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बिहार की 78% महिला अपने पिता के सरनेम के साथ, उपनाम बदलने से क्यों कतरा रहीं बहुएं? जानें वजह - BIHAR WOMEN SURNAME SURVEY

बिहार में 78% महिलाएं शादी के बाद भी अपने पिता के सरनेम को बनाए रखती हैं, इसके पीछे क्या है वजह है? जानते हैं-

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बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट: (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 31, 2024, 9:20 PM IST

पटना : महिलाओं के बारे में एक धारणा है कि लड़कियां शादी के बाद अपने पति के सरनेम से जानी जाती हैं. शादी के बाद पति के सरनेम से उनकी पहचान बनने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन यह परंपरा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है. एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि बिहार की 78% महिलाएं अपने पिता के सरनेम को नहीं बदलती हैं. आखिर क्यों लड़कियां शादी के बाद भी अपने पिता के सरनेम से जुड़ी रहना चाहती हैं? जानें इस रिपोर्ट में.

पति सरनेम के साथ जोड़ने की परंपरा: आपके घर पर यदि किसी ने शादी या कोई भी फंक्शन का कार्ड भेजा होगा तो आप उसे कार्ड पर देखे होंगे कि निवेदक में लिखा रहता है मिस्टर एंड मिसेज झा परिवार या कार्ड भेजने वाले के टाइटल में मिस्टर एंड मिसेज लगा होता होगा. यह परंपरा बहुत दिनों से चल रही है. प्राचीन काल से ही भारत की सभ्यता में पत्नी की पहचान पति के साथ जोड़कर देखी जाती है. लेकिन यह धारणा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है.

बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट (ETV Bharat)

पुरातन काल से आ रही है परंपरा: भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश देश पुरुष प्रधान रहे हैं. अधिकांश देशों में शादी के बाद महिलाओं को अपने पति के टाइटल से जोड़ा जाता है. उदाहरण स्वरूप, अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा या क्लिंटन की पत्नियों के सरनेम में उनके पति का टाइटल देखा जा सकता है. भारत में भी कई उदाहरण हैं, जैसे राजीव गांधी से शादी के बाद सोनिया गांधी ने गांधी टाइटल अपनाया. ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिनमें महिलाओं की पहचान उनके पति के टाइटल से जुड़ी रही है.

बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट: बिहार में महिला बाल विकास मंत्रालय ने राज्य महिला एवं बाल विकास निगम के माध्यम से एक सर्वे करवाया है. इस सर्वे में महिलाओं से जुड़े सवालों और समस्याओं के बारे में पूछा गया. लगभग 10 लाख महिलाओं से सवाल पूछे गए और चार समूहों में महिलाओं से प्रतिक्रिया ली गई:-

  • जिनकी शादी को 1 साल हो चुका है.
  • जिनकी शादी को 6 महीने हुए हैं.
  • जिनकी शादी नहीं हुई है.
  • जिनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन उनके रिश्ते बन चुके हैं.

इन सर्वे में एक सवाल पूछा गया था कि क्या शादी के बाद महिलाएं अपने पिता के टाइटल को रखती हैं या अपने पति के सरनेम को अपनाती हैं. 78% महिलाओं ने बताया कि वह शादी के बाद भी अपने पिता के द्वारा दिए गए टाइटल को ही रखती हैं.

जितेन्द्र वर्मा और ज्योति मिश्रा
जितेन्द्र वर्मा और ज्योति मिश्रा (ETV Bharat)

पिता के सरनेम बदलने की क्या जरूरत?: ईटीवी भारत ने पटना की बोरिंग रोड की रहने वाली ज्योति मिश्रा से बातचीत की. ज्योति मिश्रा ने बताया कि उन्होंने जितेंद्र वर्मा से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उन्होंने अपने पुराने (पिता के) सरनेम को नहीं बदला. उनका और उनके पति का मानना है कि अब जमाना बदल चुका है, और अब यह सही नहीं लगता कि पत्नी का नाम जबरदस्ती पति के सरनेम से जोड़ा जाए.

पुरुष प्रधान समाज का धारणा बदला: ज्योति मिश्रा का कहना है कि पहले पारिवारिक और सामाजिक दबाव होता था, और यह कहा जाता था कि शादी के बाद पत्नी को अपने पति के सरनेम से जुड़ना चाहिए. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. महिलाएं अब जागरूक हो गई हैं और पढ़ाई-लिखाई के साथ आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं. ज्योति मिश्रा ने यह भी बताया कि आजकल पतियों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता.

नाम चेंज करवाना जटिल प्रक्रिया: ज्योति मिश्रा ने बताया कि सरनेम बदलने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई भी लड़की अपना सरनेम चेंज नहीं करना चाहती. उन्हें लगता है कि यह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना बहुत मुश्किल है. इसके अलावा, समाज और परिवार भी अब इस पर ज्यादा दबाव नहीं डालते कि महिलाएं अपना सरनेम बदलें.

''लड़कियां अब अपने करियर को लेकर अधिक जागरूक हो रही हैं, और शादी से पहले वे अक्सर स्नातक या स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी होती हैं. अगर वे अपना सरनेम बदलती हैं, तो उन्हें सभी सर्टिफिकेट और दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता है, जो एक कठिन प्रक्रिया है.''- ज्योति मिश्रा

अपनी पहचान बना रही हैं लड़कियां: जितेंद्र वर्मा ने कहा कि सरनेम को लेकर कोई फर्क नहीं पड़ता. उनकी पत्नी का नाम पहले से ही मिश्रा था और वह उसी नाम से जानी जाती हैं. उनके अनुसार, यह कोई जरूरी नहीं कि पत्नी को पति के टाइटल से पहचाना जाए. उनकी पत्नी ने अपना सरनेम नहीं बदला क्योंकि वह पहले से अपने करियर में सेटल्ड थीं और पहचान भी बना चुकी थीं.

कानूनी लफड़े में कौन पड़े?: जितेंद्र वर्मा ने ईटीवी भारत से कहा कि सरनेम बदलने के लिए कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई भी लड़की इसे बदलने का जोखिम नहीं उठाना चाहती. इसमें कई कागजों और दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता है, जिसके लिए कोर्ट और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

लड़कियां हो रही हैं जागरूक: अब समाज में यह धारणा बदलने लगी है कि महिलाओं की पहचान केवल उनके पति के सरनेम से होती है. महिलाएं अब शिक्षा, रोजगार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. इस बदलाव का बड़ा कारण महिलाओं का शिक्षा के प्रति बढ़ता झुकाव और सामाजिक जागरूकता है.

महिला पहले से हैं जागरूक: मधुबनी की प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रमा झा ने भी शादी के बाद अपने सरनेम को नहीं बदला. उनका कहना था कि यदि वह अपना टाइटल बदलतीं तो उन्हें मेडिकल डिग्री से लेकर सभी दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता, जो बहुत कठिन था.

सरकार की जटिल प्रक्रिया: लोगों को सरनेम बदलने में समस्या इसलिए होती है क्योंकि सरकारी दस्तावेजों में बदलाव करना एक कठिन और जटिल प्रक्रिया है. चाहे वह आधार कार्ड हो, पैन कार्ड, पासपोर्ट या बैंक खाते का दस्तावेज हो, हर जगह बदलाव करना जरूरी होता है. इसके अलावा, कोर्ट मैरिज के दौरान भी अगर कोई सरनेम बदलता है, तो सभी दस्तावेजों को सही करना पड़ता है.

समय बदला, सोच बदली: समय के साथ महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है. अब बाल विवाह जैसी प्रथा खत्म हो रही है, और लड़कियों का विवाह अब अधिक उम्र में हो रहा है. इसके साथ ही महिलाएं अब पढ़ाई, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से शामिल हो रही हैं.

लड़कियों का शिक्षा के प्रति झुकाव: महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे अब पहले से ज्यादा खुले हुए हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं. लड़कियां अब अपने सरनेम में बदलाव नहीं करना चाहतीं क्योंकि यह उनकी पहचान से जुड़ा होता है, और इसके लिए उन्हें जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है.

इसलिए नहीं बदल रहीं सरनेम : प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने बताया कि उन्होंने कई महिलाओं को सरनेम बदलने में कठिनाइयों का सामना करते हुए देखा है. उनका मानना है कि शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदमों के साथ महिलाओं का सरनेम बदलने से बचना स्वाभाविक हो गया है.

भविष्य को लेकर हुई जागरूक: महिलाओं का अब अधिक संख्या में नौकरी में जाना और अपने करियर में सफल होना यह साबित करता है कि उनकी पहचान सिर्फ पति के सरनेम से नहीं होनी चाहिए.

सरण पर कोर्ट तक मामला: दिल्ली की दिव्या मोदी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की थी कि शादी के बाद महिलाओं को केवल पति का सरनेम अपनाने के लिए बाध्य करना लैंगिक पूर्वाग्रह और "अनुचित भेदभाव" है. अदालत ने इस याचिका पर नोटिस जारी किया है.

क्या है विवाद: केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि यदि कोई महिला विवाह के बाद अपना पहला उपनाम रखना चाहती है, तो उसे तलाक की प्रति या पति से एनओसी प्रस्तुत करनी होगी.

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पटना : महिलाओं के बारे में एक धारणा है कि लड़कियां शादी के बाद अपने पति के सरनेम से जानी जाती हैं. शादी के बाद पति के सरनेम से उनकी पहचान बनने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन यह परंपरा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है. एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि बिहार की 78% महिलाएं अपने पिता के सरनेम को नहीं बदलती हैं. आखिर क्यों लड़कियां शादी के बाद भी अपने पिता के सरनेम से जुड़ी रहना चाहती हैं? जानें इस रिपोर्ट में.

पति सरनेम के साथ जोड़ने की परंपरा: आपके घर पर यदि किसी ने शादी या कोई भी फंक्शन का कार्ड भेजा होगा तो आप उसे कार्ड पर देखे होंगे कि निवेदक में लिखा रहता है मिस्टर एंड मिसेज झा परिवार या कार्ड भेजने वाले के टाइटल में मिस्टर एंड मिसेज लगा होता होगा. यह परंपरा बहुत दिनों से चल रही है. प्राचीन काल से ही भारत की सभ्यता में पत्नी की पहचान पति के साथ जोड़कर देखी जाती है. लेकिन यह धारणा अब धीरे-धीरे बदलने लगी है.

बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट (ETV Bharat)

पुरातन काल से आ रही है परंपरा: भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश देश पुरुष प्रधान रहे हैं. अधिकांश देशों में शादी के बाद महिलाओं को अपने पति के टाइटल से जोड़ा जाता है. उदाहरण स्वरूप, अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा या क्लिंटन की पत्नियों के सरनेम में उनके पति का टाइटल देखा जा सकता है. भारत में भी कई उदाहरण हैं, जैसे राजीव गांधी से शादी के बाद सोनिया गांधी ने गांधी टाइटल अपनाया. ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिनमें महिलाओं की पहचान उनके पति के टाइटल से जुड़ी रही है.

बिहार में महिलाओं को लेकर चौंकाने वाला रिपोर्ट: बिहार में महिला बाल विकास मंत्रालय ने राज्य महिला एवं बाल विकास निगम के माध्यम से एक सर्वे करवाया है. इस सर्वे में महिलाओं से जुड़े सवालों और समस्याओं के बारे में पूछा गया. लगभग 10 लाख महिलाओं से सवाल पूछे गए और चार समूहों में महिलाओं से प्रतिक्रिया ली गई:-

  • जिनकी शादी को 1 साल हो चुका है.
  • जिनकी शादी को 6 महीने हुए हैं.
  • जिनकी शादी नहीं हुई है.
  • जिनकी शादी नहीं हुई है, लेकिन उनके रिश्ते बन चुके हैं.

इन सर्वे में एक सवाल पूछा गया था कि क्या शादी के बाद महिलाएं अपने पिता के टाइटल को रखती हैं या अपने पति के सरनेम को अपनाती हैं. 78% महिलाओं ने बताया कि वह शादी के बाद भी अपने पिता के द्वारा दिए गए टाइटल को ही रखती हैं.

जितेन्द्र वर्मा और ज्योति मिश्रा
जितेन्द्र वर्मा और ज्योति मिश्रा (ETV Bharat)

पिता के सरनेम बदलने की क्या जरूरत?: ईटीवी भारत ने पटना की बोरिंग रोड की रहने वाली ज्योति मिश्रा से बातचीत की. ज्योति मिश्रा ने बताया कि उन्होंने जितेंद्र वर्मा से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उन्होंने अपने पुराने (पिता के) सरनेम को नहीं बदला. उनका और उनके पति का मानना है कि अब जमाना बदल चुका है, और अब यह सही नहीं लगता कि पत्नी का नाम जबरदस्ती पति के सरनेम से जोड़ा जाए.

पुरुष प्रधान समाज का धारणा बदला: ज्योति मिश्रा का कहना है कि पहले पारिवारिक और सामाजिक दबाव होता था, और यह कहा जाता था कि शादी के बाद पत्नी को अपने पति के सरनेम से जुड़ना चाहिए. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. महिलाएं अब जागरूक हो गई हैं और पढ़ाई-लिखाई के साथ आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं. ज्योति मिश्रा ने यह भी बताया कि आजकल पतियों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता.

नाम चेंज करवाना जटिल प्रक्रिया: ज्योति मिश्रा ने बताया कि सरनेम बदलने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई भी लड़की अपना सरनेम चेंज नहीं करना चाहती. उन्हें लगता है कि यह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना बहुत मुश्किल है. इसके अलावा, समाज और परिवार भी अब इस पर ज्यादा दबाव नहीं डालते कि महिलाएं अपना सरनेम बदलें.

''लड़कियां अब अपने करियर को लेकर अधिक जागरूक हो रही हैं, और शादी से पहले वे अक्सर स्नातक या स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी होती हैं. अगर वे अपना सरनेम बदलती हैं, तो उन्हें सभी सर्टिफिकेट और दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता है, जो एक कठिन प्रक्रिया है.''- ज्योति मिश्रा

अपनी पहचान बना रही हैं लड़कियां: जितेंद्र वर्मा ने कहा कि सरनेम को लेकर कोई फर्क नहीं पड़ता. उनकी पत्नी का नाम पहले से ही मिश्रा था और वह उसी नाम से जानी जाती हैं. उनके अनुसार, यह कोई जरूरी नहीं कि पत्नी को पति के टाइटल से पहचाना जाए. उनकी पत्नी ने अपना सरनेम नहीं बदला क्योंकि वह पहले से अपने करियर में सेटल्ड थीं और पहचान भी बना चुकी थीं.

कानूनी लफड़े में कौन पड़े?: जितेंद्र वर्मा ने ईटीवी भारत से कहा कि सरनेम बदलने के लिए कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कोई भी लड़की इसे बदलने का जोखिम नहीं उठाना चाहती. इसमें कई कागजों और दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता है, जिसके लिए कोर्ट और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

लड़कियां हो रही हैं जागरूक: अब समाज में यह धारणा बदलने लगी है कि महिलाओं की पहचान केवल उनके पति के सरनेम से होती है. महिलाएं अब शिक्षा, रोजगार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. इस बदलाव का बड़ा कारण महिलाओं का शिक्षा के प्रति बढ़ता झुकाव और सामाजिक जागरूकता है.

महिला पहले से हैं जागरूक: मधुबनी की प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रमा झा ने भी शादी के बाद अपने सरनेम को नहीं बदला. उनका कहना था कि यदि वह अपना टाइटल बदलतीं तो उन्हें मेडिकल डिग्री से लेकर सभी दस्तावेजों में बदलाव करना पड़ता, जो बहुत कठिन था.

सरकार की जटिल प्रक्रिया: लोगों को सरनेम बदलने में समस्या इसलिए होती है क्योंकि सरकारी दस्तावेजों में बदलाव करना एक कठिन और जटिल प्रक्रिया है. चाहे वह आधार कार्ड हो, पैन कार्ड, पासपोर्ट या बैंक खाते का दस्तावेज हो, हर जगह बदलाव करना जरूरी होता है. इसके अलावा, कोर्ट मैरिज के दौरान भी अगर कोई सरनेम बदलता है, तो सभी दस्तावेजों को सही करना पड़ता है.

समय बदला, सोच बदली: समय के साथ महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है. अब बाल विवाह जैसी प्रथा खत्म हो रही है, और लड़कियों का विवाह अब अधिक उम्र में हो रहा है. इसके साथ ही महिलाएं अब पढ़ाई, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से शामिल हो रही हैं.

लड़कियों का शिक्षा के प्रति झुकाव: महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे अब पहले से ज्यादा खुले हुए हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं. लड़कियां अब अपने सरनेम में बदलाव नहीं करना चाहतीं क्योंकि यह उनकी पहचान से जुड़ा होता है, और इसके लिए उन्हें जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है.

इसलिए नहीं बदल रहीं सरनेम : प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने बताया कि उन्होंने कई महिलाओं को सरनेम बदलने में कठिनाइयों का सामना करते हुए देखा है. उनका मानना है कि शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदमों के साथ महिलाओं का सरनेम बदलने से बचना स्वाभाविक हो गया है.

भविष्य को लेकर हुई जागरूक: महिलाओं का अब अधिक संख्या में नौकरी में जाना और अपने करियर में सफल होना यह साबित करता है कि उनकी पहचान सिर्फ पति के सरनेम से नहीं होनी चाहिए.

सरण पर कोर्ट तक मामला: दिल्ली की दिव्या मोदी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की थी कि शादी के बाद महिलाओं को केवल पति का सरनेम अपनाने के लिए बाध्य करना लैंगिक पूर्वाग्रह और "अनुचित भेदभाव" है. अदालत ने इस याचिका पर नोटिस जारी किया है.

क्या है विवाद: केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि यदि कोई महिला विवाह के बाद अपना पहला उपनाम रखना चाहती है, तो उसे तलाक की प्रति या पति से एनओसी प्रस्तुत करनी होगी.

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