पटना:कभी पिता राज मिस्त्री का काम करते थे, कभी उसने 3 प्रतिशत के ब्याज पर 2 लाख कर्ज लिया था. आज वह कई युवाओं का रोल मॉडल बन गया है. हम बात कर रहे हैं 'मोदी ब्रांड' वाले करोड़पति गुल्फराज. जिसका कारोबार देश के 22 राज्यों में फैला हुआ है.
गरीब परिवार में हुआ जन्म:कटिहार के मनिहारी प्रखंड के लालबथानी के रहने वाले गुल्फराज का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था. उसके पिता मो सुलेमान कटिहार में ही राजमिस्त्री का काम करते थे, लेकिन 2016 में गंगा के कटाव के कारण उनके परिवार को वह गांव छोड़ना पड़ा. पूरा परिवार कटिहार के कोढ़ा के चरखी गांव में आकर बस गए.
मुफलिसी में गुजरी जिंदगी:इसके बाद परिवार के भरण पोषण के लिए मो. सुलेमान को दिल्ली जाना पड़ा और वहां पर उन्होंने राजमिस्त्री का काम शुरू किया. आठ आदमियों के परिवार चलाने की जिम्मेवारी मो सुलेमान पर थी. पति-पत्नी के अलावा दो बेटे और चार बेटी था परिवार में.
सरकारी स्कूल से पढ़ाई हुई: गुल्फराज का जन्म 1998 में चढ़की हुआ. उसकी प्रथमिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय चरखी से शुरू हुआ. 2013 में उसने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद 2015 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की.
दरभंगा में की इंजीनियरिंग: पढ़ाई लिखाई में अव्वल रहने वाले गुल्फराज ने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की और उसका एडमिशन दरभंगा इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ जहां से उन्होंने 2019 में बीटेक की डिग्री हासिल की. गुल्फराज मुस्लिम कम्युनिटी के शेरशाहबादी समुदाय से आता है. इस समुदाय के बारे में कहा जाता है कि यह समुदाय मुसलमान में सबसे कम पढ़ा लिखा होता है, लेकिन इस अवधारणा को तोड़ते हुए गुल्फराज ने अपने दम पर बीटेक तक की पढ़ाई की.
स्कॉलरशिप और पार्ट टाइम जॉब से पैसा मिला:गुल्फराज जब बीटेक की पढ़ाई कर रहे थे तब उनके पिताजी हर महीने 2500 रु भेजते थे. लेकिन पढ़ाई में अव्वल रहने वाले गुल्फराज को साल में 30 हजार रु अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की तरफ से मिलने वाला स्कॉलरशिप मिलने लगा. इसके अलावे 2017 में आगे के खर्चे के लिए ऑनलाइन पार्ट टाइम जॉब भी शुरू की. टेक्नो हेराल्ड के लिए ऑनलाइन जॉब शुरू किया. महीने का 9000 रु वहां से मिलने लगा. इस तरह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पैसे का जुगाड़ हो गया.
व्यापार करने की चाहत: कॉलेज में ही स्टार्टअप को लेकर सेमिनार हुआ. बिहार उद्यमी संघ के द्वारा इस सेमिनार का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में नए-नए स्टार्टअप को लेकर अनेक प्रोजेक्ट पर चर्चा हुई. इसी सेमिनार के बाद गुल्फराज ने मन बना लिया कि नौकरी के बदले व्यापार में ही अपना किस्मत बनाना है.
पिता ने किया व्यापार का विरोध:पिता ने इसका विरोध किया. पूरा परिवार इस बात को लेकर विरोध किया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद नौकरी के बाद दे व्यापार करना सही नहीं होगा. पिताजी ने यहां तक कहा कि मजदूरी करके तुमको इतना आगे तक पढ़ाई और अब जब नौकरी करने की बात आई तो तुम उससे पीछे हटकर व्यापार की तरफ ध्यान दे रहे हो.
सूद पर पैसे लेकर व्यापार की शुरुआत:गुल्फराज ने ETV भारत से बातचीत में बताया कि व्यापार के लिए बिहार सरकार के स्टार्टअप योजना के लिए अप्लाई किया, लेकिन उसका चयन नहीं हो पाया. पिता और चाचा से बिजनेस के लिए बात किया तो उन लोगों ने विरोध किया और कहा कि इतनी पढ़ाई के बाद बिजनेस क्यों. फिर भी उन्होंने मखाना के बिजनेस को फोकस करते हुए आगे काम करने का फैसला कर लिया.
''व्यवसाय के लिए 3 लाख रु की जरूरत थी. कुछ पैसा चाचा और पिताजी से मिला और 2 लाख रु 3% सूद पर लेकर मखाना का व्यापार शुरू किया. घर के बगल में ही 60 × 60 का टीना का गोदाम बनवाया. जिसमें 45 हजार रु खर्चा लगा. 70 हजार में मखाना साफ करने वाला हॉलर खरीदे. 90 बोड़ा मखाना से व्यापार की शुरुआत की. कटिहार और आसपास के मखाना के मजदूरों से मखाना की खरीद शुरू की. सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से कॉन्टेक्ट करके छोटे छोटे व्यापारी के पास माल भेजने लगे. इस तरह मखाना का धंधा शुरू हुआ.''- गुल्फराज, युवा उद्यमी
लॉकडाउन में लगा घाटा:मखाना के के व्यापार में धीरे-धीरे मन लगने लगा. दिल्ली और गुड़गांव की दो कंपनियों से मखाना का ऑर्डर मिला. एक कंपनी ने 24 लाख का दूसरी कंपनी ने 10 लाख का ऑर्डर दिया. मखाना की डिलीवरी के बाद दोनों कंपनियों की तरफ से 24 लाख रुपए का चेक दिया गया. लेकिन दोनों चेक बाउंस कर गया. इसी बीच पूरे देश में लॉकडाउन हो गया.
''जिस कंपनी ने मखाना लिया था वह पैसा देने के लिए आनाकानी करने लगा. आज भी वह पैसा नहीं मिला है और मामला कोर्ट में चल रहा है. जिन मखाना किसानों से उधार लिए थे वह लोग अब प्रेशर बनाने लगे. पूरा परिवार परेशान हो गया कि आखिर पैसा कहां से लाएंगे. खेत की जमीन को बंधक रखकर कुछ पैसे की व्यवस्था हुई इसके अलावा 6 लाख रु फिर सूद पर लिया. उन पैसों से मखाना के किसानों को कुछ-कुछ पैसा चुकाए."- गुल्फराज, युवा उद्यमी
मोदी मखाना ने किस्मत बदली:छोटे स्तर पर मखाना का व्यापार करने वाले गुल्फराज ने घाटा सहने के बाद भी हिम्मत नहीं हारा. खुला मखाना के जगह पर अपना ब्रांड बनाकर बेचने की योजना शुरू की. नेशनल मखाना उद्योग के नाम से कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया. अपने ब्रांड का नाम "मोदी मखाना" रखा. इस तरह उनकी कंपनी शुरू हुई. 2021 में उन्होंने बिहार सरकार के उद्यमी योजना के तहत अप्लाई किया.बिना मॉर्गेज के बैंक उनके प्लांट पर लोन देने को तैयार नहीं था. लेकिन स्पॉट वेरिफिकेशन के बाद बैंक लोन देने के लिए तैयार हो गया. 25 लाख रु लोन लेकर 1800 स्क्वायर फीट में अपना नया यूनिट तैयार करवाया. मखाना के किसानों से नकद में माल खरीदना शुरू किया. "मोदी मखाना" को लेकर सोशल मीडिया पर डाला. कुछ जगहों से इसको लेकर फोन आने लगा.
पहला क्लाइंट बनारस का मिला: मोदी मखाना बनने के बाद सोशल मीडिया पर इसको साझा किया. मोदी मखाना को लेकर सबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के व्यापारियों ने इसमें इंटरेस्ट दिखाया. बनारस का बड़ा व्यापारी उनसे संपर्क किया. दिल्ली के व्यापारी से सबक लेकर उन्होंने क्रेडिट के बदले नगद लेनदेन पर बात की. वह भी तैयार हो गए और पहला बड़ा खेप बनारस भेजे.दिल्ली और गुजरात के बड़े व्यापारी भी उनसे संपर्क किया. उन्होंने उन लोगों को भी मोदी मखाना की सप्लाई शुरू की. इस तरह उनका व्यापार धीरे-धीरे चलने लगा. दरभंगा मधुबनी सहरसा पूर्णिया कटिहार किशनगंज अररिया सीतामढ़ी जिले के मखाना के किसानों से कच्चा माल खरीद रहे हैं.