लखनऊः अपने वाहन के लिए वीवीआईपी नंबर की ख्वाहिश रखने वाले मालिक के करोड़ों रुपए फंस गए हैं. अपना मनचाहा नंबर भी नहीं मिला और कई महीने से जमा किए गए पैसे भी वापस नहीं मिल पाए हैं. दरअसल, परिवहन विभाग ने वीवीआईपी नंबरों की नीलामी शुरू की तो हर नंबर का बेस रेट रखा. 00001 से 0009 तक के नंबर का बेस रेट 1 लाख है. ऐसे में नंबर की बोली लगाने वालों को एक तिहाई धनराशि जमा कर रजिस्ट्रेशन करना होता है. यानी 33000 रुपए पहले ही जमा करने होते हैं. जिसके नाम नीलामी में नंबर अलॉट हो जाता है तो जितनी राशि का नंबर बिका होता है, उतने पैसे चुकाने होते हैं. जबकि अन्य हिस्सेदारों को उनका पैसा वापस कर दिया जाता है. लेकिन हाल ही में एसबीआई ने पैसे वापस करने में नियम बदल दिए हैं. इसलिए 15 जुलाई से अब तक प्रदेश भर के हजारों वाहन मालिकों को कई करोड़ रुपए फंस गए हैं. परिवहन विभाग एसबीआई से बात कर रहा है लेकिन अभी कोई नतीजा नहीं निकल पाया है.
आरबीआई के नियम बदलने से फंसे पैसेःबता दें कि वाहन के लिए मनचाहा नंबर लेने की वाहन मालिकों की ख्वाहिश परिवहन विभाग ने बोली की स्कीम लाकर पूरी की थी. अभी तक यह व्यवस्था थी कि नीलामी के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले वाहन मालिक को अगर मनचाहा नंबर नहीं मिलता था तो उनके पैसे वापस अकाउंट पर रिफंड हो जाते थे. लेकिन 15 जुलाई से आरबीआई ने नियमों में परिवर्तन कर दिया और ई कुबेर ऐप लॉन्च कर दिया. इससे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने परिवहन विभाग के खाते के ट्रांजेक्शन पर रिफंड की व्यवस्था खत्म कर दी. ऐसे में प्रदेश भर में मनचाहा नंबर पाने के लिए बोली लगाने वाले लोगों के करोड़ों रुपये परिवहन विभाग के चक्कर में फंस गया है.
वाहन मालिक पैसे वापस करने का बना रहे दबावःपरिवहन विभाग ने एसबीआई से मांग की है कि अलग अकाउंट बनाकर खाते से रिफंड की व्यवस्था की जाए. जब यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड में वही व्यवस्था लागू है तो फिर परिवहन विभाग को भी यही सुविधा दी जाए. बड़ी संख्या में वाहन मालिक अपने पैसे को लेकर परिवहन विभाग से संपर्क कर रहे हैं. एक-एक वाहन मालिक का कई कई लाख रुपये नंबर के एवज में फंस गया है. हालांकि बुधवार को परिवहन विभाग के अधिकारियों ने स्टेट बैंक आफ इंडिया के अधिकारियों और एनआईसी के अधिकारियों के साथ बैठक कर इसका जल्द निराकरण करने की बात कही है.