कानपुर :कुछ दिनों पहले शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में नजूल की 1000 करोड़ रुपये की भूमि कब्जाने का मामला सामने आया था. कोतवाली पुलिस ने कानपुर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अवनीश दीक्षित को जेल भेजा था. अवनीश पर उसके बाद एक-एक करके कुल 9 मुकदमे दर्ज हो गए थे. अब, शहर के बादशाहीनाका थाने में अवनीश के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया गया है. इसमें अवनीश के साथी मनोज यादव उर्फ वसूली बंदर और उसके तीन साथियों के भी नाम शामिल हैं.
हालसी रोड निवासी कृष्णा गुप्ता का आरोप है कि अवनीश दीक्षित व उसके साथी मनोज यादव, विनोद यादव व जितेंद्र यादव जब प्रेस क्लब के चुनाव जीते थे तब वह उनके मकान में जुआ खिलवाते थे. विरोध करने पर सभी मारपीट करते थे. कृष्णा ने पुलिस के आला अफसरों से शिकायत की थी, लेकिन अफसरों ने सभी के रसूख के आगे मामले को अनदेखा कर दिया.
6 नवंबर 2021 की रात में वह अपनी बहू व अन्य सदस्यों के साथ घर के छज्जे पर खड़े थे. इस दौरान मनोज यादव ने घर आकर बम फेंके. सभी ने कमरों में छिपकर अपनी जान बचाई थी. इसे लेकर बादशाहीनाका थाना प्रभारी अरविंद सिंह सिसोदिया ने बताया कि पीड़ित द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर आरोपी अवनीश दीक्षित समेत कई अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है.
करानी थी धीरेंद्र शास्त्री की कथा, वसूले लाखों रुपये, फिर खरीद ली फॉर्च्यूनर : रिमांड के दौरान आरोपी अवनीश दीक्षित ने पुलिस को बताया कि कुछ माह पहले उसने अपने रिश्तेदार अशोक नगर निवासी कारोबारी सुनील शुक्ला के साथ मिलकर कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री की कथा कार्यक्रम के आयोजन का प्लान बनाया था. शहर में कार्यक्रम को लेकर कई लोगों से लाखों रुपये वसूले गए थे, मगर, किन्हीं कारणों से कथा नहीं हुई. फिर, उन्हीं रुपयों से अवनीश व सुनील ने फॉर्च्यूनर कार खरीदी थी.
मोबाइल न बरामद हुआ तो बढ़ गई धारा :आरोपी अवनीश दीक्षित की पुलिस रिमांड 24 अगस्त से खत्म हो गई. हालांकि रिमांड के दौरान पुलिस को सबसे अहम साक्ष्य- आरोपी का मोबाइल बरामद नहीं मिल सका. ऐसे में अब पुलिस ने अवनीश पर साक्ष्य गायब करने की धारा भी बढ़ा दी. वहीं, इस मामले में अवनीश दीक्षित की सुनवाई के लिए अब कोर्ट से 28 अगस्त तिथि तय की गई है. रिमांड खत्म होते ही अवनीश दीक्षित को न्यायिक अभिरक्षा में दोबारा जेल भेज दिया गया.
नाला सफाई में मामला फंसने पर दिखाता था रसूख : रिमांड के दौरान आरोपी अवनीश दीक्षित ने पुलिस को बताया, कि वह अपने रिश्तेदार कारोबारी सुनील शुक्ला को नगर निगम से नाला सफाई का ठेका दिलवाता था. फर्म के नाम पर जैसे ही ठेका मिलता तो उसके एवज में सुनील मोटी रकम अवनीश को देता था. सारा लेनदेन नकद किया जाता था. अगर नगर निगम में कोई बाधा आती तो अवनीश अपने रसूख से अफसरों को अदब में ले लेता था. महज 235 रुपये में मजदूरों से काम कराया जाता था. मजदूरों की संख्या कम रहती थी और कुछ दिनों में ही नाला सफाई का काम पूरा दिखा दिया जाता था.
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