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चीन की DeepSeek ने बदला दुनिया में AI रेस का समीकरण, जानें और समझें भारत की स्थिति - ARTIFICIAL INTELLIGENCE WARFARE

चीन की डीपसीक एआई मॉडल ने पूरी दुनिया में चल रही एआई टेक्नोलॉजी की होड़ में एक नया मोड़ ला दिया है.

The logo for the app DeepSeek is seen on an iPhone Monday, Jan. 27, 2025, in Washington (AP)
आईफोन में डीपसीक का लोगो (फोटो - AP)

By Brig Rakesh Bhatia

Published : Feb 1, 2025, 3:35 PM IST

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई 21वीं सदी की सबसे डिफाइनिंग टेक्नोलॉजी के रूप में उभर रही है. यह इंडस्ट्री रिवॉल्यूशन के बाद सबसे बड़ी रिवॉल्यूशन है. आजकल पूरी दुनिया में चल रही एआई की रेस में OpenAI, Google और Meta जैसी कंपनियों के साथ, फिलहाल सबसे आगे अमेरिका है. हालांकि, एआई की रेस में अब चीन ने भी अमेरिका को टक्कर देने की पूरी तैयारी कर ली है. हाल ही में चीन की एक स्टार्टअप एआई कंपनी DeepSeek ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया और अमेरिका समेत पूरी दुनिया की एआई कंपनियों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

चाइनीज़ स्टार्टअप कंपनी ने एक एआई चैट मॉडल, DeepSeek R1 पेश किया, जिसने एप्पल ऐप स्टोर में उपलब्ध फ्री ऐप्स की लिस्ट में टॉप का स्थान प्राप्त कर लिया और चैटजीपीटी जैसी दिग्गज एआई मॉडल को भी पीछे छोड़ दिया. इस चाइनीज़ एआई मॉडल ने एआई एफिसिएंसी, लागत में कमी और स्केलेबिलिटी में शानदार सफलता प्राप्त की है.

क्या एआई फील्ड में हुआ गेम चेंजिंग इनोवेशन?

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसे अपनी घरेलू कंपनियों के लिए एक वेक-अप कॉल कहा है. उन्होंने अपने देश की एआई कंपनियों से कहा कि वो इस वेक-अप कॉल से सीखें और इस प्रतिस्पर्धा में जीत को प्राथमिकता दें. यह शानदार उपलब्धि सिर्फ AI रिसर्च और व्यवसायों के लिए ही नहीं, बल्कि सैन्य रणनीति, वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा, और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी भारी महत्व रखती है. ऐसा हो सकता है कि दुनिया भर के देश चीन के सस्ते और प्रभावी एआई सॉल्यूशन्स को अपनी सरकारों के साथ जोड़ने के लिए आगे बढ़ें. इससे देशों के बीच शक्ति संतुलन में बदलाव हो सकता है. भारत को भी तेजी से बदलते जा रहे, इस एआई लैंडस्केप में मिलने वाले नए अवसरों और खतरों, दोनों का सामना करना पड़ सकता है.

डीपसीक स्मार्टफोन ऐप्स, बीजिंग, मंगलवार, 28 जनवरी, 2025 (फोटो - AP)

अभी तक पूरी दुनिया के ज्यादातर देशों का ऐसा मानना है कि एआई कंपनियों को GPT-4 जैसे मॉडल्स को ट्रेनिंग के लिए एक बड़े कंप्यूटेशनल पॉवर में इन्वेस्ट करना आवश्यक होता है. OpenAI ने अब तक कंप्यूटिंग खर्चों में कम से कम $100 मिलियन का निवेश किया है. इन एआई मॉडल्स को चलाने के लिए बड़े डेटाबेस की जरूरत होती है और उसे प्रोसेस करने के लिए $30,000 से $40,000 तक की कीमत वाले हजारों हाई-एंड जीपीयू (GPUs) की आवश्यकता होती है.

चीनी कंपनी डीपसीक ने इन ख़र्चों में 94% की कटौती की और सिर्फ $6 मिलियन के ट्रेनिंग खर्च के साथ एक पॉवरफुल एआई मॉडल बना लिया, जो ओपनएआई के चैटजीपीटी की तरह ही काम करता है. एआई मॉडल को बनाने के लिए खर्च को 94% तक कम करना पूरी दुनिया के लिए हैरान करने वाली बात है. डीपसीक ने इसके लिए कई क्रांतिकारी तकनीकों का उपयोग किया है. उदाहरण के लिए, OpenAI 32-बिट फ्लोटिंग पॉइंट्स का उपयोग करता है, जिसमें एक संख्या को स्टोर करने के लिए 4 बाइट्स मेमोरी की आवश्यकता होती है. DeepSeek एआई मॉडल 8-बिट फ्लोटिंग पॉइंट्स का उपयोग करता है, जिससे इसकी मेमोरी की जरूरतें कम हो जाती हैं. इसे सिर्फ 1 बाइट मेमोरी की आवश्यकता होती है.

डीपसीक बाकी एआई मॉडल से अलग कैसे हैं, इसका एक और उदाहरण हम आपको बताते हैं. दुनियाभर के ज्यादातर एआई मॉडल्स एक बार में एक ही शब्द को पढ़ते हैं और प्रोसेस करते हैं, लेकिन डीपसीक एक बार में पूरे वाक्य को पढ़ सकता है और प्रोसेस कर सकता है, जिससे प्रोसेसिंग टाइम भी कम हो जाता है. GPT-4 को एक जवाब देने में दो सेकंड लगते हैं, जबकि DeepSeek के लिए दावा किया गया है कि यह 90% सटीकता के साथ एक सेकंड में जवाब दे सकता है.

एक आईफोन में डीपसीक का लोगो, वॉशिंग्टन, सोमवार, 27 जनवरी, 2025 (फोटो - AP)

यह काफी खास बात है क्योंकि एआई मॉडल ट्रेनिंग साइकिल के दौरान अरबों शब्दों को प्रोसेस करते हैं. ऐसे में प्रोसेसिंग टाइम को कम करना, इस एआई कंपनी के लिए बड़ी सफलता है. OpenAI का GPT-4 हर कैल्कुलेशन के दौरान 1.8 ट्रिलियन पैरामीटर्स को एक्टिव रखता है. वहीं, DeepSeek एक एडवांस एल्गोरिथ्म का उपयोग करके सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही होने पर स्पेसिफिक न्यूरल पाथवे को एक्टिव करता है. इससे एक समय में सिर्फ 37 बिलियन सक्रिय पैरामीटर्स होते हैं. इससे हमें यह समझ में आता है कि ओपनएआई की तुलना में डीपसीक के एआई मॉडल्स में किसी क्वेरी के प्रति कैल्कुलेशन्स की संख्या काफी कम हो जाती है. यह मॉडल इतनी अच्छी तरह से काम करता है कि Tesla के पूर्व AI निदेशक Andrej Karpathy ने कहा कि डीपसीक ने कम बजट में एक एआई मॉडल को प्रशिक्षण देना बहुत आसान बना दिया है.

टेक की बड़ी कंपनियों के लिए खतरा

DeepSeek की खासियत Nvidia जैसी बड़ी टेक कंपनियों के लिए परेशानी हो सकती है. Nvidia का बड़ा बिजनेस महंगे और पॉवरफुल AI चिप्स बेचने पर आधारित है, लेकिन डीपसीक के मॉडल कम पावर वाले कंप्यूटरों पर भी चल सकते हैं. जैसे ही DeepSeek ने अपने नए प्रशिक्षण तरीकों की घोषणा की, वैसे ही निवेशकों ने समझ लिया कि अब एआई कंपनियों को Nvidia के महंगे हार्डवेयर की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस कारण Nvidia के शेयर की कीमत में एक ही दिन में $589 बिलियन की कमी आ गई.

भारत के सामने क्या चुनौती है?

चीनी एआई मॉडल की सफलता ने भारतीयों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भारत एआई टेक्नोलॉजी की रेस में आगे क्यों नहीं है? Zerodha के संस्थापक और CEO नितिन कामथ ने 'बिजनेस टुडे' के एक आर्टिकल में कहा कि, "मुझे लगता है कि भारत की समस्या हमेशा से अल्पकालिक सोच रही है. यहां समस्याओं का समाधान अक्सर छोटे उपायों या "जुगाड़" से किया जाता है. इस मानसिकता से बड़ी और क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी को सफल बनाने में मुश्किल होती है. इसे प्राप्त करने के लिए एक लंबे समय तक समर्पित दृष्टिकोण और एक सहयोगी इकोसिस्टम की जरूरत है.

स्मार्टफोन स्क्रीन में डीपसीक का पेज, बीजिंग, मंगलवार, 28 जनवरी, 2025 (फोटो - AP)

युद्ध की रणनीतियों को भी बदलेगी एआई टेक्नोलॉजी

चाइनीज एआई मॉडल डीपसीक की प्रगति न सिर्फ व्यापार में बदलाव ला रही है, बल्कि यह किसी युद्ध के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकती है. एआई टेक्नोलॉजी अब युद्ध की रणनीतियों को भी बदल रही है. एआई-संचालित एल्गोरिदम दुश्मन की गतिविधियों का तेजी से विश्लेषण कर सकते हैं, युद्ध के परिणामों की भविष्यवाणी कर सकते हैं और सैन्य लॉजिस्टिक्स को ऑप्टिमाइज कर सकते हैं. चीन की एआई क्षेत्र में यह सफलता, भारत के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.

इस एआई टेक्नोलॉजी से चीन क्या-क्या कर सकता है?

चीन के पास पहले से ही एक एडवांस साइबर युद्ध सिस्टम है. AI की मदद से चीन सोशल मीडिया पर असली जैसी दिखने वाली झूठी कहानियां तेजी से फैला सकता हैं, ताकि लोगों की राय, मानसिकता और कानूनी युद्ध को प्रभावित किया जा सके. इसके कारण भारत की एकता पर भी खतरा हो सकता है. इसके अलावा चीन अपनी डीपसीक वाली एआई टेक्नोलॉजी की मदद से हैकिंग टूल्स भारत के रक्षा ढांचे, परमाणु सुविधाओं और फाइनेंशियल सिस्टम को भी निशाना बना सकते हैं. डीपसीक के ओपन-सोर्स मॉडल की वजह से चीन और उसके सहयोगी एआई को साइबर हमलों में और भी सटीक और ऑटोमैटिक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं.

भारत को क्या करना चाहिए?

इस एआई टेक्नोलॉजी की रेस को बनाए रखने के लिए, भारत को जल्द से जल्द से कार्रवाई करनी जरूरी है. भारत को अपने एआई इकोसिस्टम को जल्द से जल्द मजबूत करने की जरूरत है. भारत के लिए सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में इन्वेस्ट करना, एआई द्वारा संचालित रक्षा तकनीक (Defence Technology) को प्राथमिकता देना काफी महत्वूपर्ण है.

एआई स्टार्टअप्स के लिए सरकारी फंडिंग और अनुसंधान एवं विकास प्रोत्साहन (R&D incentives) को बढ़ावा देने से नए इनोवेशन्स को हौसला मिलेगा और विदेशी मॉडल्स पर निर्भरता कम होगी. चीन की एआई टेक्नोलॉजी वाली युद्ध की क्षमताओं का सामना करने के लिए भारत को भी मिलिट्री-ग्रेड एआई इनोवेशन्स करने की जरूरत है. अगर भारत एआई टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पीछे रह जाता है तो विदेशी एआई मॉडल्स पर भारत की निर्भरता काफी बढ़ जाएगी. इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक नुकसान का खतरा भी हो सकता है.

निष्कर्ष

चाइनीज़ कंपनी डीपसीक का सफल होना और दुनियाभर में ट्रेंड होना एआई की रेस में होने वाले एक बड़े बदलाव को दर्शाता है. इसके कारण एआई डेवलपमेंट पर Nvidia जैसी बड़ी टेक कंपनियों का कंट्रोल कम हो रहा है. पहले एआई टेक्नोलॉजी को सिर्फ एक कमर्शियल टूल की तरह देखा जा रहा था, लेकिन अब इसे नेशनल सिक्योरिटी, मिलिट्री सुपरायरिटी और ग्लोबल इकोनॉमिक कंप्टीशन के लिए सबसे बड़े टूल के रूप में देखा जाने लगा है. ऐसे में एआई के मामले में आने वाले अगले कुछ वर्षों, भारत के द्वारा लिए गए फैसले, यह निर्धारित करेंगे कि भविष्य में एआई-पॉवर्ड वर्ल्ड में भारत की स्थिति क्या होगी.

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