लखनऊ: बीते वर्ष यूपी में लगातार तीन कार्यवाहक डीजीपी बनने के बाद इस नए वर्ष में भी कार्यवाहक डीजीपी ही मिलेगा. हालांकि ये अल्प अवधि के लिए ही हो सकता है. सरकार मार्च के पहले हफ्ते यूपीएससी को डीजीपी पद के चयन के लिए प्रस्ताव भेज सकती है. इसके बाद माना जा रहा है कि करीब पिछले दो वर्षों बाद यूपी को स्थायी डीजीपी मिल जाएगा. दूसरी तरफ अब उन दावेदारों के नाम पर चर्चा गर्म हो चुकी है, जिसे पहले कार्यवाहक और फिर स्थायी डीजीपी बनाने की तैयारी है.
कौन-कौन है डीजीपी पद की रेस में शामिल
मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार यूपी के तीसरे अस्थायी डीजीपी थे, जो अब 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में सबसे पहले यह जानना रोचक है कि यूपी का अगला डीजीपी कौन होगा? वैसे तो यूपी के 6 आईपीएस अधिकारी डीजीपी पद के लिए प्रबल दावेदार हैं. इनमें से 3 तो ऐसे हैं, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं. वरिष्ठ क्रम में देखें तो सबसे सीनियर अफसर हैं वर्ष 1989 बैच के IPS शफी अहसान रिजवी जो केंद्र में तैनात हैं. दूसरे नंबर पर आशीष गुप्ता आते हैं, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से यूपी वापस तो आ गए. लेकिन, छह माह तक पुलिस मुख्यालय से अटैच रहने के बाद उनकी साइड पोस्टिंग कर उनकी दावेदारी को हल्की कर दी. तीसरे दावेदार हैं आदित्य मिश्रा, जो बीते वर्ष केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए थे. आदित्य मिश्रा के पास कई अहम पद रहे हैं. चौथा नाम केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए पीवी रामाशास्त्री का है, जो योगी सरकार में लंबे समय तक एडीजी कानून व्यवस्था रहे हैं. पांचवा नाम डीजी सीबीसीआईडी आनंद कुमार व छठा नाम वर्तमान में डीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार का है.
6 दावेदारों में किसकी है मजबूती और कौन पड़ रहा कमजोर
यह तय है कि फिलहाल अगले दो माह के लिए यूपी में एक बार फिर से कार्यवाहक डीजीपी ही नियुक्त होना है. इसके बाद मार्च में योगी सरकार द्वारा आयोग को प्रस्ताव भेजे जाने के बाद यह तय होगा कि योगी सरकार किसे स्थायी डीजीपी बनाती है. फिर भी सरकार कार्यवाहक या फिर स्थायी डीजीपी इन्हीं 6 प्रबल दावेदारों में से एक को बनाएगी. ऐसे में यह भी जानना जरूरी है कि इन सभी छह आईपीएस अफसरों में दावेदारी किसकी सबसे अधिक मजबूत और कमजोर है?
शफी अहसान रिजवी की दावेदारी कमजोर
वर्ष 1989 बैच के आईपीएस अफसर शफी अहसान रिजवी डीजीपी पद के लिए पहले दावेदार हैं, जो बीते छह वर्षों से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. फिलहाल, वह यूपी लौटने पर अधिक दिलचस्पी नहीं रख रहे हैं. ऐसे में शफी अहसान की डीजीपी पद के लिए कमजोर दावेदारी दिख रही है.
आशीष गुप्ता की दावेदारी कमजोर
वर्ष 1989 बैच के आशीष गुप्ता मोस्ट सीनियर की लिस्ट में दूसरे नंबर पर आते हैं. आशीष करीब दस माह पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आए. लेकिन, इन्हें योगी सरकार ने डीजीपी मुख्यालय से अटैच रखने के छह माह बाद पोस्टिंग देते हुए डीजी रूल एंड मेन्यू बनाया. साफ है इस तरह की साइड पोस्टिंग देने के बाद उन्हें डीजीपी बनाया जाए, इसकी कम ही संभावना है. ऐसे में आशीष गुप्ता भी डीजीपी पद की रेस से बाहर ही हैं.
आदित्य मिश्रा की दावेदारी कमजोर
1989 बैच के ही आदित्य मिश्रा भी डीजीपी पद के दावेदार हैं. लेकिन, इनकी भी शफी अहसान और आशीष गुप्ता की ही तरह दावेदारी कमजोर पड़ रही है. इसके पीछे की वजह सरकार का उन पर कम भरोसा होना है. योगी सरकार बनते ही उन्हें एडीजी लॉ एंड ऑर्डर बनाया गया. लेकिन, उनके कार्य से सरकार खुश नहीं दिखी और उन्हें हटा दिया गया.
पीवी रामाशास्त्री की दावेदारी मजबूत
चौथे दावेदार हैं पीवी रामाशास्त्री. यह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर स्पेशल डीजी बीएसएफ के पद पर तैनात हैं. यह योगी सरकार में लंबे समय तक एडीजी (लॉ ऐंड ऑर्डर) और बाद में विजिलेंस निदेशक के पद पर भी रहे हैं. योगी सरकार के साथ ही मोदी सरकार भी उन पर भरोसा रखती है.
आनंद कुमार प्रबल दावेदार
प्रबल दावेदारी में सबसे चर्चा में जो नाम चल रहा है वह है तेजतर्रार आईपीएस अफसर आनंद कुमार का. जो वर्तमान में डीजी सीबीसीआईडी के पद पर तैनात हैं. हालांकि, आनंद कुमार की दावेदारी कुछ समय पहले हिलोरे मार रही थी, जब योगी सरकार की नाराजगी दिखी थी. तब उनके कंधों पर यूपी की जेलों की जिम्मेदारी थी और वहां माफिया की अवैध मुलाकातें हो रही थीं. मार्च 2023 को सरकार ने उन्हें जेल विभाग से हटाकर साइड लाइन कर दिया. लेकिन, करीब सात माह बाद योगी सरकार ने दोबारा आनंद कुमार को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए सीबीसीआईडी की बागडोर सौंप दी. ऐसे में आनंद कुमार भी एक बार फिर डीजीपी की रेस में अग्रिम पंक्ति में खड़े हो गए. हालांकि, आनंद कुमार मई में रिटायर हो रहे हैं. लिहाजा कार्यवाहक डीजीपी के ही तौर पर उन्हें उपहार मिल सकता है.
प्रशांत कुमार की प्रबल दावेदारी
मौजूदा समय यूपी की कानून व्यवस्था संभाल रहे व राज्य में माफियाराज को जड़ से खत्म करने वाले डीजी प्रशांत कुमार की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. वह लंबे समय से कानून व्यवस्था संभाल रहे हैं और उसके अलावा ईओडब्ल्यू समेत कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही है. प्रशांत कुमार का रिटायरमेंट का समय अभी काफी बचा हुआ है. ऐसे में स्थायी डीजीपी के लिए प्रशांत कुमार सबसे प्रबल दावेदार हैं,
अब तक क्यों नहीं मिल पा रहा स्थायी डीजीपी
हालांकि सीनियर आईपीएस अफसर में मुकुल गोयल भी आते हैं. लेकिन, दावेदारी की सूची में वो कहीं भी नहीं टिकते हैं. इसके पीछे की वजह उनका डीजीपी के पद से हटाए जाना है. मुकुल गोयल ही एक ऐसा नाम है, जिनकी वजह से यूपी में बीते ढाई वर्षों से स्थायी डीजीपी नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में इसकी पूरी वजह भी जानना आवश्यक है. दरअसल, 11 मई 2022 को तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को सरकार ने पद से हटा दिया था. सरकार ने हटाए जाने का कारण बताया कि उन्होंने शासकीय कार्यों की अवहेलना की और विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे थे. इसके बाद सरकार ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आए व इंटिलेजेंस की जिम्मेदारी संभाल रहे डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया और स्थायी डीजीपी के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजा. लेकिन, आयोग ने प्रस्ताव को बैरंग वापस भेजते हुए सरकार से मुकुल गोयल को पदमुक्त करने का ठोस कारण पूछ लिया.
सरकार मुकुल गोयल को हटाए जाने का संतोषजनक जवाब ढूंढ न सकी और उसके बाद से अब तक सरकार आयोग को बिना प्रस्ताव भेजे ही कार्यवाहक डीजीपी नियुक्ति करती रही. सूत्र कहते हैं कि योगी सरकार यह भलीभांति जानती थी कि यदि उस वक्त डीएस चौहान के रिटायरमेंट के बाद अगर फिर से आयोग को प्रस्ताव भेजा जाता तो एक बार फिर उससे मुकुल गोयल को हटाए जाने पर जवाब तलब किया जा सकता था. लिहाजा सरकार ने पहले डीएस चौहान, फिर आरके विश्वकर्मा और विजय कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया.
ऐसे मिलेगा स्थायी डीजीपी
अब जब तीसरे कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार रिटायर हो रहे हैं, तो सरकार के सामने अब क्या रास्ता बचा है. इस पर भी नजर डाल ली जाए. क्या सरकार एक बार फिर से अगले आईपीएस अफसर के रिटायरमेंट होने तक कार्यवाहक डीजीपी बनाए रखेगी? दरअसल, सरकार सिर्फ इसलिए आयोग को प्रस्ताव नहीं भेज पा रही है. क्योंकि, उसे लगता है कि यदि प्रस्ताव भेजा गया तो पुनः मुकुल गोयल के हटाए जाने का कारण पूछ लिया जाएगा. ऐसे में अब सरकार को इस बात का इंतजार है कि कब मुकुल गोयल रिटायर हो और वो पूरी तरह से डीजीपी पद की रेस से बाहर हो जाएं. फरवरी में मुकुल गोयल रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में विजय कुमार के रिटायर होने के बाद सरकार दो माह तक कार्यवाहक डीजीपी तैनात करेगी और 29 फरवरी के बाद आयोग को प्रस्ताव भेजेगी, जिससे मुकुल गोयल का पेंच नहीं फंसेगा. इसके बाद आयोग द्वारा भेजे जाने वाले तीन आईपीएस अफसरों में एक को डीजीपी बना दिया जाएगा. इसमें यह तय है कि सरकार की ही पसंद का डीजीपी रहेगा.
इस तरह होती है DGP की नियुक्ति
देश के किसी भी राज्य के डीजीपी की नियुक्ति के लिए सरकार को डीजी रैंक के ऐसे आईपीएस अधिकारियों के नाम संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजना होता है, जिनका कार्यकाल कम से कम छह महीने का बचा हुआ हो. आयोग में यूपीएससी के चैयरमैन या यूपीएससी का सदस्य इम्पैनलमेंट कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. इसके अलावा भारत सरकार के गृह सचिव या विशेष सचिव, राज्य के मुख्यसचिव, वर्तमान डीजीपी व केंद्रीय बल का कोई एक प्रमुख शामिल होता हैं. आयोग तीन सबसे सीनियर आईपीएस अफसरों का एक पैनल राज्य सरकार को भेजता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है. डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है या डीजीपी को तब हटाया जा सकता है, जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो.
यह भी पढ़ें:सीएम योगी ने किया रुद्राभिषेक, जनता दर्शन में सुनी समस्याएं, बोले- किसी के साथ नहीं होगी नाइंसाफी