प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह विवाद को लेकर लंबित मुकदमों की सुनवाई सोमवार को भी पूरी नहीं हो पायी थी. इन मामलों में मंगलवार को भी सुनवाई हुई. इसमें हिंदू पक्ष ने कहा कि वाद पोषणीय है. इसकी गैर पोषणीयता के संबंध में दायर याचिका पर साक्ष्यों को देखने के बाद ही फैसला किया जा सकता है. मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष के वकील ने ज्ञानवापी मामले में पारित निर्णय का हवाला दिया. इसमें अदालत ने कहा था कि धार्मिक चरित्र दीवानी अदालत तय नहीं कर सकती. चूंकि यह संपत्ति (शाही ईदगाह मस्जिद) वक्फ की प्रॉपर्टी नहीं है, इसलिए अदालत को मामले में सुनवाई करने का अधिकार है. शाही ईदगाह मस्जिद पहले एक मंदिर था, जिस पर बलपूर्वक कब्जा किया गया और बाद में नमाज अदा करनी शुरू दी गयी.
यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मामले की सुनवाई की. मुकदमे की पोषणीयता पर सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए तर्कों के जवाब में सोमवार को हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि मुकदमा चलने योग्य है. इसके संबंध में दलील का फैसला प्रमुख सबूतों के बाद ही किया जा सकता है. यह भी कहा गया कि इन मामलों में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान लागू नहीं होंगे.
एडवोकेट राहुल सहाय ने कहा कि वर्ष 1991 के पूजा स्थल अधिनियम में धार्मिक चरित्र को परिभाषित नहीं किया गया है. स्थान और संरचना का धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य द्वारा तय किया जा सकता है, जिसे केवल दीवानी अदालत में ही तय किया जा सकता है. उन्होंने ज्ञानवापी मामले में पारित फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें अदालत ने माना था कि धार्मिक चरित्र का फैसला केवल सिविल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है.
आगे कहा गया कि इस विवाद में वक्फ अधिनियम के प्रावधान भी लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति, वक्फ संपत्ति नहीं है. जिस संपत्ति की बात की जा रही है वह एक मंदिर था और उस पर जबरन कब्जा करने के बाद नमाज अदा करना शुरू कर दिया गया लेकिन इस तरह से जमीन का चरित्र नहीं बदला जा सकता. यह भी कहा गया कि विचाराधीन संपत्ति, वक्फ संपत्ति नहीं है इसलिए इस न्यायालय के पास मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है.