उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भैलो बग्वाल का अनोखी परंपरा, यहां सामूहिक मनाई जाती है दिवाली

उत्तराखंड की दिवाली में भैलो के साथ लगता है मंडाण, जमकर मनता है जश्न

DHANOLTI BHAILO BAGWAL
पहाड़ी क्षेत्रों में भैलो बग्वाल का अनोखी परंपरा (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 1, 2024, 7:16 PM IST

Updated : Nov 1, 2024, 8:03 PM IST

धनोल्टी:देशभर में दीपावाली त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भी बड़ी ही धूमधाम से रोशनी के पर्व को सेलिब्रेट किया जा रहा है. उत्तराखंड में दीपावली के कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. उत्तराखंड में दीपावली भैलों बग्वाल के रूप मे मनाई जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों मे दीपावली के दो दिन भैलों खेला जाता है.

दीपावाली से पहले सभी लोग अपने घरों की साफ सफाई करते हैं. साथ ही नाते रिश्तेदारों को घर आने का बुलावा भेजते हैं. इसके बाद धनतेरस से ही दीपावली की शुरुआत हो जाती है. दीपावली के मौके पर प्रवासी लोग भी सपरिवार घर पहुंचते हैं. इसके बाद मेहमान नवाजी शुरू होती है. सभी लोग गांव के पंचायती चौक पर एकत्रित होकर एक दूसरे को दीपावली की बधाई देते हैं. जिसके बाद गांव में सामूहिक दिवाली मनाई जाती है.

पहाड़ी क्षेत्रों में भैलो बग्वाल का अनोखी परंपरा (ETV BHARAT)

दीपावली के दिन लोग विशेष कर उड़द की दाल के पकोड़े, गहत से भरी पूड़ी पापड़ी बनाते हैं. सामूहिक भोज से पहले सभी अपने अपने घरों में पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इसके बाद सभी ने एक दूसरों के घरों में जाकर पकवानों का आदान-प्रदान करते हैं. इसके बाद पारम्परिक सामूहिक नृत्य के साथ शुरू भैलों खेला जाता है.

भैलो पहाड़ों की अनोखी परंपरा:उत्तराखंड में पुराने समय से ही दिवाली या बग्वाल मनाने के लिए भैलो का इस्तेमाल किया जाता है. भैलों को चीड़ की लकड़ी से बनाया जाता है. भैलो बनाने के लिए बच्चों और युवाओं में काफी क्रेज होता है. इसके लिए दीपावली से पहले जंगलों से एक विशेष प्रकार की मजबूत बेल( लगला) लाया जाता है. हरी बेल के एक सिरे में चीड़ की लकड़ी को फाड़कर मजबूती से बांधा जाता है. मान्यता के अनुसार एक परिवार में (1,3,5,7,9, विषम संख्या) में भैलों बनाये जाते हैं. दीपावली के दिन सबसे पहले भैलो की पूजा की जाती है. भैलो की पूजा के बाद घर आये मेहमानों, आगन्तुकों के साथ भोजन किया जाता है. उसके बाद सभी ग्रामीण पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ गांव के बहार खेतों में जाकर आपस में भैलो खेलते हैं.

पढे़ं-खास होती है उत्तराखंड की दिवाली, यहां भैलो के साथ लगता है मंडाण, जमकर मनता है जश्न

Last Updated : Nov 1, 2024, 8:03 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details