दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव की मतगणना का दौर जारी है. बीजेपी और आप के बीच ही टक्कर दिख रही है. आप जहां चौथी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही है वहीं बीजेपी भी 1993 के बाद से जारी वनवास को तोड़ने की कोशिश कर रही है. कुछ देर में यह साफ हो जाएगा कि जनता ने किसे जीत का सेहरा पहनाया. लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान कई ऐसे अहम मुद्दे रहे जिन पर राजनीति जम कर हुई और ये जीत और हार का कारण भी बनेगें.
यमुना नदी का मुद्दा: आप ने यमुना नदी में प्रदूषण के मुद्दे को लेकर जोर- शोर से उठाया. आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने तो हरियाणा सरकार पर यमुना के पानी में जहर मिलाने तक का आरोप लगा दिया. मुख्यमंत्री आतिशी ने तो जल आतंकवाद की संज्ञा दे दी. आप ने अपनी हर चुनावी सभा में यमुना में प्रदूषण को लेकर हरियाणा की बीजेपी सरकार पर वार करने का कोई मौका नहीं छोड़ा. बीजेपी ने भी फिर इसका करारा जवाब दिया. हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने बीजेपी की ओर से कमान संभाली. बीजेपी की ओर से आप सरकार पर इल्जाम लगाया गया कि दस साल से सत्ता में रहने के बावजूद यमुना की सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया. नायब सैनी ने खुद हरियाणा- दिल्ली के बॉर्डर पर यमुना नदी का पानी पी कर ये दिखाने की कोशिश की कि हरियाणा में यमुना साफ है लेकिन जैसी दिल्ली में प्रवेश करती है वो मैली हो जाती है. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनावी सभा में आप सरकार पर इल्जामों की झड़ी लगा दी.
मध्यम वर्ग पर फोकस: दिल्ली की बड़ी आबादी मध्यम वर्ग से ताल्लुकात रखती है. मध्यम वर्ग को अपना सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए हर दल ने जी जान लगा दी. मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में हर राजनीतिक दल ने लंबे चौड़े वादे किए. बजट के जरिए तो बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक ही चल दिया. बजट में आय कर की सीमा बढ़ा कर 12 लाख कर दी गयी. राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर में इसे मध्यम वर्ग के लिए बीजेपी का सबसे बड़ा तोहफा के तौर पर देखा गया.
महिला सशक्तिकरण पर जोर: महिला वोर्टस को लुभाने के लिए सभी राजनीतिक दल ने कई लोक लुभावन वादे किए. महिलाओं को ध्यान में रखते हुए योजनाओं को लागू करने का वादा किया गया. हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं को ध्यान में रख कर जारी की गयी घोषणाओं का असर पहले ही देखा जा चुका था. लिहाजा दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हर दल ने महिलाओं के लिए खजाना खोल देने का वादा किया. आप ने जहां कर नही देने वाली महिलाओं को 2100 रुपये देने की घोषणा की तो बीजेपी और कांग्रेस ने 2500 रुपये की मासिक वित्तीय सहायता देने का एलान कर दिया. महिलाओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, पेंशन जैसे रोजमर्रा से जुड़ी चीजों पर खासा ध्यान देने का वादा किया गया.
दलित वोटर्स पर नजर: दलित वोर्टस को अपने पाले में करने के लिए आप, कांग्रेस और बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पिछले और चुनाव की तरह संविधान को लेकर वार-पलटवार का दौर जारी रहा. दलितों- पिछड़े वर्ग को इस बात का एहसास कराने की हर दल ने प्रयास किया कि वही उसकी सबसे बड़ी हितैषी है. बीजेपी ने 1993 में आठ एससी सीटें जीती थी. उसके बाद वह दो से ज्यादा सीटें नहीं जीत पायी. बीजेपी की पूरी कोशिश रही कि दिल्ली की 12 एससी आरक्षित सीटों पर कब्जा किया जाए. वहीं आप और कांग्रेस की भी रणनीति रही कि बीजेपी को संविधान विरोधी दिखा कर कामयाबी हासिल की जाए.
मुस्लिम वोटर्स किसके पाले में: दिल्ली में अल्पसंख्यक वोट निर्णायक भूमिका में हो सकते हैं. दिल्ली की जनसंख्या में करीब 12.9 प्रतिशत मुस्लिम हैं. दिल्ली में 23 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम आबादी कम से कम दस प्रतिशत है. इन सीटों पर पिछले चुनाव में आप का वोट शेयर 55 प्रतिशत के आसपास स्थिर रहा जबकि बीजेपी का वोट शेयर 29.44% से बढ़कर 34.57% हो गया और कांग्रेस का वोट शेयर 12.81% से घटकर 5.57% हो गया.