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संक्रांति पर 'मुर्गों की महाभारत': मटन कीमा खिलाकर मुकाबले के लिए तैयार किये जाते 'लड़ाकू मुर्गे' - COCK FIGHT ON SANKRANI

आंध्र प्रदेश में संक्रांति के अवसर पर मुर्गा की लड़ाई प्रतियोगिता होती है. इसके लिए मुर्गों को बकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. पढ़ें, विस्तार से.

Cock Fight
मुर्गा की लड़ाई. (File) (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 4 hours ago

मुम्मिदिवरम: मकर संक्रांति के मौके पर देशभर में अलग-अलग तरीके से उत्सव मनाया जाता है. कहीं पतंगबाजी होती है तो कहीं तिल-गुड़ बांटने की परंपरा है. आंध्र प्रदेश के कई जिलों में मकर संक्रांति पर अनोखी परंपरा है. यहां मुर्गा लड़ाई की प्रतियोगिता होती है. खास बात यह है कि इन मुर्गों को महीनों तक विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. इनके खाने का भी विशेष प्रबंध रहता है.

मुर्गा को दिया जाता प्रशिक्षणः संक्रांति दौड़ के लिए मुर्गों को तैयार करने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. आई. पोलावरम, कटरेनिकोना, मुम्मिदिवरम, अल्लावरम, उप्पलागुप्तम, राजोलू, सखिनेटीपल्ली, रावुलापलेम, अलमुरु, रामचंद्रपुरम और अन्य मंडलों सहित अंबेडकर कोनासीमा जिले में 200 से अधिक प्रशिक्षण शिविरों में मुर्गों को बहुत ध्यान से तैयार किया जाता है. मुर्गों को न केवल दौड़ के लिए बल्कि तलवार चलाने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है.

मुर्गा को मटन कीमा खिलाया जाताः मुर्गे की कीमत 25 हजार रुपये से 1 लाख रुपये के बीच होती है. दस दिनों की अवधि में, इन मुर्गों को पौष्टिक भोजन और दवा दी जाती है. इन मुर्गों को सप्ताह में दो से तीन दिन मटन कीमा भी दिया जाता है. इन मुर्गों को ट्रेनिंग के दौरान करीब 25 हजार से 30 हजार रुपये का खर्च आता है.

करीब 15 करोड़ का होता कारोबारः मुर्गा की लड़ाई के दौरान उनके पैर में ब्लेड बंधा होता है. स्टेनलेस स्टील से सावधानीपूर्वक तैयार किए गए इन ब्लेडों को भट्ठी में छह बार जलाया जाता है. 500 रुपये से 700 रुपये के बीच की कीमत वाली इन तलवारों का इस्तेमाल केवल एक मैच के लिए किया जाता है. संक्रांति के समय करीब 15 करोड़ रुपये का व्यवसाय होता है.

तलवार बांधने वाले मास्टर की भूमिकाः तलवार बांधने वाले व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. दाहिने पैर में बंधी तलवार को एक पतले सूती कपड़े और एक टरलिन रस्सी का उपयोग करके बांधा जाता है. पूरे मैच के दौरान, तलवार मास्टर सतर्क रहता है. आवश्यकतानुसार ब्लेड की स्थिति को समायोजित करता है. आयोजक इन विशेषज्ञों को प्रतिदिन 25 से 35 हजार रुपये देते हैं. संक्रांति प्रतियोगिता के करीब आने के साथ ही कुशल तलवार बनाने वालों और तलवार मास्टरों की मांग बढ़ जाती है.

इसे भी पढ़ेंः Cock Theft Case: मुर्गे के मर्डर की कोशिश, घायल मुर्गा लेकर थाना पहुंची महिला - मस्तूरी के पचपेड़ी थाना क्षेत्र

मुम्मिदिवरम: मकर संक्रांति के मौके पर देशभर में अलग-अलग तरीके से उत्सव मनाया जाता है. कहीं पतंगबाजी होती है तो कहीं तिल-गुड़ बांटने की परंपरा है. आंध्र प्रदेश के कई जिलों में मकर संक्रांति पर अनोखी परंपरा है. यहां मुर्गा लड़ाई की प्रतियोगिता होती है. खास बात यह है कि इन मुर्गों को महीनों तक विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. इनके खाने का भी विशेष प्रबंध रहता है.

मुर्गा को दिया जाता प्रशिक्षणः संक्रांति दौड़ के लिए मुर्गों को तैयार करने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. आई. पोलावरम, कटरेनिकोना, मुम्मिदिवरम, अल्लावरम, उप्पलागुप्तम, राजोलू, सखिनेटीपल्ली, रावुलापलेम, अलमुरु, रामचंद्रपुरम और अन्य मंडलों सहित अंबेडकर कोनासीमा जिले में 200 से अधिक प्रशिक्षण शिविरों में मुर्गों को बहुत ध्यान से तैयार किया जाता है. मुर्गों को न केवल दौड़ के लिए बल्कि तलवार चलाने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है.

मुर्गा को मटन कीमा खिलाया जाताः मुर्गे की कीमत 25 हजार रुपये से 1 लाख रुपये के बीच होती है. दस दिनों की अवधि में, इन मुर्गों को पौष्टिक भोजन और दवा दी जाती है. इन मुर्गों को सप्ताह में दो से तीन दिन मटन कीमा भी दिया जाता है. इन मुर्गों को ट्रेनिंग के दौरान करीब 25 हजार से 30 हजार रुपये का खर्च आता है.

करीब 15 करोड़ का होता कारोबारः मुर्गा की लड़ाई के दौरान उनके पैर में ब्लेड बंधा होता है. स्टेनलेस स्टील से सावधानीपूर्वक तैयार किए गए इन ब्लेडों को भट्ठी में छह बार जलाया जाता है. 500 रुपये से 700 रुपये के बीच की कीमत वाली इन तलवारों का इस्तेमाल केवल एक मैच के लिए किया जाता है. संक्रांति के समय करीब 15 करोड़ रुपये का व्यवसाय होता है.

तलवार बांधने वाले मास्टर की भूमिकाः तलवार बांधने वाले व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. दाहिने पैर में बंधी तलवार को एक पतले सूती कपड़े और एक टरलिन रस्सी का उपयोग करके बांधा जाता है. पूरे मैच के दौरान, तलवार मास्टर सतर्क रहता है. आवश्यकतानुसार ब्लेड की स्थिति को समायोजित करता है. आयोजक इन विशेषज्ञों को प्रतिदिन 25 से 35 हजार रुपये देते हैं. संक्रांति प्रतियोगिता के करीब आने के साथ ही कुशल तलवार बनाने वालों और तलवार मास्टरों की मांग बढ़ जाती है.

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