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कांग्रेस में भगदड़ के बीच पार्टी नेताओं को 1977 और 1980 के सियासी घटनाक्रम जैसी आस! जानें तब क्या हुआ था? - Lok Sabha Elections 2024 - LOK SABHA ELECTIONS 2024

During Lok Sabha Elections 2024 Congress leaders remembered the victory of 1980 उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी में ऐसी भगदड़ मची है कि नेतृत्व समझ नहीं पा रहा कि क्या करे. वोटिंग को अब महीना भर भी नहीं बचा है, ऐसे में पार्टी नेताओं को पुरानी सुनहरी यादों का भरोसा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता 1977 और 1980 के सियासी घटनाक्रम की तरह आस लगाए बैठे हैं. ये तो 4 जून 2024 को ही पता चल पाएगा कि कांग्रेस मुगालते में है या फिर वाकई वैसा ही कुछ होता है.

Lok Sabha elections 2024
लोकसभा चुनाव 2024

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 21, 2024, 7:15 AM IST

Updated : Mar 21, 2024, 3:52 PM IST

कांग्रेस को याद आया 1977 का घटनाक्रम.

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस में मची भगदड़ के बीच अब कांग्रेसी नेता साल 1977 का जिक्र करते हुए इस बात का दावा कर रहे हैं, कि जो घटना देश में 1977 में घटी थी, उसी तरह की घटना के आसार फिर से देखे जा रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस पार्टी 1977 में मची भगदड़ के बाद जिस तरह से दोगुनी ताकत के साथ उभरी थी, उसी तरह इस बार भी बेहतर ढंग से उभरेगी.

कांग्रेस को चमत्कार की उम्मीद! दरअसल, इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को लगातार मिल रहे झटके कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं. यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं ने अब भाजपा में शामिल हो रहे अपने नेताओं पर सवाल उठाने भी शुरू कर दिए हैं. आखिर क्या है 1977 की घटना. क्यों इस घटना का जिक्र करते हुए कांग्रेस आश्वस्त नजर आ रही है? हम आपको बताते हैं.

1977 के सियासी घटनाक्रम जैसे हालात:उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटे हैं, जिन पर 19 अप्रैल को मतदान होना है. उससे पहले ही उत्तराखंड की राजनीति में भगदड़ की स्थिति मची हुई है. वर्तमान स्थिति यह है कि कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थाम रहे हैं जो विपक्षी दल कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. जिसके चलते कांग्रेस की ओर से बनाई गई चुनाव जीतने की रणनीतियां फेल होती दिखाई दे रही हैं. ऐसे में नेताओं के पार्टी छोड़ कर जाने से पार्टी को नए सिरे से रणनीतियों पर काम करना होगा. कांग्रेस का दामन छोड़ रहे नेताओं को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस को 1977 से सियासी घटनाक्रम से उम्मीद नजर आ रही है.

क्या था 1977 का सियासी घटनाक्रम?दरअसल, साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी. इमरजेंसी खत्म होने के तत्काल बाद 1977 में लोकसभा के चुनाव कराए गए थे. इमरजेंसी का इतना बड़ा असर रहा कि कांग्रेस के तमाम बड़े नेता कांग्रेस का दामन छोड़ जनता पार्टी में चले गए थे. क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए उसे दौरान तमाम विपक्षी दलों जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी ने एक होकर जनता पार्टी बनायी थी. लिहाजा 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान जनता पार्टी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और उस दौरान मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने. 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से हार गईं.

जनता पार्टी ने जीत ली थी सभी चार सीटें:साल 1977 लोकसभा चुनाव के दौरान वर्तमान उत्तराखंड राज्य का क्षेत्र उस समय उत्तर प्रदेश में था. लिहाजा इस पर्वतीय क्षेत्र में लोकसभा की कुल चार सीटें थी. जिसमें टिहरी लोकसभा सीट, अल्मोड़ा लोकसभा सीट, नैनीताल लोकसभा सीट और गढ़वाल लोकसभा सीट शामिल थीं. उस दौरान कांग्रेस पार्टी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस का दामन छोड़ जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. उस दौरान आपातकाल की वजह से लोगों में तात्कालीन प्रधानमंत्री को लेकर इतना रोष हो गया था कि कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसका नतीजा यह रहा कि 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनी. हालांकि, यह सरकार सिर्फ 3 साल भी नहीं चल पाई.

1980 में हुई थी कांग्रेस की जोरदार वापसी:इसके बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने दोगुनी ताकत के साथ चुनाव लड़ा और सत्ता पर काबिज हुई. 1980 में हुए चुनाव के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा समेत तमाम नेता दोबारा से कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसके अलावा कांग्रेस ने 1980 का लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए बढ़ चढ़कर युवाओं को जोड़ा था. तमाम विपक्षी नेता भी कांग्रेस का हिस्सा बने, इसका ही नतीजा रहा कि कांग्रेस दोबारा से सत्ता पर काबिज हो गई. ऐसे ही कुछ स्थिति उत्तराखंड राज्य में इन दिनों देखी जा रही है. उत्तराखंड कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेसी नेता इस बार पर जोर दे रहे हैं कि इससे कांग्रेस खत्म नहीं होगी, बल्कि 1980 की तरह ही कांग्रेस दोहरी ताकत से सत्ता पर काबिज हो जाएगी.

कांग्रेस छोड़कर गए नेता लौट आए थे:वर्तमान उत्तराखंड का क्षेत्र राज्य गठन से पहले उत्तर प्रदेश में था. उस दौरान इस पर्वतीय क्षेत्र में चार लोकसभा की सीटें थीं. साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इस पर्वतीय क्षेत्र की चारों लोकसभा सीटों पर जनता पार्टी काबिज हो गई थी. लेकिन फिर साल 1980 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान यह चारों लोकसभा की सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं. दरअसल 1980 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले ही 1977 के दौरान जनता पार्टी में शामिल हुए तमाम नेता वापस कांग्रेस में शामिल हो गए थे. लिहाजा कांग्रेस पार्टी से अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर हरीश रावत, नैनीताल लोकसभा सीट पर एनडी तिवारी, टिहरी लोकसभा सीट पर त्रेपन सिंह नेगी और गढ़वाल लोकसभा सीट पर हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव जीते थे.

हीरा सिंह बिष्ट को याद आया पुराना सियासी घटनाक्रम:वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट ने साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि उस दौरान उन्होंने टिहरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. उनसे संजय गांधी ने टिहरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को कहा था. लेकिन कांग्रेस पार्टी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने जनता पार्टी में शामिल होकर उन्हें चुनाव हरा दिया. इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने हार नहीं मानी और फिर युवाओं को एक साथ जोड़ने के साथ ही जो नेता इमरजेंसी के चलते पार्टी छोड़ गए थे, उनको अपने साथ जोड़ा. इसके बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई.

हीरा सिंह बिष्ट ने बीजेपी पर लगाए आरोप:हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि वर्तमान समय में पीएम नरेंद्र मोदी के पास बड़े हथियार हैं. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल कराया जा रहा है. कांग्रेस के जो बड़े नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उसकी मुख्य वजह है कि भाजपा ने इन नेताओं को नोटिस दिखा दिया है कि भाजपा के खिलाफ बोलोगे तो जेल जाओगे. ऐसे में कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता स्वाभिमान की लड़ाई भूल अपने आपको बचाने के लिए भाजपा में भाग गए. साथ ही कहा कि भाजपा, बदले की भावना से नेताओं की कमियां निकल रही है. जबकि भाजपा नेताओं के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगी हुई है.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?राजनीतिक जानकार जय सिंह रावत ने कहा कि आपातकाल के बाद साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता कांग्रेस छोड़ अन्य दलों में शामिल हो गए थे. साथ ही जनता पार्टी से चुनाव लड़ा था. उस दौरान इस पर्वतीय क्षेत्र (वर्तमान उत्तराखंड) के भी तमाम नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. उनमें यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा भी शामिल थे. साथ ही कहा कि भले ही हेमवती नंदन बहुगुणा इस पर्वतीय क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहे थे, लेकिन उनका गढ़वाल में बड़ा वर्चस्व था. जिसके चलते इस पर्वतीय क्षेत्र से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. साथ ही कहा कि इतिहास अपने आपको दोहराता है, तो हो सकता है कि फिर इतिहास अपने आपको दोहराए. लेकिन जरूरी नहीं है कि बिलकुल वैसा ही हो.

1977 के दौरान पर्वतीय क्षेत्र में लोकसभा सीटों की स्थिति-

  1. 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अल्मोड़ा लोकसभा सीट से मुरली मनोहर जोशी जनता पार्टी से चुनाव जीते थे. कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र सिंह बिष्ट को हार का सामना करना पड़ा था.
  2. नैनीताल लोकसभा सीट पर जनता पार्टी से भारत भूषण चुनाव जीते थे. कांग्रेस प्रत्याशी केसी पंत (गोविंद बल्लभ पंत के बेटे) को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
  3. टिहरी लोकसभा सीट से कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हुए त्रेपन सिंह नेगी चुनाव जीते थे. कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट को हार का सामना करना पड़ा था.
  4. गढ़वाल लोकसभा सीट से कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हुए जगन्नाथ शर्मा चुनाव जीते थे. कांग्रेस प्रत्याशी चंद्र मोहन सिंह को हार का सामना करना पड़ा था.

कमजोर कांग्रेस में जान फूंकने की कवायद: दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में 1977 की घटना का जिक्र इस वजह से भी हो रहा है क्योंकि 1977 के दौरान तमाम विपक्षी दलों ने एकजुट होकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तमाम विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा को सत्ता से बाहर करने की जुगत में जुटे हुए हैं. हालांकि कांग्रेस के तमाम नेता चाहे वह प्रदेश स्तर के हों, या फिर राष्ट्रीय स्तर के, अपने बयानों में 1977 की घटना का जिक्र करते दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस पार्टी का मानना है कि 1977 में हुई घटना से कांग्रेस कमजोर हो गई थी. लेकिन युवाओं और तमाम नेताओं को एकजुट कर दोहरी ताकत से सत्ता पर काबिज हुई थी. लिहाजा इस बार भी सभी विपक्षी दल एकजुट होकर दोहरी ताकत के साथ सत्ता पर काबिज होंगे.

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Last Updated : Mar 21, 2024, 3:52 PM IST

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