शिमला:हिमाचल में 1 जून को लोकसभा की चार और विधानसभा की छह सीटों पर उपचुनाव होना है. जिसके लिए 17 मई को नामांकन वापसी की समय सीमा समाप्त होते ही चुनाव चिन्ह भी आवंटित किए जाएंगे. चुनाव आयोग की व्यवस्था के तहत प्रत्येक ईवीएम में हर बटन के सामने प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह अंकित होगा. वहीं, प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह के साथ ही ईवीएम में एक नोटा का बटन भी अंकित रहेगा. ऐसे में मतदाताओं के मन में सवाल उठ रहा होगा कि नोटा को प्रत्याशियों से अधिक वोट पर मिलने पर क्या होगा? तो इसका जवाब है कि सबसे ज्यादा वोट मिलने पर भी नोटा चुनाव नहीं जीत सकता है. निर्वाचन विभाग के मुताबिक इस स्थिति में नोटा के बाद दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रत्याशी को विजय घोषित किया जाता है.
क्या होता है NOTA?
चुनाव में अगर मतदाताओं को किसी भी राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवार पसंद न हो तो इस स्थिति में वोटर के पास ईवीएम में नोटा का विकल्प मौजूद रहता है. नोटा का मतलब होता है 'नन ऑफ द एबव' यानी इनमें से कोई भी नहीं है. इस तरह से चुनाव के दौरान वोटरों के पास अब एक विकल्प इनमें से कोई नहीं का बटन दबाने का भी होता है. यह विकल्प नोटा के तौर पर उपलब्ध होता है. नोटा बटन को दबाने का मतलब है कि मतदाता को चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है.
हिमाचल में कब आया था NOTA का विकल्प?
बता दें कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. वहीं, हिमाचल में पहली बार वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में ईवीएम पर मतदाताओं ने नोटा बटन को प्रयोग में लाया था. गौरतलब है कि गिनती के समय नोटा पर डाले गए वोट को भी गिना जाता है. इस दौरान कितने मतदाताओं ने नोटा में वोट किया, इसका भी आकलन किया जाता है.