शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य बड़े आर्थिक संकट में घिरता जा रहा है. इधर चुनाव खत्म होंगे और उधर सुखविंदर सरकार की आर्थिक मुश्किलें बढ़ेंगी. सरकार के खर्च निरंतर बढ़ रहे हैं. इस कारण कर्ज का बोझ भी बढ़ता चला जा रहा है. वहीं, ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किए जाने के बाद से राज्य की आर्थिक स्थिति पर अब असर आने लगा है. ऐसे में राहत के लिए सुखविंदर सिंह सरकार की नजरें नए वित्त आयोग यानी 16वें वित्त आयोग पर हैं. इस बार वित्त आयोग का सबसे पहला दौरा हिमाचल का ही होगा. राज्य सरकार का वित्त विभाग तैयारी में जुटा है कि राजस्व घाटा अनुदान यानी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में कटौती न हो. पूर्व में जयराम सरकार के समय हिमाचल को तत्कालीन वित्त आयोग से शानदार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिल गई थी. इससे जयराम सरकार का काम आसान हो गया था. अब सुखविंदर सिंह सरकार का भी यही प्रयास है कि 16वें वित्त आयोग से वित्तीय मोर्चे पर हिमाचल को सुख भरी अनुशंसाएं मिल जाएं.
जून में चुनाव परिणाम के बाद होगा वित्त आयोग का दौरा
देश में 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम आएंगे. हिमाचल में चार लोकसभा सीटों के साथ ही छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी हो रहे हैं. चुनाव संपन्न होने और नई सरकार के गठन के बाद 16वां वित्तायोग देश भर के राज्यों का दौरा करेगा. बड़ी बात है कि सबसे पहले वित्त आयोग की टीम हिमाचल का ही दौरा करेगी. वित्त आयोग की टीम के समक्ष हिमाचल सरकार का वित्त विभाग राज्य की आर्थिक स्थितियों के हिसाब से अपना मेमोरेंडम तैयार कर रहा है. टीम के हिमाचल दौरे से पहले राज्य सरकार को वित्त विभाग के आधिकारिक पोर्टल पर मेमोरेंडम को अपलोड करना होगा. अभी तक की तैयारी के अनुसार राज्य सरकार के वित्त विभाग ने ओपीएस की देनदारी की वजह से खजाने पर पड़ रहे एक्स्ट्रा बोझ का हवाला देकर अतिरिक्त अनुदान की मांग उठाएगी.
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की आर्थिक गाड़ी पटरी से उतर रही है. डे-टू-डे का खर्च चलाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. कर्ज का बोझ नब्बे हजार करोड़ रुपए के करीब पहुंचने वाला है. राज्य सरकार को हर महीने सरकारी कर्मियों के वेतन व पेंशन पर 1550 करोड़ रुपए से अधिक की जरूरत रहती है. विकास कार्यों के लिए बजट मामूली बचता है. बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, पेंशनर्स की पेंशन, डीए, एरियर के भुगतान आदि में निकल जाता है. इसके लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए भी बड़ी रकम की जरूरत होती है.
हिमाचल को 15वें वित्त आयोग ने किया था मालामाल
पूर्व में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की किस्मत अच्छी थी. तब 15वें वित्त आयोग का समय था और उसने हिमाचल को दिल खोलकर अनुदान की अनुशंसा की थी. हिमाचल को 15वें वित्त आयोग से 19309 करोड़ रुपए का अनुदान मिला था. पूर्व में वीरभद्र सिंह सरकार के दौर में 13वें वित्त आयोग से हिमाचल को 4338 करोड़ रुपए का औसत अनुदान मिला था. इसी प्रकार 14वें वित्त आयोग के दौरान प्रदेश को 14407 करोड़ रुपए का औसत अनुदान मिला. जयराम सरकार के कार्यकाल में सत्ता संभालते ही कुछ समय बाद 15वें वित्त आयोग ने हिमाचल का दौरा किया था. उस समय 15वें फाइनेंस कमीशन ने पहले ही साल में राज्य को 19309 करोड़ रुपए का वित्तीय अनुदान जारी किया था. बड़ी बात ये थी कि तब 15वें वित्त आयोग ने हिमाचल के लिए अनेक राहत भरी सिफारिशें की थी. कुल पांच साल के लिए 15वें वित्त आयोग ने हिमाचल प्रदेश को 81,977 करोड़ का आबंटन किया था. इसमें केंद्रीय करों यानी सेंट्रल टैक्सिस के रूप में 35,064 करोड़ रुपए, सेंट्रल टैक्सिस के विभाजन में हिस्से के साथ ही वित्त आयोग ने 46,913 करोड़ ग्रांट-इन-ऐड के रूप में जारी किए थे.
यहां बता दें कि 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष आईएएस एनके सिंह की अगुवाई में टीम ने 27 सितंबर 2018 को हिमाचल का तीन दिन का दौरा किया था. दौरे के उपरांत तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर व राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ शिमला में बैठक हुई. तब राज्य सरकार ने हिमाचल का पक्ष रखते हुए कहा था कि पहाड़ी राज्य रेवेन्यू डेफिसिट स्टेट है और सरकार को लोन लेकर विकास के काम करने पड़ते हैं. 15वें वित्त आयोग में उस समय अरविंद मेहता सचिव थे और वे हिमाचल कैडर के अधिकारी रहे थे. ऐसे में वे पहाड़ी स्टेट की परेशानियों को जानते थे. यही कारण है कि 15वें वित्त आयोग ने रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट 45 फीसदी बढ़ा दी थी. ये ग्रांट इतनी अधिक थी कि तत्कालीन जयराम सरकार की कर्मचारियों के वेतन आदि की चिंता दूर हो गई थी. बाद में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट कम होती चली गई थी और सुखविंदर सरकार के समय यह काफी कम हो गई.