नई दिल्ली:20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस (World's Sparrow Day)मनाया जा रहा है, इस दिन को मनाने का उद्देश्य है गौरेया चिड़िया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके लिए हमारे आस पास का माहौल बेहतर करना. गौरेया चिड़िया को घरेलू चिड़िया भी कहा जाता है क्योंकि ये घरों के अंदर भी घोसले बनकर रह लेती है, एक समय था जब गौरेया चिड़िया विलुप्त होने की कगार पर थी तब दिल्ली में 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गौरेया के संरक्षण के लिए इसे राजकीय पक्षी घोषित किया. इसके बाद दिल्ली के राजकीय पक्षी गौरया के संरक्षण के लिए स्पैरो नाम से कई मुहिम शुरू की गई. इससे दिल्ली में गौरैया की संख्या बढ़ी है. विश्व गौरेया दिवस पर पेश है ईटीवी भारत दिल्ली की स्पेशल रिपोर्ट.
घर के आंगन में आकर चहचहाती हुई दाने चुगने वाली गौरैया एक दशक पहले दिल्ली में समाप्ती की कगार पर पहुंच चुकी थी. इसके पीछे का मुख्य कारण शहरीकरण, घटते पेड़ और बढ़ता प्रदूषण था. लेकिन बीते कुछ सालों से चल रहे जागरूकता अभियान के बाद गौरेया चिड़िया की संख्या में इजाफा हुआ है.
दिल्ली ज़ू में क्या इंतजाम?
सेंट्रल जू अथॉरिटी की डीआईजी और दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क की डायरेक्टर आकांक्षा महाजन के मुताबिक पिछले एक दशक में गौरैया की संख्या में सुधार हुआ है. लोग विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया गया है. दिल्ली जू में बड़ी संख्या में गौरैया रहती हैं. क्योंकि यहां पर हजारों के संख्या में पेड़ पौधे हैं. जिससे तापमान और प्रदूषण भी कम रहता है. दिल्ली जू के अधिकारियों के मुताबिक गौरैया अंडे देने के वक्त अपना घोसले बनाती है. ज्यादातर वो झाड़ियों में रहती हैं. जगह जगह लोग चिड़ियों के लिए घोसले बनाते हैं लेकिन गौरैया इंसानों के बनाए घास फूस के घोसलों में बहुत कम आती हैं. अगर लकड़ी का घोसला बना दिया जाए, तो उसमें गौरैया घासफूस लाकर अपना घोसला बनाकर आराम से रह सकती है.
गौरैया मनुष्यों के बीच रहने वाली पक्षी है. दिल्ली जू में जगह-जगह लकड़ी के घोसले बनाए गए हैं, जिनमें गौरैया रहती हैं. गौरैया पेड़ पौधों के बीच रहकर दानेा खाकर जी सकती है. जो दिल्ली जू में उन्हे पर्याप्त मात्रा में दाना पानी मिल जाता है.
दिल्ली में इन कारणों से विलुप्त हो रहीं गौरैया
दिल्ली में शहरीकरण के साथ पेड़ पौधे भी कम होते चले गए. इमारतें बनती गईं और इमारतों से बालकनी और खिड़कियां भी गायब होते चले गए. घरों में घोंसले बनाकर रहने वाली गौरैया के लिए सुराखों की कमी पड़ने लगी. कीड़े मारने वाली कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ने लगा. पौधों की कमी होने लगी इन सब कारणों के गौरैया की कमी होती गई. हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस इसीलिए बनाए जाता है, जिससे लोगों को गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके.