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घाटशिला: वैज्ञानिक विधि से मछली पालन का प्रशिक्षण, 300 से अधिक किसानों को होगा सीधा लाभ

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Published : Oct 9, 2019, 8:11 PM IST

घाटशिला के नक्सल फोकस एरिया गुडाबांधा के किसानों को टाटा स्टील के सौजन्य से वैज्ञानिक विधि से मछली पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस विधि से मछली पालन करने वाले 300 से अधिक किसानों को इसका सीधा लाभ मिल रहा है.

मछली पालन का प्रशिक्षण

घाटशिला: गुडाबांधा क्षेत्र के बीहड़ों में जहां कुछ साल पहले खेत-खलिहानों और सड़कों से बारूद की गंध आती थी और हर तरफ नरक्सलियों के लैंड माइंस, बम मिलते थे आज उस जगह पर उन्नत किस्म की मछलियों की कलकलाहट सुनाई देती है.

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300 से अधिक किसानों को लाभ
घाटशिला के नक्सल फोकस एरिया गुडाबांधा के किसानों को टाटा स्टील के सौजन्य से वैज्ञानिक विधि से मछली पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. वैज्ञानिक विधि से मछली पालन से गुडाबांधा प्रखंड के 300 से अधिक किसानों को इसका सीधा लाभ मिल रहा है. ये किसान अब पहले से बेहतर और आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं जो क्षेत्र के दूसरे किसानों के लिए नाजिर पेश कर रहे हैं.

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वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन
गुराबंदा के बीहड़ों में किसानों की ओर से किए जा रहे बेहतर मछली पालन और इससे जुड़े अन्य सफल व्यवसाय को देखने और सिखने के लिए आसपास के अन्य जगहों से किसानों को भी गुडबांधा प्रखंड लाकर वैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे मछली पालन का तरीका सिखाया जा रहा है. टाटा स्टील बेहतर इस्पात उत्पादन के साथ-साथ बेहतर समाज बनाने की दिशा में भी सराहनीय पहल कर रही है. टाटा ट्रस्ट और टीएसआरडीएस की ओर से गुड़ाबांधा के विभिन्न पंचायतों के 362 किसानों को वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन का तरीका सिखाया जा रहा है, जिसमें 60 से 70 किसान मछली पालन के नर्सरी का काम करते है.

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मछली पालन का तरीका
किसानों के खेत में 90 प्रतिशत अनुदानित सहायता से टाटा स्टील की ओर से100/100 का तालाब निर्माण कराया गया है, जिसमें फिश नर्सरी का काम किया जाता है. इस दौरान दो से ढाई महीने में 90 से 100 किग्रा तक नर्सरी में मछली का जीरा तैयार हो जाता है और इस जीरा को 300 रुपये प्रति किलो की दर से आसपास के अन्य किसानों को बेचा जाता है. इसके साथ ही किसान अपने तालाब में ग्रो-आउट से बड़ी मछली पालन कर 300 किग्रा तक मछली बेच लेते है. बड़ी मछली 120 रूपये किलो बेची जाती है.

क्या है जीवा अमृत जैविक खाद्य
तालाब में जैविक खाद्य को जीवा अमृत भी कहा जाता है. इसमें विशेषतौर पर एक ड्रम में गोबर, गौ-मुत्र, गुड़ और बेसन बरगद पेड़ के नीचे वाली मिट्टी के साथ 10 लीटर पानी के ड्राम में डाल कर दस दिनों तक पेड़ की छांव में रखा जाता है. दस दिनों तक इसे क्लॉकवाइज घुमाकार घोला जाता है. जीवा अमृत जैविक खाद्य तैयार तैयार होने के बाद एक लीटर जैविक खाद्य में दस लीटर पानी मिलाकर तालाब में छोड़ा जाता है जो मछली का चारा होता है, जिससे मछली का ग्रोथ तेज होता है, साथ ही साथ तालाब का पानी भी साफ हो जाता है.

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