करनाल:"शौक जो न करा दे..." शौक के चक्कर में एक शख्स ने पहले तो अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ी फिर लोगों के उलाहने सुने. लेकिन अपना शौक नहीं छोड़ा. आलम यह है कि अब जो लोग उलाहने देते थे, वही लोग तारीफ करते नहीं थकते. दरअसल हम बात कर रहे हैं करनाल जिले के रामविलास की. रामविलास को बागवानी काफी पसंद है. बागवानी के शौक ने आज उनको मशहूर कर दिया है. अब तो ये बागवानी के तरीके और लाभ सोशल मीडिया और यू ट्यूब के जरिए लोगों को बताते हैं.
नौकरी छोड़ शुरू कर दी बागवानी: करनाल निवासी रामविलास सिंह पहले ठेकेदारी का काम करते थे. हालांकि उनका मन कहीं और था. वो ठेकेदार नहीं बल्कि बागवां बनना चाहते थे. अचानक एक दिन उनको बागवानी का ऐसा शौक सिर चढ़ा कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. साल 2006 में नौकरी छोड़कर वो अपना शौक पूरा करने चल दिए. पहले वो अपने घर की छत पर ही कुछ फूल के पौधे लगाए. हालांकि बाद में वो फूलों के पौधों से न सिर्फ पूरा गार्डन तैयार कर दिए बल्कि घर के चार मंजिला को भी अलग-अलग फूलों के पौधों से सजा डाला. इनके घर में हजारों गमले, पुरानी बाल्टी, मिट्टी और सीमेंट के बर्तन, ड्रम में अलग-अलग फूलों के पौधे लगे हैं, जो दूर से ही लोगों को आकर्षित करते हैं.
सजा रखा है फूलों का संसार:अब रामविलास का काम हर दिन उठ कर रंग बिरंगे फूलों के पौधों की देखभाल करना है. इन्होंने अपने आस-पास फूलों का संसार सजा रखा है. रामविलास कहते हैं कि करीब 26 साल पहले उनके पास करनाल के सेक्टर 13 में किराए के मकान था. उसी मकान की छत पर पुराने आठ छोटे गमलों से उन्होंने शुरुआत की थी. कारवां 8 गमलों से 8 हजार गमलों तक जा पहुंचा. गमलों की संख्या अब 8 हजार से भी अधिक हो गई है. आलम यह है कि अब इनके खूबसूरत बगीचे को देखने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों से भी लोग आते हैं और अलग-अलग तरह के फूलों के पौधे खरीदकर अपने देश ले जाते हैं.
मुझे बचपन से ही बागवानी का शौक रहा है, लेकिन कोरोना के बाद मैंने अपने इस शौक को व्यवसाय में बदला, क्योंकि काफी लोगों को इसके प्रति जागरूक करना भी बहुत जरूरी था. फूलों के प्रति मेरा आकर्षण कभी खत्म नहीं होता. जब भी मैं रंग-बिरंगे फूल देखता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं भी इसका कोई पौधा लेकर अपने घर में लगा लूं. इसी तरह मैंने बागवानी शुरू की. धीरे-धीरे पेड़-पौधों की संख्या बढ़ती गई. आज पूरा बगीचा तैयार है. -रामविलास सिंह, बागवां