लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. नवाबों के दौर में यहां कई शानदार इमारतें बनाई गईं, जो आज भी अपनी भव्यता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन इमारतों के बीच मौजूद सुरंगें आज भी रहस्य और चर्चाओं का विषय बनी हुई हैं. इन सुरंगों से जुड़ी कहानियां और दावे इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वालों को अपनी ओर खींचते हैं. आइए जानते हैं इन सुरंगों की हकीकत और इनके निर्माण के पीछे की कहानी...
भूलभुलैया और इसकी सुरंगें :लखनऊ के बड़ा इमामबाड़ा की भूलभुलैया में एक सुरंग आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. प्रसिद्ध इतिहासकार रोशन तकी के अनुसार, यह सुरंग गोमती नदी तक जाती थी. इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि बाढ़ में नदी का जलस्तर बढ़ने पर पानी को इमामबाड़े की बावड़ीतक लाया जा सके.
छत्तर मंजिल और जुबली कॉलेज की सुरंगें :छत्तर मंजिल के परिसर में खुदाई के दौरान सुरंगों का पता चला था. इसी तरह, जुबली कॉलेज के बारे में कहा जाता है कि यहां भी एक पुरानी सुरंग मौजूद है, जो लगभग 200 साल पुरानी है. यह माना जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला ने इसे गोमती नदी से जोड़ने के लिए बनवाया था, हालांकि, बाद में कॉलेज के छात्रों की सुरक्षा के लिए इसे बंद कर दिया गया.
हुसैनाबाद और मोती महल की सुरंगें :हुसैनाबाद से लेकर मोती महल तक फैली सुरंगों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें नवाबी परिवार के सदस्यों और बेगमों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए बनाया गया था. इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि कैसरबाग की बारादरी से भी एक सुरंग जुड़ी हुई थी, जो अन्य इमारतों को जोड़ती थी.
अंग्रेजों के दौर में सुरंगों का हश्र :नवाबी दौर में इन सुरंगों का उपयोग सुरक्षा और गोपनीयता के लिए किया जाता था, लेकिन अंग्रेजों के शासन के बाद इनका उपयोग लगभग समाप्त हो गया. 1960 में आई भीषण बाढ़ के बाद इन सुरंगों को पूरी तरह बंद कर दिया गया.