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देर रात तक देख रहे हैं मोबाइल तो हो जाएं सावधान, ये लाइट आपको कर सकती है बेहद 'बीमार' - Side Effect of Mobile Phone

देश में मोबाइल फोन यूजर्स का आंकड़ा करीब 80 करोड़ पहुंच चुका है. मोबाइल के बढ़ते प्रयोग का असर अब लोगों की हेल्थ पर भी पड़ने लगा है. साइक्रेटिक का कहना है कि देर रात तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोग अनिंद्रा, चिड़चिड़ापन और अवसाद का शिकार होने लगे हैं. पढ़िए पूरी खबर.

SIDE EFFECT OF MOBILE PHONE
ज्यादा मोबाइल देखने के नुकसान (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 1, 2024, 6:33 AM IST

साइक्रेटिक विभाग के पूर्व विभागाध्क्ष डॉ जीडी कूलवाल (ETV Bharat Jodhpur)

जोधपुर :समय के साथ देश में तेजी से इंटरनेट यूजर्स बढ़ रहे हैं. यह आंकड़ा 80 करोड़ को पार गया है. इनमें युवाओं की संख्या भी ज्यादा है, जो उनके के लिए ही परेशानी का सबब बन रही है. कारण है उनका बढ़ता मोबाइल स्क्रीन टाइम, जो अब औसतन 7 घंटे तक पहुंच गया है. भारत में रात को मोबाइल का उपयोग बढ़ रहा हैं. इसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नजर आने लगे हैं. खास तौर से रात को मोबाइल चलाने वालों के लिए ज्यादा परेशानी है. देर रात तक मोबाइल की ब्ल्यू लाइट के संपर्क में रहने से नींद को बढ़ावा देने मेलाटोनिन हार्मोन का उत्सर्जन घटने से युवा अनिंद्रा, चिड़चिड़ापन और अवसाद का शिकार होने लगे हैं.

डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज के साइक्रेटिक विभाग के पूर्व विभागाध्क्ष डॉ जीडी कूलवाल का कहना है कि रात भर मोबाइल देखने वाले युवा गुस्सैल होते जा रहे हैं. बाद में ये​ डिप्रेशन में भी चले जाते हैं. ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब तो छोटे बच्चों में मोबाइल देखने की लत बढ़ने के केस भी आ रहे हैं. बच्चे रील के चक्कर में रियल लाइफ भूलकर वर्चुअल रहने लगे हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत घातक साबित हो रहा है.

देर तक मोबाइल देखने के नुकसान (ETV Bharat GFX)

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बिगड़ रही है सर्केडियन रिदम :डॉ जीडी कूलवाल का कहना है कि हमारे शरीर में सोने, जागने और सक्रिय होने की निश्चित प्रक्रिया की एक साइकिल बनी हुई है, जिसे सर्केडियन रिदम कहते हैं. इसके लिए अलग-अलग हार्मोन काम करते हैं. जिस तरह से मेलाटोनिन हार्मोन नींद को बढ़ावा देता है, तो उसी तरह से जब सुबह होती है, तो हमारी आंखों को इसका आभास होता है फिर वह ब्रेन को सिग्नल देती है, जिसके बाद शरीर को जगाने वाले हार्मोन कोर्टिसोल काम शुरू करता है जो हमें नींद से उठाता है. लगातार देर रात तक मोबाइल की रोशनी में रहने से ब्रेन को सोने का संकेत नहीं मिलता है. ऐसे में लगातार कोर्टिसोल हार्मोन सक्रिय रहता है, यानी की शरीर रात को भी दिन मान लेता है, इससे सोने और जागने की साइकिल, जिसे सर्केडियन रिदम कहते हैं वह बिगड़ जाती है.

केस उदाहरण से समझें कैसे बढ़ रही है परेशानी

  1. डॉ कूलवाल बताते हैं कि उनके पास महज 12 साल के बच्चे को मां लेकर आई थी. ग्रामीण पृष्ठभूमि के इस बच्चे के पास 11 स्मार्ट फोन थे. वह पूरे दिन इनमें लगा रहता था, जब भी मां कुछ कहती वह सीधे खुद को खत्म करने की बात करता था.
  2. इसी तरह से एक कॉलेज का छात्र जो रील देखने का आदि था. पूरी-पूरी रात मोबाइल देखने से उसका मस्तिष्क से पूरी तरह सुन्न हो गया. उसने कमरे से बाहर निकलना बंद कर दिया. दिमागी तौर पर परेशान रहने लगा. परिवार से लड़ने लगा.

बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत :डॉ कूलवाल का कहना है कि शुरुआत से ही अभिभावकों को इस पर नियंत्रण रखना चाहिए. जरूरत पर ही बच्चों को फोन दें. उपयोग का निश्चित समय भी तय करें. वह क्या देख रहा है यह भी जानें, लेकिन अभी लोग इसे बहुत सामान्य ले रहे हैं, जबकि यह परेशानी लगातार बढ़ रही है. खासकर पति-पत्नी जो दोनों प्रोफेशनल होते हैं, उनके बच्चे इसका ज्यादा शिकार हो रहे हैं.

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