दुर्ग:आईवीएफ तकनीक निःसंतान लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है. इस तकनीक से निःसंतान दंपति अपने बच्च को जन्म देते हैं. एक दम्पति के लिए मां-बाप बनना उनके जीवन का अनमोल क्षण होता है, लेकिन कभी-कभी काफी प्रयासों के बाद भी वे अपने घर के आंगन में बच्चों की किलकारियों को सुनने से वंचित रह जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो दुनियाभर में लगभग 180 मिलियन से ज्यादा दंपति नि:संतान हैं. ऐसे में निःसंतान दंपति के लिए आईवीएफ तकनीक काफी कारगर साबित हो रहा है.
पिछले कुछ सालों में बढ़ा है चलन:दरअसल, मेडिकल साइंस ने बांझपन का इलाज वर्षों पहले ही निकाल लिया था. लंबी स्टडी और अध्ययनों के बाद गर्भधारण की कृत्रिम प्रक्रिया ढूंढ ली गई है. इस प्रक्रिया को आईवीएफ कहा जाता है. आईवीएफ का चलन पिछले कुछ सालों से काफी तेजी से बढ़ा है. किसी कारण से अगर महिला मां नहीं बन पाती है, तो यह तकनीक उनके लिए वरदान है. बांझपन की समस्या से छुटकारा पाने के लिए इस तकनीक के बारे में पीड़ितों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष दुनियाभर में विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जाता है. हर साल 25 जुलाई को ये दिन मनाया जाता है.
कब और क्यों मनाया जाता है आईवीएफ दिवस: हर साल 25 जुलाई को आईवीएफ दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत 1978 से हुई, जब आईवीएफ के जरिए पहले बच्चे का जन्म हुआ. तब से हर साल 25 जुलाई को विश्व भ्रूणविज्ञानी दिवस मनाया जाने लगा. इस बारे में ईटीवी भारत ने भिलाई के प्रसिद्ध सृजन टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर की डायरेक्टर डॉक्टर संगीता सिन्हा से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, "आईवीएफ डे 25 जुलाई को इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन साल 1978 में लुईस जॉय ब्राउन, जो आईवीएफ प्रक्रिया से जन्मी पहली बच्ची थी. बच्ची की मां लेस्ले ब्राउन को फेलोपियन ट्यूब ब्लॉक होने के चलते लंबे समय तक गर्भधारण करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था, जिसके बाद उन्होंने आईवीएफ प्रक्रिया का सहारा लिया और बिना किसी समस्या के एक हेल्दी बच्चे को जन्म भी दिया. इसी दिन से इस प्रक्रिया को शिशुओं के गर्भधारण के लिए प्रमाणिक और विश्वसनीय माना जाता है."
आधुनिक युग में बढ़ रही आईवीएफ की डिमांड: डॉ. संगीता सिन्हा ने बताया कि, "आईवीएफ की प्रक्रिया की पिछले काफी समय से डिमांड बढ़ रही है. कंसीव नहीं कर पाने वाले कपल्स के लिए काफी लाभकारी साबित होता है, हालांकि यह महिलाओं के लिए थोड़ी पीड़ादायक जरूर होती है, लेकिन इस प्रक्रिया को कराने से होने ताला रिस्क रेट काफी कम होता है. सृजन टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर में अब तक सैकड़ों दंपत्तियां ने आईवीएफ का सहारा लिया. वही, आज उनके घर खुशियों की किलकारी गूंज रही है."
क्या है आईवीएफ प्रक्रिया:आईवीएफ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शुक्राणु और अंडे को महिला के शरीर में न बनाकर लैब में बनाया जाता है, जिसके बाद अंडों को फर्टिलाइज किया जाता है और यूट्रस में डाला जाता है. आईवीएफ या एंब्रियोलॉजी की प्रक्रिया को पूरा होने में 3 से 6 हफ्तों का समय लग जाता है. कम उम्र की महिलाओं में यह ज्यादातर सफल होता है. आमतौर पर यह प्रक्रिया काफी सुरक्षित होती है. कुछ मामलों में इसके साइड इफेक्ट्स भी देखे जा सकते हैं. इसमें इन विट्रो फर्टिलाइजेशन होता है, इसे आम बोलचाल में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं. यह प्राकृतिक तौर पर गर्भधारण में विफल हुए दंपतियों के लिए गर्भधारण का कृत्रिम माध्यम होता है.