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Milky Way के ब्लैक होल में हो रही अद्भूत घटनाएं, जेम्स वेब टेलीस्कोप ने किए कई नए खुलासे - SAGITTARIUS A

हमारी आकाशगंगा के ब्लैक होल में कई अद्भूत घटनाएं देखने को मिली है, जिसे पहली बार देखा गया है. आइए इसके बारे में जानते हैं.

New Insights into Milky Way's Black Hole Sagittarius A
मिल्की वे के ब्लैक होल में देखने को मिली नई और अज़ीब गतिविधि (फोटो - ETV BHARAT VIA COPILOT DESIGNER)

By ETV Bharat Tech Team

Published : Feb 22, 2025, 2:15 PM IST

Updated : Feb 22, 2025, 2:49 PM IST

हैदराबाद: ब्रह्मांड में मौजूद हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की वे के बीच में एक बड़ा ब्लैक होल है, जिसके बारे में काफी चर्चा होती रहती है. आजकल इस मिल्की वे के बीच में मौजूद ब्लैक होल को देखने से ऐसा लग रहा है कि वहां कोई धमाकेदार पार्टी हो रही है. हालांकि, ब्लैक होल में दिखने वाला लेटेस्ट नज़ारा अज़ीब और काफी डरावना भी है, लेकिन दिलचस्प भी है.

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स की टीम नासा के लोकप्रिय जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) का यूज़ करते हुए हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की वे के बीचों-बीच छिपे इस ब्लैक होल की अब तक की सबसे लंबी झलक प्राप्त की है, जिसमें अभी तक की सबसे ज्यादा डिटेल्ड जानने को मिली है.

ब्लैक होल में देखी गई एक नई चीज

मिल्की वे के इस सेंट्रल सुपरमैसिव ब्लैक होल को सैगिटेरियस A* भी कहा जाता है. इसके चारों ओर गैस और धूल का घूमता और एक डिस्क होता है. वो डिस्क आजकल बिना रुके, लगातार चमकते हुए फ्लेयर छोड़ रहा है. कुछ फ्लेयर कुछ ही सेकंड्स के लिए रहती है, लेकिन कुछ फ्लेयर की चमक इतनी तेज है कि वो हर रोज किसी विस्फोट की तरह निकलती है. इसके अलावा कुछ और फ्लेयर्स हैं, जो बहुत कम समय के लिए रहती है, लेकिन महीनों तक बढ़ती रहती है. ब्लैक होल में होने वाली इन सभी एक्टिविटीज़ में एक चीज खास है कि ये अलग-अलग समय के अंतराल में होती है. ये कभी बहुत छोटे अंतराल के लिए हो रही है तो कभी बहुत लंबे समय के लिए हो रही है.

ब्लैक होल के पास हो रही इन नई गतिविधियों की खोज से फिजीशिस्ट्स को ब्लैक होल्स की असली नेचर, उसके आस-पास का माहौल, उस माहौल में होने वाला उनका इंटरएक्शन और मिल्की वे के विकास और डायनमिक्स को समझने में मदद मिल सकती है. इस अध्ययन को 18 फरवरी 2025 के दिन द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में पब्लिश किया गया है.

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फरहाद यूसुफ-ज़ादेह ने कहा, "सभी सुपरमैसिव ब्लैक होल्स में फ्लेयर के होने की उम्मीद होती है, लेकिन हमारा ब्लैक होल खास है. इसमें हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है और यह कभी भी स्थिर नहीं रहता है. हमने 2023 औक 2024 में कई बार इस ब्लैक होल की स्टडी की है और हर बार हमें कुछ अलग देखने को मिला है. हमने हर बार कुछ नया देखा है, जो वाकई में काफी अद्भुत था. हमारे ब्लैक होल में कभी भी कुछ भी एक जैसा नहीं रहता है."

यूसुफ-ज़ादेह मिल्की वे के केंद्र के विशेषज्ञ और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फिजिक्स और एस्ट्रोनॉमी के प्रोफेसर भी हैं. इस स्टडी को सफलतापूर्वक कंडेक्ट करने के लिए यूसुफ-ज़ादेह और उनकी टीम ने JWST के नियर इंफ्रारेड कैमरा (NIRCam) का इस्तेमाल किया है, जो दो इंफ्रारेड कलर्स को एक साथ लंबे समय तक देख सकता है. इस इमेजिंग टूल की मदद से रिसर्चर्स ने सैगिटेरियस A* का कुल 48 घंटे तक अध्ययन किया. 48 घंटे की यह रिसर्च एक साल में 8 से 10 घंटों के हिस्सों में की गई. इस तरह से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिल सकी कि मिल्की वे के बीच में मौजूद ब्लैक होल समय के साथ कैसे बदल रहा है.

ब्लैक होल में होने वाली गतिविधियों का कोई पैटर्न नहीं

यूसुफ-ज़ादेह को उम्मीद थी कि उन्हें और उनकी टीम को फ्लेयर दिखाई देगा, लेकिन सैगिटेरियस A* उनकी उम्मीद से काफी ज्यादा एक्टिव निकला. इसे अगर आसान शब्दों में समझें तो उनके ऑब्ज़रवेशन से पता चला कि फ्लेयर लगातार अलग-अलग समय के लिए और अलग-अलग ब्राइटनेस लेवल के साथ हो रहे हैं. ब्लैक होल के चारों ओर घूमने वाली धूल और गैस की डिस्क ने हर दिन 5-6 बड़े फ्लेयर और कभी-कभी छोटे फ्लेयर बनाए.

यूसुफ-ज़ादेह ने कहा, "हमारे डेटा में हम बार-बार बदलती हुई और उबलती हुई चमक देख रहे थे और फिर अचानक एक बड़ा चमकदार दृश्य देखने को मिला, जो किसी विस्फोट जैसा था और फिर थोड़ी देर के बाद वो शांत हो गया. हमें इस एक्टिविटी में कोई सेम पैटर्न देखने को नहीं मिला. हमें ऐसा लगता है कि इसमें होने वाली एक्टिविटीज़ पूरी तरह से रैंडम है. हमने ब्लैक होल को जितनी बार भी देखा, उसकी गतिविधि हर बार नई और काफी रोमांचक थी."

ब्लैक होल में होने वाली इस अज़ीब एक्टिविटीज़ को एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स अभी भी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं. यूसुफ-ज़ादेह का मानना है कि इसमें दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हो रही है, जिसके कारण छोटे और बड़े फ्लेयर हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर हम एक्रीशन डिस्क को एक नदी माने तो, उस नदी पर बनने वाली छोटी-छोटी लहरें ही छोटे और हल्के फ्लेयर हैं. जिस तरह से नदी में लहरों का कोई पैटर्न नहीं होता है, उसी तरह से ब्लैक होल के एक्रीशन डिस्क में होने वाले छोटे फ्लेयर का भी कोई पैटर्न नहीं है और वो बिल्कुल रैंडम तरीके से होती है. इसके अलावा लंबे समय तक होने वाले बेहद चमकदार फ्लेयर किसी तटीय लहरों की तरह होचे हैं, जो किसी बड़ी घटनाओं के कारण बनती है.

यूसुफ-ज़ादेह का कहना है कि एक्रीशन डिस्क के अंदर होने वाले छोटे बदलावों के कारण हल्के फ्लेयर पैदा होते हैं. खासतौर पर, एक्रीशन डिस्क के अंदर के तूफानी उतार-चढ़ाव गर्म और इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड गैस यानी प्लाज़मा को कंप्रेस कर सकते हैं, जिसके कारण अस्थायी रूप से रेडिएशन का विस्फोट होता है. इस घटना को यूसुफ-ज़ादेह एक सोलर फ्लेयर जैसा मानते हैं.

उन्होंने समझाते हुए कहा कि, जिस तरह से सूर्य का मैग्नेटिक फील्ड एकसाथ एक जगह इकट्ठा होता है, दबाव बनाता है और फिर सौर ज्वाला (Solar Flare) का विस्फोट होता है. ब्लैक होल के आस-पास भी कुछ ऐसा ही होता है, लेकिन वहां के हालात बहुत ज्यादा एनर्जेटिक और भयानक रूप के होते हैं. हालांकि, सूर्य की सतह पर भी कभी-कभी इस तरह की एक्टिविटीज़ होती है, जिसके कारण वहां पर भी बब्ल्स बनते हैं. इसे हम आपको आसान शब्दों में समझाएं तो सूरज और ब्लैक होल, दोनों में भरपूर एनर्जी होती है और दोनों के आस-पास इस तरह की घटनाएं घटती रहती है, लेकिन ब्लैक होल के पास होने वाली ये एक्टिविटीज़ काफी ज्यादा पॉवरफुल और खतरनाक होती है.

छोटी और लंबी वेवलेंथ्स में अंतर

JWST (James Webb Space Telescope) का NIRCam टूल दो अलग-अलग वेवलेंथ्स - 2.1 और 4.8 माइक्रोन को एकसाथ देख सकता है. इसका मतलब है कि यूसुफ-ज़ादेह और उनकी टीम को हर वेवलेंथ के साथ फ्लेयर्स की चमक में होते हुए बदलाव की तुलना करने का मौका मिला. उन्होंने कहा कि, दो वेबलेंथ्स पर लाइट को कैप्चर करने से ऐसा लगता है जैसे हम उसे ब्लैक एंड व्हाइट में नहीं, बल्कि कलर में देख रहे हैं. जब उन्होंने Sagittarius A* को अलग-अलग वेवलेंथ पर देखा तो उसमें होने वाली हलचल का ज्यादा सटीक दृश्य और व्यवहार देखने को मिला.

हालांकि, उन्हें ऐसी परिस्थिति में भी एक अज़ीब चीज देखने को मिली है. रिसर्चर्स को यह समझ में आया कि छोटी वेवलेंथ पर होने वाली घटनाएं अपनी चमक पहले बदलती है, लेकिन लंबी वेवलेंथ पर होने वाली घटनाएं अपनी चमक बाद में बदलती है. युसुफ-ज़ादेह ने बताया, ऐसा पहली बार हुआ, जब हमने वेवलेंथ्स पर मापों होने वाली देरी (Time Delay) देखी. हमने NIRCam के साथ इन वेवलेंथ्स को एक साथ अध्ययन किया और पाया कि लंबी वेवलेंथ छोटी वेवलेंथ के मुकाबले थोड़ी देर बाद पहुंचती है. इन दोनों के टाइम में होने वाला यह अंतर करीब 40 सेकंड का हो सकता है.

इन दोनों के टाइम में होने वाली इस देरी के कारण, हमें ब्लैक होल के आसपास हो रहे फिज़िकल प्रोसेस के बारे में अधिक जानकारी मिलती है. रिसर्चर्स ने बताया कि छोटी वेवलेंथ्स के पार्टिकल्स फ्लेयर के दौरान अपनी एनर्जी को जल्दी खोते हैं, जबकि लंबी वेवलेंथ्स के पार्टिकल्स को फ्लेयर के दौरान अपनी एनर्जी खोने में ज्यादा वक्त लगता है और शायद इसी कारण से छोटी वेवलेंथ्स, लंबी वेवलेंथ्स की तुलना में जल्दी पहुंचती है. ऐसा तब होता है जह पार्टिकल्स मैग्नेटिक फील्ड लाइन्स के चारों ओर घूम रहे होते हैं.

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फरहाद यूसुफ-ज़ादेह ने कहा कि, वो इन रहस्यों के सटीक जवाब को जानने के लिए और इन गतिविधियों को बेहतर तरीके से समझने के लिए JWST (James Webb Space Telescope) टेलीस्कोप का यूज़ करना चाहते हैं ताकि वे सैगिटेरियस A* (Sagittarius A*) को काफी देर तक देख सकें. इसके लिए उन्होंने हाल ही में एक प्रस्ताव भी भेजा है, जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा है कि वो 24 घंटे बिना रुके ब्लैक होल को देखना चाहते हैं. उनका मानना है कि ब्लैक होल के देर तक देखने से नॉइस कम होगा और रिसर्चर्स छोटी-छोटी डिटेल्स को बेहतर तरीके से देख पाएंगे और समझ पाएंगे.

युसुफ-ज़ादेह ने कहा, "आप जब इतनी कमजोर फ्लेयर्स की घटनाओं को देखते हैं तो आपको काफी नॉइस का सामना करना पड़ता है, लेकिन अगर आप इसे 24 घंटे तक लगातार देख पाते हैं तो नॉइस से डील करना थोड़ा आसान हो जाता है और फिर हम कुछ ऐसी चीजों को देख सकते हैं, जिन्हें आज से पहले कभी भी नहीं देखा गया है, जो काफी अद्भूत होगा. इससे हमें यह भी पता चलेगा कि क्या ये फ्लेयर बार-बार होते हैं, क्या उनका कोई पैटर्न होता है या फिर वो ऐसे ही रैंडम तरीके से कभी भी होते रहते हैं."

अब देखना होगा कि हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की वे के बीचों-बीच मौजूद ब्लैक होल में होने वाली ऐसी घटनाओं के बारे में अगली रिसर्च रिपोर्ट कब तक आती है और उसमें हमें इसके बारे में किन नए और अद्भूत रहस्यों का पता चलता है.

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Last Updated : Feb 22, 2025, 2:49 PM IST

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