फ चार दिन पहले यानी की 11 अगस्त, 1947 को भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इस देरी की एक वजह यह भी थी कि उस समय देश में कई तरह की उथल-पुथल चल रही थी. आज वो सभी घटनाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. यहां के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह भारत की बजाय पाकिस्तान में मिलना चाहते थे. इससे पूरे मारवाड़ की जनता के साथ ही देश के सियासी नेता चिंतित थे. ये पूरी दास्तां अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है.

महाराज ने दिखाई चतुराई : जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. जहूर मोहम्मद के अनुसार चतुर राजनीतिज्ञ होने से महाराज हनवंत सिंह विशेष दर्जा चाहते थे. इसकी वजह यह थी कि भारत सरकार ने ही उस समय कहा था कि जिस रियासत की दस लाख जनसंख्या हो, वो अलग यूनिट बन सकते हैं, यानी एक इकाई के रूप में रह सकते हैं. ऐसे में इसका फायदा उठाने के लिए हनवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने का दिखावटी प्रयास किया, जबकि उनके पिता और वे स्वयं यह मन बना चुके थे कि उन्हें भारत में ही रहना है. प्रो. जहूर मोहम्मद बताते हैं कि पाकिस्तान में शामिल होने की बात सिर्फ उस समय के लोगों की लिखी किताबों में दर्ज है, न कि राजपरिवार व अन्य किसी जगह इसका प्रमाण मिलता है.

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फ्रीडम एट मिडनाइट में दर्ज है पूरा वाकया : तत्कालीन पत्रकार लैरी कॉलिन्स व लैपियर की लिखी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट के हिंदी अनुवाद की पृष्ठ संख्या 171 व 172 में हनवंत सिंह के पाकिस्तान के साथ जाने की बातों का विस्तृत जिक्र मिलता है. उसमें बताया गया है कि महाराजा उमेद सिंह के बाद जोधपुर की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर, जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थी. नवाब के सलाहकार सर जफरउल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर उन्हें पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही थी.

साथ ही यह भी कहा कि अगर आप पाकिस्तान के साथ आते हैं तो जिन्ना आपकी सभी शर्तों को मानने के लिए खाली पेपर पर हस्ताक्षर करने को तैयार हैं. वहीं, दिल्ली में उनकी जिन्ना से मुलाकात भी हुई थी, लेकिन उसी दिन इंपीरियल होटल में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महाराजा हनवंत सिंह से मिले थे. मेनन ने माउंट बेटन को हनवत सिंह से मिलने के लिए तैयार किया था. माउंट बेटन ने महाराजा हनवंत सिंह से बात की और उन्हें उनके पिता व सरदार पटेल के संबंधों के बारे में बताया. इस पर महाराज हनवंत सिंह भारत में विलय के लिए तैयार हो गए.

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इस पर माउंट बेटन कमरे से बाहर निकल गए. उस समय कमरे में मेनन और हनवंत सिंह अकेले थे. हस्ताक्षर करने के लिए महाराजा ने जो पेन निकाला, उसे खोलते ही वो गन बन गया और उसे मेनन पर तान दी. इस दौरान माउंट बेटन वापस आ गए, तो उन्होंने गन उनसे ले ली. पेन रूपी गन बाद में माउंट बेटन अपने साथ लेकर चले गए थे, जिसे उन्होंने एक संग्रालय को दे दी.

जोधपुर : देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जोधपुर में लगी पहली मूर्ति का रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अनावरण किया. इसको लेकर सर्किट हाउस के बाहर विशेष समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, मंत्री जोगाराम पटेल समेत स्थानीय विधायक व पार्टी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुए. इस मौके पर समारोह को संबोधित करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सरदार पटेल का जोधपुर से गहरा नाता रहा. अगर वो नहीं होते तो आज शायद जोधपुर पाकिस्तान का हिस्सा होता.

कांग्रेस ने नहीं दिया सरदार पटेल को सम्मान : इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने कभी सरदार पटेल को सम्मान नहीं दिया. वहीं, यह भी सच है कि अगर सरदार पटेल नहीं होते तो देश की रियासतों का एकीकरण भी संभव नहीं था. उन्होंने ही गुजरात सहित राजस्थान की जोधपुर जैसी रियासतों का भारत में विलय कराया था. साथ ही जोधपुर के एयरवेज को रणनीति रूप से विकसित कराया और यहां के महाराज को विलय के लिए राजी कराया.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (ETV BHARAT JODHPUR)

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चर्चिल की भविष्यवाणी को साबित किया गलत : खैर, यह भी हकीकत यह है कि सरदार पटेल के साथ किसी ने भी न्याय नहीं किया. भाजपा के शासन से पहले उन्हें सम्मान नहीं दिया गया. कांग्रेस पार्टी में एक ही परिवार को सम्मान दिया गया, जबकि सरदार पटेल ने देश के स्वाधीन होने के समय चर्चिल की भारत के खंड-खंड होने की भविष्यवाणी को गलत साबित किया.

सरदार पटेल के सपनों को मोदी सरकार ने किया पूरा : गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सरदार पटेल ने सोमनाथ का मंदिर बनवाया था. उसे समय उन्होंने कहा था कि देश के सभी तीर्थ स्थलों व मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जाएगा, लेकिन कांग्रेस की मानसिकता के चलते 75 साल तक अयोध्या में मंदिर नहीं बन सका. सरदार पटेल धारा 370 के खिलाफ थे. वो कॉमन सिविल कोड लागू करना चाहते थे. वहीं, उनके अधूरे कार्यों को मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में पूरा किया है. आज धारा 370 का अस्तित्व खत्म हो चुका है. कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग बन गया है. कॉमन सिविल कोड उत्तराखंड में लागू हो चुका है. आज संसार का सबसे बड़ा स्मारक उनके नाम का है.

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आजादी से 4 दिन पहले माने थे महाराजा : जोधपुर जैसी मारवाड़ की बड़ी रियासत ने आजादी से सिर्फ चार दिन पहले यानी की 11 अगस्त, 1947 को भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इस देरी की एक वजह यह भी थी कि उस समय देश में कई तरह की उथल-पुथल चल रही थी. आज वो सभी घटनाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. यहां के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह भारत की बजाय पाकिस्तान में मिलना चाहते थे. इससे पूरे मारवाड़ की जनता के साथ ही देश के सियासी नेता चिंतित थे. ये पूरी दास्तां अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है.

महाराज ने दिखाई चतुराई : जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. जहूर मोहम्मद के अनुसार चतुर राजनीतिज्ञ होने से महाराज हनवंत सिंह विशेष दर्जा चाहते थे. इसकी वजह यह थी कि भारत सरकार ने ही उस समय कहा था कि जिस रियासत की दस लाख जनसंख्या हो, वो अलग यूनिट बन सकते हैं, यानी एक इकाई के रूप में रह सकते हैं. ऐसे में इसका फायदा उठाने के लिए हनवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने का दिखावटी प्रयास किया, जबकि उनके पिता और वे स्वयं यह मन बना चुके थे कि उन्हें भारत में ही रहना है. प्रो. जहूर मोहम्मद बताते हैं कि पाकिस्तान में शामिल होने की बात सिर्फ उस समय के लोगों की लिखी किताबों में दर्ज है, न कि राजपरिवार व अन्य किसी जगह इसका प्रमाण मिलता है.

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फ्रीडम एट मिडनाइट में दर्ज है पूरा वाकया : तत्कालीन पत्रकार लैरी कॉलिन्स व लैपियर की लिखी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट के हिंदी अनुवाद की पृष्ठ संख्या 171 व 172 में हनवंत सिंह के पाकिस्तान के साथ जाने की बातों का विस्तृत जिक्र मिलता है. उसमें बताया गया है कि महाराजा उमेद सिंह के बाद जोधपुर की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर, जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थी. नवाब के सलाहकार सर जफरउल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर उन्हें पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही थी.

साथ ही यह भी कहा कि अगर आप पाकिस्तान के साथ आते हैं तो जिन्ना आपकी सभी शर्तों को मानने के लिए खाली पेपर पर हस्ताक्षर करने को तैयार हैं. वहीं, दिल्ली में उनकी जिन्ना से मुलाकात भी हुई थी, लेकिन उसी दिन इंपीरियल होटल में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महाराजा हनवंत सिंह से मिले थे. मेनन ने माउंट बेटन को हनवत सिंह से मिलने के लिए तैयार किया था. माउंट बेटन ने महाराजा हनवंत सिंह से बात की और उन्हें उनके पिता व सरदार पटेल के संबंधों के बारे में बताया. इस पर महाराज हनवंत सिंह भारत में विलय के लिए तैयार हो गए.

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इस पर माउंट बेटन कमरे से बाहर निकल गए. उस समय कमरे में मेनन और हनवंत सिंह अकेले थे. हस्ताक्षर करने के लिए महाराजा ने जो पेन निकाला, उसे खोलते ही वो गन बन गया और उसे मेनन पर तान दी. इस दौरान माउंट बेटन वापस आ गए, तो उन्होंने गन उनसे ले ली. पेन रूपी गन बाद में माउंट बेटन अपने साथ लेकर चले गए थे, जिसे उन्होंने एक संग्रालय को दे दी.

Last Updated : Dec 8, 2024, 5:29 PM IST
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