कोरबा की महिला लोको पायलट, घर में मां तो ड्यूटी पर निभा रही मालगाड़ी की जिम्मेदारी
International Womens Day महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं. चाहे सीमा पर तैनात होकर देश की रक्षा करनी हो या पायलट बनकर आसमान की उड़ान भरनी हो. महिलाएं करियर के सभी फील्ड में नए कीर्तिमान रच रही हैं. आज महिला दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ के कोरबा की महिला लोको पायलट से मिलवाने जा रहे हैं. वे दिन के 12 घंटे मालगाड़ी चलाती हैं. साथ ही घर लौटते ही मां और घर का कर्तव्य भी निभा रही हैं. Womens Day 2024
कोरबा:छत्तीसगढ़ के कोरबा रेलखंड में पदस्थ महिला असिस्टेंट लोको पायलट ने महिलाओं के लिए मिसाल कायम की है. उनकी कहानी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की सीख देती है. कोरबा रेलखंड में पदस्थ रीमा शुक्ला असिस्टेंट लोको पायलट के पद पर 4 साल से काम कर रही हैं. ईटीवी भारत की टीम ने उनसे बात की और जानने का प्रयास किया कि महिला लोको पायलट को किन चुनौतियों व परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
"पुरुष प्रधान काम, इसलिए थोड़ा मुश्किल":असिस्टेंट लोको पायलट रीमा शुक्ला ने बताया, "लोको पायलट के काम को आमतौर पर पुरुष प्रधान काम ही समझा जाता है. यह थोड़ा कठिन काम जरूर है. दिन के 12 घंटे की ड्यूटी देनी होती है. इसके बाद घर जाकर भी सामंजस्य बिठाना पड़ता है. लेकिन महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं रही. वह लगातार सशक्त हो रही हैं. अब किसी भी काम को पूरा करने में वह पीछे नहीं हैं. महिलाएं यदि ठान लें, तो वह सभी काम कर सकती हैं.
सहकर्मी और परिवार का मिला सपोर्ट :रीमा शुक्ला ने आगे बताया, "यह कार्य पुरुष प्रधान जरूर है, लेकिन सहकर्मी अगर सपोर्ट करें और हम विशुद्ध तौर पर प्रोफेशनल बनकर रहें तो ज्यादा दिक्कत नहीं होती. घर वालों का सपोर्ट हो तो काम आसान हो जाता है. हमारा काम लगभग 12 घंटे का होता है. लोको पायलट के तौर पर काम करना शुरू किया, तब से ही अपनी मानसिकता बना ली कि 12 घंटे काम करना है. इसलिए ज्यादातर समय काम करते हुए ही निकल जाता है. तो हम कोशिश करते हैं कि अपने काम को एंजॉय करें और इसी तरह से हमारा जीवन चल रहा है."
"बच्चे को कम समय दे पाने का है गिल्ट":परिवार के बारे में बात करते हुए रीमा बताती है कि, "परिवार में एक छोटी बच्ची भी है. 12 घंटे काम करने के बाद जब घर लौटते हैं, तब बेटी को भी समय देना महत्वपूर्ण हो जाता है. बच्चों के लिए तो 24 घंटे भी कम पड़ जाते हैं. बच्चे हमारे बेहद करीब होते हैं, उसे कम समय दे पाने का गिल्ट मन में जरूर आता है. लेकिन एक दिन आएगा जब वह समझेगी. मेरे काम की कठिनाईयों के साथ ही मेरी जिम्मेदारी को वह समझ कर मुझ पर गर्व महसूस करेगी. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे अपने पेरेंट्स को काम करता हुआ देखें और उनके काम पर गर्व करें."
450 में सिर्फ 8 महिला लोको पायलट:असिस्टेंट लोको पायलट रीमा बताती है कि, "ग्रीन सिग्नल नहीं मिलने पर कई बार घंटों इंजन में ही बैठकर बिताना पड़ता है. गर्मी के साथ ही कई असुविधाएं होती हैं. लेकिन अब सिस्टम काफी अपडेट हो चुका है. ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता. ज्यादातर लोको पायलट पुरुष ही होते हैं, लेकिन वह सभी सहकर्मी है और मदद करते हैं. इससे काम आसान भी होता है. कोरबा में कुल 450 लोको पायलट काम करते हैं. इसमें महिलाओं की संख्या केवल 8 से 10 ही है. लेकिन सभी अपना काम बेहतर तरीके से अंजाम देती हैं. हमें अपने काम पर गर्व है. इसे करने में काफी मजा आता है और इसी भागम भाग के बीच हमारा जीवन चल रहा है, जिससे मैं खुश हूं."
गौरतलब है कि कोरबा से औसतन 50 रैक कोयला प्रतिदिन देश के कई राज्यों को डिस्पैच किया जाता है. ताकि वहां के पावर प्लांट चलते रहे और लोगों को बिजली मिलती है. इन कोयले की खेप को मालगाड़ी के जरिये लाया जाता है. इस काम में महिलाएं भी अब पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रही हैं. कोरबा में पदस्थ महिला लोको पायलट की संख्या कम जरूर है, लेकिन उनका योगदान पुरूषों से कम नहीं है.