उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

योगी सरकार ने दी आम उत्पादकों को बड़ी राहत: अब आम के बागानों की काट-छांट के लिए नहीं होगी विभागीय अनुमति की जरूरत - UP agriculture news

उत्तर प्रदेश का आम अब देश और दुनिया में और खास बनेगा. राज्य सरकार (MANGO FARMING TIPS) यहां के आम को खास बनाने के लिए कई तरह की पहल कर रही है. आम के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार नए फैसले ले रही है.

योगी सरकार ने दी आम उत्पादकों को बड़ी राहत
योगी सरकार ने दी आम उत्पादकों को बड़ी राहत (फोटो क्रेडिट : Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 9, 2024, 7:10 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश का आम अब और खास होगा. अब आम उत्पादकों को आम के पुराने वृक्षों की ऊंचाई कम करने और उनकी उत्पादकता बनाए रखने के लिए की जाने वाली काट-छांट को किसी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. योगी सरकार के इस फैसले से आम के पुराने बागों का कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है. इसका नतीजा आने वाले कुछ वर्षों में दिखेगा. कैनोपी प्रबंधन के कारण आम के पुराने बाग नए सरीखे हो जाएंगे. इससे उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी.




उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण फलों में से आम एक है. प्रदेश में 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम की खेती से 45 लाख टन आम पैदा होता है. प्रदेश में 40 साल से अधिक उम्र के बगीचे लगभग 40 फीसद (लगभग एक लाख हेक्टयर) हैं. इन बागों में पुष्पों और फलों के लिए जरूरी नई पत्तियों और टहनियों की संख्या कम हो चुकी है. लम्बी और मोटी-मोटी शाखाओं की ही अधिकता है. आपस में फंसी हुई शाखाओं के कारण बागों में पर्याप्त रोशनी का अभाव है. ऐसे पेड़ों में कीट और बीमारियों का प्रकोप अधिक है और दवा अधिक लगने के साथ दवा का छिड़काव भी मुश्किल है. आम के भुनगे और थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए छिड़की गई दवा अंदर तक नहीं पहुच पाती है. दवा की अधिक मात्रा से छिड़काव करने पर पर्यावरण भी प्रदूषित होता है. ऐसे बागों की उत्पादकता बमुश्किल सात टन तक मिल पाती है, जबकि एक बेहतर प्रबंधन वाले प्रति हेक्टेयर आम के बाग से 12-14 टन उपज लेना संभव है.

कैनोपी प्रबंधन ही एक मात्र हल :इसे ध्यान में रखते हुए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने आम के ऐसे वृक्षों के जीर्णोद्धार के लिए उचित काट-छांट की तकनीक विकसित की है, जिससे वृक्ष का छत्र खुल जाता है और पेड़ की ऊंचाई भी कम हो जाती है. इसे वृक्ष की तृतीयक शाखाओं की काट-छांट या टेबल टॉप प्रूनिंग भी कहा जाता है. इस प्रकार की काट-छांट से पेड़ दो से तीन साल में ही 100 किलोग्राम/वृक्ष का उत्पादन देने लगता है. रकबे और उत्पादन में आम का नंबर देश में प्रथम है. यहां के दशहरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, गौरजीत की अपनी बेजोड़ खुशबू और स्वाद है. फिलहाल 15 साल से ऊपर के तमाम बाग जंगल जैसे लगते हैं. इनका रखरखाव संभव नहीं. इसके नाते उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. कैनोपी प्रबंधन ही इसका एक मात्र हल है.

फल के लिए संरक्षा और सुरक्षा का उपाय होगा आसान :रहमानखेड़ा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार शुक्ल के मुताबिक, पौधरोपण के समय से ही छोटे पौधों का और 15 साल से ऊपर के बागानों का अगर वैज्ञानिक तरीके से कैनोपी प्रबंधन कर दिया जाए तो इनका रखरखाव, समय-समय पर बेहतर बौर और फल के लिए संरक्षा और सुरक्षा का उपाय आसान होगा. इससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों सुधरेगी. निर्यात की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. शुरुआत में ही मुख्य तने को 60 से 90 सेमी पर काट दें. इससे बाकी शाखाओं को बेहतर तरीके से बढ़ने का मौका मिलेगा. इन शाखाओं को किसी डोरी से बांधकर या पत्थर आदि लटकाकर प्रारम्भिक वर्षों (एक से पांच वर्ष) में पौधों को उचित ढांचा देने का प्रयास भी कर सकते हैं.



शाखाओं को काटने के बाद जरूर करें ये काम :उन्होंने बताया किकटे हुए स्थान पर 1:1:10 के अनुपात में कॉपर सल्फेट, चूना और पानी, 250 मिली अलसी का तेल, 20 मिली कीटनाशक मिलाकर लेप करें. गाय का गोबर और चिकनी मिट्टी का लेप भी एक विकल्प हो सकता है. इस प्रकार काटने से शुरू के वर्षों में बाकी बची शाखाओं से भी 50 से 150 किलोग्राम प्रति वृक्ष तक फल प्राप्त हो जाते हैं और लगभग तीन वर्षों में वृक्ष फिर से छोटा आकार लेकर फल प्रारम्भ कर देते हैं.



एक साथ सभी शाखाओं को कभी न काटें :उन्होंने बताया कि ऐसे बागों की सभी शाखाओं को एक साथ कभी न काटें, क्योंकि तब पेड़ को तनाबेधक कीट से बचाना मुश्किल हो जाता है. इनके प्रकोप से 20 से 30 प्रतिशत पौधे मर जाते हैं. गुजिया कीट के रोकथाम के लिए वृक्षों के तने के चारों ओर गुड़ाई कर क्लोर्पयरीफोस 250 ग्राम वृक्ष पर लगाएं. तनों पर पॉलीथिन की पट्टी बांधें. पाले से बचाव के लिए बाग की सिंचाई करें और अगर खाद नहीं दी गई है तो दो किलो यूरिया, तीन किलोग्राम एसएसपी और 1.5 किलो म्यूरियट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष देनी चाहिए.

यह भी पढ़ें : आईआईटी कानपुर के एक्सपर्ट बनाएंगे खेती के आधुनिक उत्पाद, जीबी पंत विवि से हुआ करार - Initiative of IIT Kanpur

यह भी पढ़ें : फसलों की बीमारियों से निपटने और स्वास्थ्य निगरानी के लिए ड्रोन तकनीक वरदान - IARI - Drone Technology for Farming

ABOUT THE AUTHOR

...view details