धौलपुर: राजपूत छात्रावास में महाराणा प्रताप की मूर्ति के अनावरण समारोह में हुई सभा राजनीति का अखाड़ा बन गई. सभा में भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कांग्रेस नेता और आरटीडीसी के पूर्व चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह राठौड़ ने एक दूसरे पर कटाक्ष किया. वहीं पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा एवं गिर्राज सिंह मलिंगा ने बिना नाम जिले के पुलिस अधीक्षक को चेतावनी दी.
सभा को पहले कांग्रेस नेता धर्मेंद्र सिंह राठौड़ ने संबोधित किया. उनके भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उन पर कई बार तंज कसा. शेखावत ने कहा, 'राठौड़ ने बोला है कि गिरिराज सिंह मलिंगा के साथ अन्याय हुआ है, लेकिन उस अन्याय की शुरुआत किसने की थी. किसने मलिंगा का टिकट काटा था.' उन्होंने कहा कि भाजपा ने उन्हें बाहें पसारकर सम्मान के साथ पार्टी में लिया था. अब उनका सम्मान भी बनाकर रखेंगे. धर्मेन्द्र राठौड़ ने आर्थिक रूप से पिछड़े युवकों को आरक्षण का मुद्दा उठाया तो शेखावत ने बाद में अपने भाषण में कहा कि वर्ष 2016 में संसद में मैंने ही सवर्ण समाज के लिए आरक्षण की मांग की थी. राजपूत, ब्राह्मण और बनिया इन लोगों के परिवारों को भी कहीं न कहीं आरक्षण की जरूरत है. उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक मंच नहीं है. इस पर राजनीति की चर्चा नहीं होनी चाहिए. राजपूत समाज को सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है.
गुढ़ा बोले- राजपूत समाज ने भाजपा को समर्थन दिया है, समर्पण नहीं:कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने अपने तीखे तेवर दिखाए और कहा कि गिरिराज सिंह मलिंगा जनता के चहेते विधायक रहे हैं. ऐसे चहते मलिंगा के साथ एसपी ने गुंडागर्दी की है. उन्हे सरेंडर के दौरान पैदल चलाया. उन्होंने कहा कि राजपूत समाज ने भाजपा को समर्थन दिया है, समर्पण नहीं दिया है. समाज के हजारों लोगों को अपमानित करके वह एसपी धौलपुर में बैठे हैं. उन्होंने कहा एसपी के इस कृत्य को राजपूत समाज कभी सहन नहीं करेगा. गुढ़ा ने कहा कि "यदि कांग्रेस की सरकार होती तो मैं मुख्यमंत्री के पैर पर पैर रख देता. उस अधिकारी को उसकी हैसियत याद दिला देता. गुढ़ा ने कहा कि मलिंगा के साथ हुई घटना के गुनाह की सजा जरूर मिलेगी. गुढा ने तल्ख तेवर में कहा कि यदि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह बैठे होते तो बोल देता 1 मिनट में इस अधिकारी की छुट्टी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भाजपा राजपूत समाज की मजबूरी नहीं है. राजपूत समाज रास्ता दूसरा पकड़ना भी जानता है.