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ये गांव हर रोज करता है मौत का सफर, एक तरफ मगरमच्छ का खौफ, दूसरी तरफ लबालब नदी - Chhatarpur No Basic Facilities

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का यह गांव, जहां ग्रामीण मौत का सफर तय करते हैं. बरसात के मौसम में चारों तरफ से यह गांव बंद हो जाता है. एक तरफ मगरमच्छ का खौफ तो दूसरी और जंगली जानवरों का खौफ और नदी. जानिए इस गांव की कहानी...

CHHATARPUR NO BASIC FACILITIES
ये गांव हर रोज करता है मौत का सफर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 5, 2024, 6:07 PM IST

छतरपुर। एमपी में नदी-नाले लबालब होने से कई गांव परेशाननियों का सामना कर रहे हैं. कई गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है. छतरपुर जिले के ललार गांव की बात करें तो यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं. यहां तक की बच्चे भी अपनी जान का जोखिम उठाकर केन नदी को नाव से पार कर स्कूल जाते हैं. जिससे वह शिक्षा ग्रहण कर सकें.

ग्रामीण करते हैं मौत का सफर (ETV Bharat)

ग्रामीणों को मुश्किल सफर

दरअसल, ललार गांव पन्ना और छतरपुर जिले को जोड़ता है. यह पन्ना जिले का अंतिम गांव है. जो छतरपुर की सीमा से लगा हुआ है. गांव की आबादी लगभग 1700 के आसपास है. जिसमें 1200 से वोटर हैं. गांव के एक तरफ केन नदी है तो दूसरी तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल है. बरसात के मौसम में केन नदी में पानी आ जाने के कारण गांव को छतरपुर से जोड़ने वाली पुलिया डूब जाती है. गांव में रहने वाले लोगों का आवागमन पूरी तरह से बंद हो जाता है. दूसरा रास्ता पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल का होता है. जहां से वन विभाग इन ग्रामीणों को निकलने की अनुमति नहीं देता है.

एक तरफ नदी दूसरी तरफ खूंखार जानवर-मगरमच्छ

ललार गांव के एक छोटे से पुरवा टपरियन में रहने वाले ग्रामीण अमर सिंह बताते है की 'केन नदी से नाव के सहारे हम लोग छतरपुर पहुंचते हैं. यह सफर बेहद जोखिम भरा रहता है, क्योंकि आसपास घना जंगल होने के चलते कई बार खूंखार जानवरों से सामना भी हो जाता है. इसके बाद केन नदी में नाव के सहारे आगे बढ़ना, ये किसी खतरे से खाली नहीं है. केन नदी में पानी के तेज बहाव के साथ जब नाव चलती है, तो मानो कुछ भी घट सकता है. नदी में आसपास बड़े-बड़े मगरमच्छ भी दिखाई देते हैं. बावजूद इन सब की परवाह किए बिना हमें रोज छतरपुर जाना होता है. किसी को घर के काम के लिए तो किसी को दवा लेने या मरीज को दिखाने के लिए और बच्चों को पढ़ाई के लिए.'

गांव छोड़ देती हैं गर्भवती महिलाएं

गांव के सरपंच धरम लाल अहिरवार बताते हैं कि 'बरसात के दिनों में गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है. ऐसे में अगर कोई बीमार होता है, तो यह किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होता. बड़ी मुश्किलों का सामना करके हम छतरपुर पहुंचते हैं. रास्ता नहीं होने के चलते गांव में एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. गर्भवती महिलाओं को डिलेवरी के कुछ महीने पहले ही गांव छोड़ना पड़ता है. वह छतरपुर जिले के किसी गांव या पन्ना शहर के आसपास के गांव में किराए से रहती है.

कई बच्चों ने कर दी पढ़ाई बंद

गांव में रहने वाले स्कूली बच्चों ने बताया कि 'नाव के सहारे केन नदी पार करके हम लोग स्कूल पहुंचते हैं. कई बार तेज बारिश या नदी का बहाव तेज होता है, तो हम स्कूल नहीं जा पाते. कई बार नाव से हादसे होते-होते बचे हैं.' गांव के लोगों का कहना है की 'वे कई बार पन्ना जिले के अधिकारियों और नेताओं को लिखित में शिकायत कर चुके हैं कि उनके गांव में आवागमन के लिए एक पुल बनाया जाए या फिर गांव का विस्थापन किया जाए, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ है. पिछले 50 सालों से भी अधिक समय से हम लोग इसी तरह आवागमन कर रहे हैं.

यहां पढ़ें...

पन्ना में भारी बारिश से आमजन परेशान, लबालब हुए नदी नाले, जान जोखिम में डालकर सेल्फी ले रहे लोग

जान जोखिम में डालकर पुल पार करते नजर आए सैकड़ों कांवड़िए, एक गलती जान पर पड़ सकती है भारी

ईटीवी भारत ने तय किया नाव के सहारे केन नदी का सफर

ईटीवी भारत की टीम ने गांव जाकर हकीकत जाना. इसके लिए सबसे पहले हम केन नदी के किनारे पहुंचे. जहां एक बड़ी सी नाव थी. जिसमें पहले से ही कुछ लोग और एक बाइक रखी हुई थी. नाव को गांव में ही रहने वाले एक व्यक्ति चला रहे थे. बीच नदी में जब नाव पहुंची तो मगर भी दिखे. गांव पहुंचने पर पाया की गांव के लोग रोज इसी तरह मौत का सफर तय करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

छतरपुर। एमपी में नदी-नाले लबालब होने से कई गांव परेशाननियों का सामना कर रहे हैं. कई गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है. छतरपुर जिले के ललार गांव की बात करें तो यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं. यहां तक की बच्चे भी अपनी जान का जोखिम उठाकर केन नदी को नाव से पार कर स्कूल जाते हैं. जिससे वह शिक्षा ग्रहण कर सकें.

ग्रामीण करते हैं मौत का सफर (ETV Bharat)

ग्रामीणों को मुश्किल सफर

दरअसल, ललार गांव पन्ना और छतरपुर जिले को जोड़ता है. यह पन्ना जिले का अंतिम गांव है. जो छतरपुर की सीमा से लगा हुआ है. गांव की आबादी लगभग 1700 के आसपास है. जिसमें 1200 से वोटर हैं. गांव के एक तरफ केन नदी है तो दूसरी तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल है. बरसात के मौसम में केन नदी में पानी आ जाने के कारण गांव को छतरपुर से जोड़ने वाली पुलिया डूब जाती है. गांव में रहने वाले लोगों का आवागमन पूरी तरह से बंद हो जाता है. दूसरा रास्ता पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल का होता है. जहां से वन विभाग इन ग्रामीणों को निकलने की अनुमति नहीं देता है.

एक तरफ नदी दूसरी तरफ खूंखार जानवर-मगरमच्छ

ललार गांव के एक छोटे से पुरवा टपरियन में रहने वाले ग्रामीण अमर सिंह बताते है की 'केन नदी से नाव के सहारे हम लोग छतरपुर पहुंचते हैं. यह सफर बेहद जोखिम भरा रहता है, क्योंकि आसपास घना जंगल होने के चलते कई बार खूंखार जानवरों से सामना भी हो जाता है. इसके बाद केन नदी में नाव के सहारे आगे बढ़ना, ये किसी खतरे से खाली नहीं है. केन नदी में पानी के तेज बहाव के साथ जब नाव चलती है, तो मानो कुछ भी घट सकता है. नदी में आसपास बड़े-बड़े मगरमच्छ भी दिखाई देते हैं. बावजूद इन सब की परवाह किए बिना हमें रोज छतरपुर जाना होता है. किसी को घर के काम के लिए तो किसी को दवा लेने या मरीज को दिखाने के लिए और बच्चों को पढ़ाई के लिए.'

गांव छोड़ देती हैं गर्भवती महिलाएं

गांव के सरपंच धरम लाल अहिरवार बताते हैं कि 'बरसात के दिनों में गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है. ऐसे में अगर कोई बीमार होता है, तो यह किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होता. बड़ी मुश्किलों का सामना करके हम छतरपुर पहुंचते हैं. रास्ता नहीं होने के चलते गांव में एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. गर्भवती महिलाओं को डिलेवरी के कुछ महीने पहले ही गांव छोड़ना पड़ता है. वह छतरपुर जिले के किसी गांव या पन्ना शहर के आसपास के गांव में किराए से रहती है.

कई बच्चों ने कर दी पढ़ाई बंद

गांव में रहने वाले स्कूली बच्चों ने बताया कि 'नाव के सहारे केन नदी पार करके हम लोग स्कूल पहुंचते हैं. कई बार तेज बारिश या नदी का बहाव तेज होता है, तो हम स्कूल नहीं जा पाते. कई बार नाव से हादसे होते-होते बचे हैं.' गांव के लोगों का कहना है की 'वे कई बार पन्ना जिले के अधिकारियों और नेताओं को लिखित में शिकायत कर चुके हैं कि उनके गांव में आवागमन के लिए एक पुल बनाया जाए या फिर गांव का विस्थापन किया जाए, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ है. पिछले 50 सालों से भी अधिक समय से हम लोग इसी तरह आवागमन कर रहे हैं.

यहां पढ़ें...

पन्ना में भारी बारिश से आमजन परेशान, लबालब हुए नदी नाले, जान जोखिम में डालकर सेल्फी ले रहे लोग

जान जोखिम में डालकर पुल पार करते नजर आए सैकड़ों कांवड़िए, एक गलती जान पर पड़ सकती है भारी

ईटीवी भारत ने तय किया नाव के सहारे केन नदी का सफर

ईटीवी भारत की टीम ने गांव जाकर हकीकत जाना. इसके लिए सबसे पहले हम केन नदी के किनारे पहुंचे. जहां एक बड़ी सी नाव थी. जिसमें पहले से ही कुछ लोग और एक बाइक रखी हुई थी. नाव को गांव में ही रहने वाले एक व्यक्ति चला रहे थे. बीच नदी में जब नाव पहुंची तो मगर भी दिखे. गांव पहुंचने पर पाया की गांव के लोग रोज इसी तरह मौत का सफर तय करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

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