गुवाहाटी: असम की बाइकर लेडी के नाम से मशहूर मीनाक्षी दास ने अकेले दुनिया का भ्रमण कर स्वदेश लौटी हैं. उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद साथी बजाज डोमिनार मोटर साइकिल को राइड करते हुए 371 दिनों में 64 देशों की यात्रा पूरी कर बड़ी उपलब्धि हासिल की. आज वह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. हालांकि, उन्होंने इस मुकाम को हासिल करने के लिए कई चुनौतियों का सामना भी किया. आज हम उसका जिक्र कर रहे हैं.
पेशे से एक जुनूनी बाइक राइडर और फिटनेस ट्रेनर 41 साल की मीनाक्षी ने बाइक को ही अपना साथी बना लिया. एक साल पहले, गुवाहाटी की मीनाक्षी दास अपने पति और बच्चे को घर पर छोड़कर 17 दिसंबर 2023 को विश्व भ्रमण के असाधारण मिशन पर निकलीं. मीनाक्षी ने सफर के दौरान तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए 22 दिसबंर 2024 को दुनिया के 64 देशों का सफर पूरा किया और भारत लौटीं.
असम की महिला मीनाक्षी दास का उद्देश्य दुनिया को यह दिखाना था कि अगर जरूरत पड़े तो महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं. वह 371 दिनों के बाद एक शानदार उपलब्धि के साथ अपने वतन लौटीं, जिस पर सभी को गर्व हो रहा है.
बाइक से 67 देशों की यात्रा करने का अपना कार्यक्रम शुरू करते हुए मीनाक्षी ने17 दिसंबर 2023 को बाइक से गुवाहाटी से नेपाल की यात्रा शुरू की और फिर मुंबई गईं. उसके बाद मीनाक्षी मुंबई से दुबई (यूएई) गईं. हालांकि, सुरक्षा कारणों से 3 देशों-ओमान, इराक और म्यांमार में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली.
मीनाक्षी दास का बाइक से भारत से होते हुए 371 दिनों में 64 देशों की यात्रा
गुवाहाटी से मीनाक्षी दास का पहला गंतव्य नेपाल था. नेपाल से वे कई भारतीय राज्यों को पार करते हुए मुंबई पहुंचीं. मुंबई से उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात के दुबई के लिए उड़ान भरी. वहां से मीनाक्षी की महत्वाकांक्षी एकल यात्रा शुरु हुई.
मीनाक्षी कतर से होते हुए बहरीन, सऊदी अरब, जॉर्डन, ईरान, आर्मेनिया, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया पहुंचीं. वहां से, उन्होंने मोल्दोवा, रोमानिया, सर्बिया, मैसेडोनिया, ग्रीस, अल्बानिया, क्रोएशिया, मोंटेनेग्रो, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया, हंगरी, ऑस्ट्रिया, बोस्निया और हात्सेगोनिया, चेक गणराज्य, इटली, मोनाको की यात्रा की. इस दौरान मीनाक्षी ने कई चुनौतियों का सामना किया. फिर उन्होंने वहां से वेटिकन, स्विट्जरलैंड, लिकटेंस्टीन, जर्मनी, लक्जमबर्ग, लिथुआनिया, बेल्जियम, पोलैंड, नीदरलैंड, स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, वेल्स, डेनमार्क, फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, एस्टोनिया, लातविया, रूस, चीन, कजाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर पहुंची.
कुल 64 देशों को कवर करते हुए उनकी यात्रा 22 दिसंबर को समाप्त हुई. मीनाक्षी न केवल बाइक पर सवार होकर हर देश को पार किया बल्कि उन्होंने हर पल को कैमरे में कैद किया और कई वीडियो ब्लॉग बनाए. सिंगापुर से वे अपनी बाइक के साथ फ्लाइट से मुंबई पहुंचीं. बाधाएं उम्मीद के मुताबिक एक साल का यह सफर मीनाक्षी के लिए आसान नहीं रहा, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और रास्ते में कई बाधाएं भी आईं.
गुवाहाटी लौटने पर मीनाक्षी ने ईटीवी भारत से कहा-
"कुछ देशों में वीजा मिलने में दिक्कतें आईं और दुनिया के कुछ हिस्सों में बाइक को नुकसान पहुंचा. इस सफर के दौरान मुझे धूल भरी आंधी का सामना करना पड़ा और यहां तक कि दुर्घटना भी हुई. उन देशों में रहने वाले भारतीय और कई स्थानीय लोगों ने मेरी सवारी यात्रा के दौरान मदद की. कुछ ने वीजा प्रक्रिया में मदद की, कुछ ने आर्थिक मदद की और कुछ ने रहने और खाने का इंतजाम किया. इस एक साल के सफर में मैंने बहुत कुछ सीखा... बहुत कुछ सीखा."
मीनाक्षी से पूछा गया कि, कैसे उन्होंने चुनौतियों और कठिनाइयों से भरे इस कठिन काम को करने की सोची.मीनाक्षी ने ईटीवी भारत से कहा,
"मैंने महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से यह सफर शुरू किया. कई लोग अक्सर कहते हैं कि महिलाएं कोई काम नहीं कर सकती हैं. इसलिए, अकेले बाइक से 64 देशों की यात्रा करके मैंने एक रिकॉर्ड बनाया है और महिला समाज के लिए जीत हासिल की है."
शायद इस बात का अंदाजा किसी को नहीं है कि, असम की बाइकर लेडी के लिए दोपहिया वाहन से दुनिया भर की यात्रा करना इतना आसान नहीं था. वह इसलिए क्योंकि इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में धन की आवश्यकता थी. इस यात्रा को और भी चुनौतीपूर्ण बनाने वाली बात यह थी कि भारत के बाहर प्रायोजकों और परिवार या रिश्तेदारों की कमी थी. लेकिन दृढ़ निश्चयी मीनाक्षी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मानसिक और शारीरिक दृढ़ता के बल पर अज्ञात क्षेत्रों की खोज में जुट गईं.
अपने सपने को साकार करने के लिए मीनाक्षी ने अपनी जमीन भी गिरवी रख दी. उन्होंने कहा,
" विश्व भ्रमण के दौरान करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया. मैं परिचितों की मदद और सहयोग के कारण यह यात्रा पूरी कर पाई. इस यात्रा पर निकलने के लिए मुझे अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी. हालांकि मुझे सरकार से कोई विशेष सहायता नहीं मिली. असम सरकार की खेल मंत्री नंदिता गरलोसा ने 1 लाख रुपये देकर मेरी मदद की."
पिछले दशकों में मोटरसाइकिल राइड और टूर में काफी बढ़ोतरी हुई है, जिसमें कई बाइक उत्साही लोग टूरिंग और अनदेखे रास्तों को तलाशने में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हालांकि बाइकिंग का चलन कम हुआ है.
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