वाराणसी: लोकसभा चुनाव के परिणाम में पूर्वांचल में बीजेपी को गहरा घाव मिला है. पूर्वांचल की 12 लोकसभा सीटों में 9 सीटों पर बीजेपी को करारी हार मिली है. बड़ी बात यह है कि 9 सीटों के दर्द के साथ अब बीजेपी को लगभग 50 विधानसभा सीटों के हाथ से निकलने का डर भी सता रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि यदि आज के परिवेश में विधानसभा चुनाव होते हैं तो निश्चित रूप से बीजेपी को पूर्वांचल में लगभग 50 विधानसभा सीटों पर डेंट लग सकता है, जिसमें बनारस की भी कुछ सीट शामिल हो सकती हैं.
एक लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र जुड़े होते हैं. इस हिसाब से पूर्वांचल की लगभग 12 लोकसभा सीटों जिसमें वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, भदोही, बलिया, मऊ, रॉबर्ट्सगंज, आजमगढ़, लालगंज, जौनपुर, मछली शहर, सलेमपुर शामिल हैं. जिनमें लगभग 65 विधानसभा क्षेत्र आते हैं.
2022 के विधानसभा में बीजेपी ने यहां कुल 40 सीटें जीती थीं. हालांकि आजमगढ़, गाजीपुर की 17 सीटों पर पार्टी को करारी हार का भी सामना करना पड़ा था. ऐसे में इस बार रॉबर्ट्सगंज, जौनपुर, बलिया, चंदौली और मऊ में बीजेपी की हार ने विधानसभा चुनाव में मजबूत जीत के दावे को लेकर चिंता और भी ज्यादा बढ़ा दी है. इस बार बीजेपी के सामने विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना भी एक बड़ी चुनौती है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. विजय नारायण कहते हैं कि यदि लोकसभा चुनाव के पहले 2022 विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो पूर्वांचल में आजमगढ़, गाजीपुर को छोड़ दें तो बीजेपी का ठीक प्रदर्शन था. ज्यादातर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा या उसके सहयोगी दल के जो प्रत्याशी हैं उनमें सेकेंड फाइटर समाजवादी पार्टी रही है. ऐसे में यदि वर्तमान समय में चुनाव होते हैं तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी की वर्तमान हावी छवि बीजेपी का बड़ा नुकसान कर सकती है.
ऐसे में बीजेपी को मजबूती के साथ रणनीति बनानी होगी. हालांकि, अभी विधानसभा चुनाव को 2 साल है. राजनीतिक परिवेश समय-समय पर बदलता रहता है. लेकिन निश्चित रूप से अभी से ही बीजेपी को इस ओर काम करने की जरूरत है, ताकि लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान को वह विधानसभा चुनाव मजबूती के साथ रिकवर कर सकें.
पूर्वांचल में धर्म और जाति होती है प्रबल निर्णायक:पूर्वांचल में सामाजिक ताना-बाना कास्ट सिस्टम पर शोध करने वाले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व भाग अध्यक्ष प्रोफेसर पांडे कहते हैं कि, पूर्वांचल में हमेशा से धर्म व जाति का मुद्दा सबसे ज्यादा प्रमुख रहा है. यहां जब-जब धार्मिक मुद्दे रहे हैं, तब तब बीजेपी एक अच्छे मार्जिन से जीती है. लेकिन इस बार राम मंदिर का मुद्दा उतना प्रबल नहीं हुआ, जितना जाति गोलबंदी काम की रही.