वैशाली: विश्व कोगणतंत्र का पाठपढ़ाने वाली वैशाली के लोगों की एक खास परंपरा है. यहां रामनवमी के दिन बड़ी मात्रा में रामदाना लाई खरीदी और बेची जाती है. लाई बनाने की तैयारी दुकानदार रामनवमी के 15 दिनों पहले से ही करते हैं. अकेले वैशाली के हाजीपुर शहर में 100 से ज्यादा लाई की दुकान सजती है और लाखों का कारोबार होता है. यहां लगभग हर घर के लोग लाई का सेवन करते हैं.
पौराणिक काल से लाई खाने की परंपरा:यहां के लोग लाई को रामनवमी के दिन खाना परंपरा के तौर पर मानते हैं. 140 रुपए किलो बिकने वाला यह लाई रामदाना उर्फ खोवी के लावे से तैयार किया जाता है. जिसमें मिठास के लिए चीनी डाली जाती है. 1 किलो में तकरीबन 12 पीस लाई आता है. बताया जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्री राम हाजीपुर के रामचौरा आए थे तब से यहां रामनवमी के दिन लाइव खान की परंपरा है. जिसे लोग आज भी निर्वाह करते हैं.
स्थानीय लोगों ने दी परंपरा की जानकारी: इस विषय में स्थानीय शशिकांत चौरसिया ने बताया कि सालों से रामनवमी के दिन लाई खाने और खिलाने की परंपरा चली आ रही है. सभी लोग रामनवमी पर लाई खरीदते हैं, और अगल-बगल के बच्चों और दूसरे लोगों को खिलाते हैं. वहीं स्थानीय बुजुर्ग हरेंद्र ठाकुर ने बताया कि वैशाली में भगवान राम के पद चिन्ह हैं, इसलिए यहां रामनवमी का मेला लगता है. मेले में लाई की खूब बिक्री की जाती है.
"हम लोग रामनवमी मानते हैं. सदियों से लाई खाने की परंपरा चली आरही है. रामनवमी में करीब 5 किलो लाई खरीदे हैं. घर में भी खाते हैं और अगल-बगल में जो बच्चे हैं उनको भी खिलाते हैं. यह एक परंपरा है"-शशिकांत चौरसिया, स्थानीय
"आज रामनवमी मना रहे हैं. रामनवमी का मेला लगता है और यहां पर भगवान राम का पद चिन्ह है. मंदिर में पूजा-पाठ होता है. ऐसे सब दिन लाई मिलेगा, लेकिन आज ज्यादा बिकती है. हाजीपुर के लोगों की लाई खाने की परंपरा है" -हरेंद्र ठाकुर, स्थानीय