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केंद्र सरकार ने खनिजों पर रॉयल्टी की रेट्रस्पेक्टिव रिफंड का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा - Supreme Court - SUPREME COURT

Centre Opposes Retrospective Refund: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में खनिज समृद्ध राज्यों की उस याचिका का पुरजोर विरोध किया, जिसमें 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाए गए रॉयल्टी को वापस करने की मांग की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Getty Images)
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By Sumit Saxena

Published : Jul 31, 2024, 3:23 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में खनिज समृद्ध राज्यों की उस याचिका का पुरजोर विरोध किया, जिसमें 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाए गए रॉयल्टी को वापस करने की मांग की गई थी. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ जजों की बेंच के समक्ष दलील दी कि मध्य प्रदेश और राजस्थान, जहां भाजपा शासित राज्य हैं, चाहते हैं कि इस फैसले को भविष्य में भी लागू किया जाए.

केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि कथित बकाया राशि का भुगतान पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश का मल्टी पोलर प्रभाव होगा. मेहता ने तर्क दिया कि निर्णय को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने से कई उद्योगों पर प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इससे नए मुकदमों के द्वार खुल जाएंगे.

दोनों पक्षों के लिए न्याय किए जाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कोर्ट यह कहने पर विचार कर सकता है कि न तो राज्य सरकार पूर्वव्यापी प्रभाव से कोई शुल्क मांग सकती है और न ही भुगतान करने वाले निजी पक्ष या सार्वजनिक उपक्रम धन वापसी की मांग करेंगे.

9 न्यायाधीशों की पीठ ने की सुनवाई
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बीवी नागरत्ना, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. पीठ ने इस मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया कि क्या 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी राज्यों को वापस की जाएगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील
सुनवाई के दौरान झारखंड खनिज विकास प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने फैसले को पूर्वव्यापी बनाने के पक्ष में दलीलें दीं. यदि फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है तो वित्तीय निहितार्थों के पहलू पर द्विवेदी ने सुझाव दिया कि पिछले बकाया का भुगतान किश्तों में किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने राज्य कर को बरकरार रखा था और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि दो कंपनियों को छोड़कर सभी कंपनियां राज्य सरकार का कर चुका रही हैं.

महानदी कोलफील्ड्स का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि पिछली लेवी मांगें कई कंपनियों की कुल संपत्ति से अधिक होंगी और फैसले को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी. 25 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता है. इस फैसले से खनिज समृद्ध राज्यों को राजस्व में भारी वृद्धि हुई है.

रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं
इस संबंध में सीजेआई ने कहा कि खनन गतिविधियों में शामिल कई कंपनियां खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के केंद्र के दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं. 25 जुलाई को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है. रॉयल्टी एक संविदात्मक प्रतिफल है जो खनन पट्टेदार द्वारा खनिज अधिकारों के आनंद के लिए पट्टाकर्ता को दिया जाता है. रॉयल्टी का भुगतान करने का दायित्व खनन पट्टे की संविदात्मक शर्तों से उत्पन्न होता है. सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए टैक्स नहीं माना जा सकता क्योंकि कानून में उनकी बकाया राशि के रूप में वसूली का प्रावधान है.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने शेफ कुणाल कपूर के तलाक पर रोक लगाई, मामला मध्यस्थता केंद्र को भेजा

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में खनिज समृद्ध राज्यों की उस याचिका का पुरजोर विरोध किया, जिसमें 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाए गए रॉयल्टी को वापस करने की मांग की गई थी. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ जजों की बेंच के समक्ष दलील दी कि मध्य प्रदेश और राजस्थान, जहां भाजपा शासित राज्य हैं, चाहते हैं कि इस फैसले को भविष्य में भी लागू किया जाए.

केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि कथित बकाया राशि का भुगतान पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश का मल्टी पोलर प्रभाव होगा. मेहता ने तर्क दिया कि निर्णय को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने से कई उद्योगों पर प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इससे नए मुकदमों के द्वार खुल जाएंगे.

दोनों पक्षों के लिए न्याय किए जाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कोर्ट यह कहने पर विचार कर सकता है कि न तो राज्य सरकार पूर्वव्यापी प्रभाव से कोई शुल्क मांग सकती है और न ही भुगतान करने वाले निजी पक्ष या सार्वजनिक उपक्रम धन वापसी की मांग करेंगे.

9 न्यायाधीशों की पीठ ने की सुनवाई
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बीवी नागरत्ना, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. पीठ ने इस मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया कि क्या 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी राज्यों को वापस की जाएगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील
सुनवाई के दौरान झारखंड खनिज विकास प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने फैसले को पूर्वव्यापी बनाने के पक्ष में दलीलें दीं. यदि फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है तो वित्तीय निहितार्थों के पहलू पर द्विवेदी ने सुझाव दिया कि पिछले बकाया का भुगतान किश्तों में किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने राज्य कर को बरकरार रखा था और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि दो कंपनियों को छोड़कर सभी कंपनियां राज्य सरकार का कर चुका रही हैं.

महानदी कोलफील्ड्स का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि पिछली लेवी मांगें कई कंपनियों की कुल संपत्ति से अधिक होंगी और फैसले को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी. 25 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता है. इस फैसले से खनिज समृद्ध राज्यों को राजस्व में भारी वृद्धि हुई है.

रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं
इस संबंध में सीजेआई ने कहा कि खनन गतिविधियों में शामिल कई कंपनियां खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के केंद्र के दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं. 25 जुलाई को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है. रॉयल्टी एक संविदात्मक प्रतिफल है जो खनन पट्टेदार द्वारा खनिज अधिकारों के आनंद के लिए पट्टाकर्ता को दिया जाता है. रॉयल्टी का भुगतान करने का दायित्व खनन पट्टे की संविदात्मक शर्तों से उत्पन्न होता है. सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए टैक्स नहीं माना जा सकता क्योंकि कानून में उनकी बकाया राशि के रूप में वसूली का प्रावधान है.

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