झांसी :बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में स्थगित हुई शिक्षक भर्ती मामले की जांच में सवाल उठन शुरू हो गए हैं. शिकायकर्ताओं का आरोप है कि शुक्रवार को तीन बाह्य विशेषज्ञों की कमेटी झांसी पहुंची थी और पांच शिकायतकर्ताओं के बयान दर्ज किए, लेकिन दो शिकायतकर्ताओं को टीम के आने की जानकारी ही नहीं दी गई. वहीं विवि पहुंचे शिकायतकर्ताओं ने तमाम साक्ष्य प्रस्तुत कर अपनी बात रखी.
बता दें, अप्रैल में विश्वविद्याल के 34 विभागों में शिक्षकों की नियुक्तियां होनी थीं. भर्ती शुरू होते ही इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे. इस मामले में किसी ने शिकायत कर आरक्षण के नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगाया तो गरौठा विधायक जवाहर लाल राजपूत ने संभावित नाम गिना दिए. नियुक्तियों के लिफाफे खुले तो वही नाम सामने आ गए. इसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने नियुक्तियों के विरोध में मोर्चा खोल दिया. इस पर विवि प्रशासन ने नियुक्तियां स्थगति कर दीं.
22 अप्रैल को मामले में कुलसचिव विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया. इसमें सेवानिवृत्त जिला जज दिनेश कुमार शर्मा, डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय इंदौर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डीके शर्मा व छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के आईक्यूएसी निदेशक प्रोफेसर संदीप सिंह को शामिल किया गया. लगभग डेढ़ महीने बाद कमेटी के तीनों सदस्य शुक्रवार को बुंदेलखंड विवि पहुंचे थे.
बताया जा रहा है कि कमेटी के आने की सूचना सिर्फ पांच लोगों को लिखित रूप से दी गई थी. इस दौरान शिकायतकर्ता के तौर पर पहुंचे कुंवर सत्येंद्र पाल सिंह ने कमेटी के समक्ष आरक्षण नियमों से खिलवाड़ का मुद्दा उठाया. शिकायतकर्ता कुंवर सत्येंद्र पाल सिंह ने साक्ष्यों के साथ यह साबित करने का प्रयास किया कि जिन संवर्गों में नियुक्तियां मनमानी करनी थीं, उनका विज्ञापन गोलमाल कर छपवाया गया. उदाहरण दिया कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग को हिंदी में यांत्रिक अभियांत्रिकी लिखा गया, जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कंयूनिकेशन इंजीनियरिंग को हिंदी में इलेक्ट्रॉनिक्स ही लिखा गया. इससे आरक्षण का रोस्टर बदल गया और अपने चहेतों की नियुक्तियां कर दी गईं.