भोपाल: भोपाल में गैस लीक होने की भयावह घटना के आज 40 साल पूरे हो रहे हैं. 2-3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित फैक्ट्री में मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की गैस लीक होने से हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे. सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस भीषण दुर्घटना में 5,295 लोगों की मृत्यु हुई थी. जबकि गैस पीड़ित संगठनों का आरोप है कि इस दुर्घटना में 22,917 लोगों की मृत्यु हुई है. वहीं इस जहरीली गैस से 5,74,376 लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे.
अगले दिन सुबह लाशों से पटी पड़ी थीं सड़कें
3 दिसंबर की सुबह तक गैस का असर कम हो चला था. लेकिन सड़कों पर चारों तरफ लाशें ही लाशें नजर आ रही थीं. इंसान ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी इस घातक गैस की वजह से जान गंवानी पड़ी. अस्पतालों में लोगों को जगह नहीं मिल रही थी, उनके गेट बंद करने पड़ गए. शुरुआत में डॉक्टरों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. हालांकि मरीजों में एक ही लक्षण मिलने पर डॉक्टर्स ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया.
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अब तक हादसे की भयावहता झेल रहे लोग
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा के अनुसार, ''हादसे के 40 साल बाद भी मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लोगों की जिंदगियों को बर्बाद कर रही है. गैस पीड़ितों पर आज भी इसका असर दिखता है. गैस पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी जन्मजात विकृतियां देखने को मिल रही हैं. यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से यहां प्रदूषण हो रहा है, जिसकी वजह से 42 बस्तियों का पानी ऐसे रसायनों से प्रभावित है, जो जन्मजात विकृतियां पैदा करते हैं. ये रसायन कैंसर, गुर्दे और मस्तिष्क रोगों का कारण बनते हैं.''
इतना बड़ा हादसा, लेकिन कोई भी नहीं गया जेल
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने आगे बताया, ''अगर हम कानूनी पक्ष देखें तो 25 हजार लोगों को मारने, 5 लाख लोगों को घायल करने और आधे भोपाल के भूजल को दूषित करने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. आपको जानकार हैरानी होगी कि कोई भी आरोपी एक दिन के लिए भी जेल नहीं गया. आज यदि गैस पीड़ितों को कुछ हासिल हुआ, तो वो उनके संघर्ष के कारण मिला है. आज भी कई हजारों ऐसे लोग हैं जो न्याय और सही इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन हमारे देश का सिस्टम ऐसे लोगों की सुनता कहां है.''
हजारों लोगों ने रास्ते में तोड़ दिया दम
इतिहासकार सैयद खालिद गनी बताते हैं, '' भोपाल के जेपी नगर स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में 2 दिसंबर की रात जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था. कुछ समय तक तो लोगों को पता ही नहीं चला. रात करीब 11 बजे के बाद जेपी नगर के आसपास की हवा जहरीली होने लगी. रात एक बजे तक पूरे शहर की हवा जहरीली हो गई. फैक्ट्री के पास बनी झुग्गियों में बाहर से आए कुछ मजदूर सो रहे थे. उनकी सोते-सोते ही मृत्यु हो गई. जब गैस लोगों के घरों में घुसी तो लोग घबराकर बाहर निकलने लगे. लेकिन यहां हालात और खराब थे. लोग बस्ती छोड़कर भाग रहे थे, हजारों लोग रास्ते में मृत पड़े थे.''
40 साल बाद भी फैसले का इंतजार
गैस पीड़ितों के लिए काम रहे संगठनों का कहना है कि इस भयावह हादसे को 40 साल बीत चुके हैं. लेकिन अभी भी मामला कोर्ट में लंबित है. जबकि आधे से ज्यादा आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है. बता दें कि इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन था. जिसे 6 दिसंबर 1984 को भोपाल में गिरफ्तार किया गया था. लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उसे सरकारी विमान से दिल्ली भेजा दिया गया. जहां से वह अमेरिका चला गया. इसके बाद फिर कभी वह भारत लौटकर नहीं आया. कोर्ट ने उसे फरार घोषित कर दिया था. इसके बाद अमेरिका के फ्लोरिडा में एंडरसन की 29 सितंबर 2014 को 93 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी.
भोपाल में 1934 में हुई थी यूनियन कार्बाइड की स्थापना
भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना सन 1934 में की गई थी. हादसे के समय यहां लगभग 9 हजार लोग काम करते थे. इस कंपनी की 50.9 प्रतिशत हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड और कार्बन कार्पोरेशन के पास, जबकि 49.1 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत सरकार और शासकीय बैंकों सहित भारतीय निवेशकों के पास थी. भोपाल स्थित फैक्ट्री में बैटरी, कार्बन उत्पाद, वेल्डिंग उपकरण, प्लास्टिक, औद्योगिक रसायन, कीटनाशक और समुद्री उत्पाद बनाए जाते थे. साल 1984 में यह कंपनी देश की 21 सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल थी.