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उत्तराखंड की रामलीला पर इंटरनेशनल रिसर्च, जर्मनी के पॉल पहुंचे पौड़ी गढ़वाल, भारतीय संस्कृति से है प्यार - RESEARCH ON RAMLEELA OF GARHWAL

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

German student research on Uttarakhand Ramleela: उत्तराखंड अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है. यहां की रामलीला बहुत प्रसिद्ध है. इसी क्रम में जर्मनी से पॉल नाम का एक छात्र देवभूमि उत्तराखंड आया है. पॉल का उत्तराखंड आने का उद्देश्य पौड़ी और श्रीनगर की रामलीला पर शोध करना है. उनका शोध उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद करेगा.

Research on Ramlila of Garhwal
उत्तराखंड की रामलीला पर जर्मनी की रिसर्च (photo- ETV Bharat)

श्रीनगर: उत्तराखंड में कई प्रकार के मेले और त्यौहारों का आयोजन किया जाता है. यहां की संस्कृति ना केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ती है. यही कारण है कि विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में यहां आते हैं. इसी बीच जर्मनी के पॉल उत्तराखंड की संस्कृति और बोली से प्रभावित होकर पौड़ी और श्रीनगर की रामलीला पर शोध करने के लिए सात समुद्र पार आ गए हैं. हालांकि इससे पहले उत्तराखंड की संस्कृति को देखने के लिए जर्मनी से कई लोग आ चुके हैं.

उत्तराखंड की रामलीला पर जर्मनी के पॉल कर रहे शोध: जर्मनी के रामेल्सबर्ग माइंस में 4 सितंबर 1999 को जन्मे शोधकर्ता पॉल ने बताया कि वो जर्मनी की योहानेस गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी में मास्टर्स कर रहे हैं. वे कई बार उत्तराखंड घूम चुके हैं और यहां की संस्कृति उन्हें बहुत पसंद आई है. इसी वजह से वो उत्तराखंड आकर यहां की संस्कृति और रामलीला पर शोध करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस शोध में रामलीलाओं का दर्शकों पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ता है, इस पर उनका विशेष ध्यान है.

उत्तराखंड की रामलीला पर इंटरनेशनल रिसर्च (video-ETV Bharat)

शोध से पहले उत्तराखंड आ चुके हैं पॉल: पॉल ने बताया कि वो दो साल पहले गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोककला एवं सांस्कृतिक निष्पादन केंद्र में उत्तराखंड की संस्कृति को समझने के लिए आ चुके हैं. इस बार वे विशेष रूप से रामलीला पर शोध कर रहे हैं और गढ़वाल की रामलीला का गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि शोध के लिए रामलीला को देखना जरूरी है, इसलिए वो पौड़ी और श्रीनगर में रामलीला देखेंगे. इसके बाद वो अल्मोड़ा भी जाएंगे.

शोध रामलीला देखने वाले दर्शकों पर केंद्रित: पॉल का शोध मुख्य रूप से रामलीला देखने वाले दर्शकों पर केंद्रित है. उनका उद्देश्य यह समझना है कि रामलीला का दर्शकों पर क्या प्रभाव पड़ता है और वे इससे क्या सीखते हैं. पॉल के अनुसार, रामलीला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है, बल्कि इसके माध्यम से लोगों के जीवन और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को भी जाना जा सकता है. पॉल की स्टडी पौड़ी, श्रीनगर और अल्मोड़ा की रामलीला के मंचन पर केंद्रित रहेगी.

क्यों खास है पौड़ी की रामलीला: उत्तराखंड के पौड़ी की रामलीला का अपना इतिहास है. पौड़ी की रामलीला को युनेस्को ने धरोहर की श्रेणी में रखा है. इस रामलीला की शुरुआत 1897 से हुई थी, जो 125 साल से अबतक आयोजित की जा रही है. इसका आयोजन पारसी शैली में किया जाता है. इसमें हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अवधि, बृज युक्त चौपाइयों का उपयोग किया जाता है. इसके साथ-साथ वर्ष 2002 से पौड़ी की रामलीला में महिला पात्रों को भी स्थान दिया जाने लगा है.

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उत्तराखंड की रामलीला पर जर्मनी के पॉल कर रहे शोध: जर्मनी के रामेल्सबर्ग माइंस में 4 सितंबर 1999 को जन्मे शोधकर्ता पॉल ने बताया कि वो जर्मनी की योहानेस गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी में मास्टर्स कर रहे हैं. वे कई बार उत्तराखंड घूम चुके हैं और यहां की संस्कृति उन्हें बहुत पसंद आई है. इसी वजह से वो उत्तराखंड आकर यहां की संस्कृति और रामलीला पर शोध करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस शोध में रामलीलाओं का दर्शकों पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ता है, इस पर उनका विशेष ध्यान है.

उत्तराखंड की रामलीला पर इंटरनेशनल रिसर्च (video-ETV Bharat)

शोध से पहले उत्तराखंड आ चुके हैं पॉल: पॉल ने बताया कि वो दो साल पहले गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोककला एवं सांस्कृतिक निष्पादन केंद्र में उत्तराखंड की संस्कृति को समझने के लिए आ चुके हैं. इस बार वे विशेष रूप से रामलीला पर शोध कर रहे हैं और गढ़वाल की रामलीला का गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि शोध के लिए रामलीला को देखना जरूरी है, इसलिए वो पौड़ी और श्रीनगर में रामलीला देखेंगे. इसके बाद वो अल्मोड़ा भी जाएंगे.

शोध रामलीला देखने वाले दर्शकों पर केंद्रित: पॉल का शोध मुख्य रूप से रामलीला देखने वाले दर्शकों पर केंद्रित है. उनका उद्देश्य यह समझना है कि रामलीला का दर्शकों पर क्या प्रभाव पड़ता है और वे इससे क्या सीखते हैं. पॉल के अनुसार, रामलीला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है, बल्कि इसके माध्यम से लोगों के जीवन और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को भी जाना जा सकता है. पॉल की स्टडी पौड़ी, श्रीनगर और अल्मोड़ा की रामलीला के मंचन पर केंद्रित रहेगी.

क्यों खास है पौड़ी की रामलीला: उत्तराखंड के पौड़ी की रामलीला का अपना इतिहास है. पौड़ी की रामलीला को युनेस्को ने धरोहर की श्रेणी में रखा है. इस रामलीला की शुरुआत 1897 से हुई थी, जो 125 साल से अबतक आयोजित की जा रही है. इसका आयोजन पारसी शैली में किया जाता है. इसमें हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अवधि, बृज युक्त चौपाइयों का उपयोग किया जाता है. इसके साथ-साथ वर्ष 2002 से पौड़ी की रामलीला में महिला पात्रों को भी स्थान दिया जाने लगा है.

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