शिमला: 40 विधायकों की ताकत और तीन निर्दलीयों के समर्थन वाली सुखविंदर सिंह सरकार राज्यसभा सीट के लिए भाजपा के रचे गए भाजपा के चक्रव्यूह को समझ नहीं पाई. इस चक्रव्यूह को भेदना तो दूर, कांग्रेस इस व्यूह रचना का आकलन करने में भी चूक गई. आलम ये है कि भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह शिमला में थे और उन्होंने कांग्रेस के नाराज विधायकों के साथ बातचीत भी की, लेकिन तमाम खुफिया सहूलियतें होने के बावजूद कांग्रेस सरकार इस 'खेला' को समझ नहीं पाई.
सीएम सुक्खू ने अपनों की नाराजगी को हल्के में लिया
एक प्रचंड बहुमत वाली सरकार एक साल से कुछ अधिक समय में ही इस तरह से छिन्न-भिन्न हो जाए, ऐसा हिमाचल के इतिहास में नहीं देखा गया. बेशक ये असाधारण घटनाक्रम था, लेकिन इसके संकेत सरकार के गठन के समय से ही मिलने लगे थे. सुखविंदर सरकार को मित्रों की सरकार कहा जाने लगा था. कांगड़ा के किले की नाराजगी को सुखविंदर सरकार ने हल्के में लिया. कद्दावर राजनेता प्रेम कुमार धूमल को पराजित करने वाले राजेंद्र राणा का मान-सम्मान भी नहीं हुआ. सुधीर शर्मा और राजेंद्र राणा लंबे समय से ये संकेत दे रहे थे कि वो घनघोर नाराज हैं, लेकिन सरकार की तरफ से उनकी नाराजगी को दूर करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ. फिर लाहौल के विधायक रवि ठाकुर परोक्ष रूप से नाराजगी जता रहे थे. इंद्रदत्त लखनपाल भी हाशिए पर महसूस कर रहे थे. राजेंद्र राणा और सुधीर शर्मा निरंतर युवाओं के पक्ष में खड़े हुए कि लंबित रिजल्ट निकलना चाहिए. वे धरने पर बैठे युवाओं से मिले और उनके आंदोलन के लिए अपना पर्स खाली कर डोनेशन भी दिया.
हर्ष महाजन को हल्का समझने की गलती
उधर, हर्ष महाजन सियासत के चतुर खिलाड़ी हैं. कांग्रेस में वे लंबे समय तक वीरभद्र सिंह के करीबी रहे. वे राजनीति के दाव पेंच बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. उन्होंने कांग्रेस के कई नेताओं को विधायक बनाया यानी कांग्रेस के कई नेताओं को राजनीति में हाथ थामकर आगे बढ़ाया. खुद सीएम सुखविंदर सिंह के वे मेंटर रहे हैं. ऐसे में वे भी कुछ सोच समझकर ही मैदान में उतरे थे. वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह शिमला में थे. उनकी मौजूदगी को भी कांग्रेस नहीं भांप पाई कि वे क्या कर सकते हैं.