पटना :शशि भूषण तिवारी अब मुजफ्फरपुर में 'मशरूम मैन' के नाम से जाने जाते हैं. इस सफलता को पाने के लिए शशि भूषण तिवारी ने दिन-रात मेहनत की है. अपने संघर्ष की कहानी सुनाते हुए शशि भूषण तिवारी कई बार भावुक हो जाते हैं. हालांकि, उनकी आंखों में इस बात की चमक होती है कि आज वह अपने संघर्ष को सफल कर चुके हैं. जो उन्होंने 24 साल पहले सपना देखा था उस सपने को साकार कर चुके हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने अपनी कहानी शेयर की.
'दिल्ली में कई बार भूखा सोया हूं' :शशि भूषण दिल्ली के संघर्ष को कभी नहीं भूलने की बात करते हैं. कहते हैं दिल्ली में मैंने ऐसा दिन गुजारा है कि भगवान ना करे किसी और को यह दिन गुजारना पड़े. मैंने पहली नौकरी मात्र 1200 रुपए महीने में शुरू की थी. मैं दिल्ली में कई रात बिना खाये सोया हूं. मैं ग्रेजुएट हूं लेकिन, दिल्ली में मैंने दूसरे के कारों का शीशा साफ किया है. जाड़े की रातों में सेव की पेटी को बिछाकर सोता था.
''1996 में मेरी शादी हो चुकी थी. उस समय को मैंने कैसे काटा वो शब्दों में नहीं बयां कर सकता हूं. पर इतना जरूर कहूंगा कि मेरी पत्नी मेरे साथ हमेशा खड़ी रही. मेरे सपनों को मुकाम तक पहुंचाने में मेरी पत्नी का बड़ा हाथ है. उसके हौसले ने मेरी जिंदगी को नई उंचाई है. आज मेरी बेटी शालू राज डॉक्टर है. मेरा बेटा साहिल तिवारी मेरे काम को आगे बढ़ा रहे हैं. आज मेरे पास लग्जरी कार है, घर है. अब हमलोग फार्म हाउस में ही रहते हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन
'पत्नी मेरे लिए पिलर है' :शशि भूषण कहते हैं कि, मेरी पत्नी ममता तिवारी का मुझे बहुत साथ मिला. मैं सुबह 4:00 बजे निकलता था दिल्ली में और रात 10:00 बजे आता था. पत्नी ने मेरा खूब साथ दिया. मेरी पत्नी ने कभी भी मुझसे कोई डिमांड नहीं किया. जब तक मैं काम करता रहा हूं तब तक वह घर पर इंतजार करती थी. वह कभी भी कोई बात हंस कर ही कहती हैं. उसने मुझे कभी टूटने नहीं दिया. आज वह मेरे साथ पिलर की तरह खड़ी है.
लोगों को काम से दिया जबाब :शुरू में मुजफ्फरपुर में लोगों ने बहुत ताना मारा. कोई कहता था कि यह कुकरमुत्ता है तो, कोई कहता था यह गोबर छाता है. लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त हूं. मैं कह देता था हनुमान जी, उन्हें आप देख लीजिएगा. परेशानियां किसकी जिंदगी में नहीं आती हैं और परेशानियों से मैं घबरा जाता और लोगों को जवाब देता तो, मैं यहां नहीं होता. मैं अपने कर्म पर फोकस किया. मैं उन सभी को अपने काम से जवाब दिया.
हर महीने 50-60 लाख के मशरूम बिकते हैं :शशि भूषण का कहना है कि, एक दिन में 1600 किलो, 1800 किलो, 2000 किलो तो कभी-कभी 2200 किलो तक चला जाता है. यह बताना मुश्किल है कि प्रतिदिन कितना होगा लेकिन, कभी बढ़ता भी है और कभी घटता भी है. प्रतिदिन में 1600 से 1700 किलो बेचता हूं. प्रतिदिन 40 से 50 हजार प्रॉफिट हो जाता है. पिछले साल का जो मेरा बैलेंस रिकॉर्ड था वह 6 से 7 करोड़ का था. मेरा प्रति महीने मशरूम की बिक्री लगभग 50 से 60 लाख रुपए की हो जाती है. ये कभी बढ़ती घटती रहती है.
''मशरूम का रेट जो है वह बढ़ता और घटना रहता है. कभी ₹50 किलो भी बिकता है तो कभी ₹200 किलो में बिकता है. जो लगातार हमसे लेते हैं तो उनका रेट अलग होता है. जो कभी-कभार आता है उनके लिए रेट अलग होता है. मैं यह कोशिश करता हूं कि रेट ऐसा रहे कि आम लोगों के पास मेरा प्रोडक्ट पहुंचे. हमने सबसे ज्यादा महिलाओं को नौकरी दी है और लगभग यह डेढ़ सौ की संख्या में यहां काम करती हैं. इसके अलावा 10-15 पुरुष स्टाफ भी हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन
'मशरूम को नॉनवेज समझा था' : आइये अब आपको शशि भूषण तिवारी के बारे बताते हैं कि वह कैसे 'मशरूम मैन' बन गए. शशि भूषण जब भी उस दिन को याद करते हैं उनके चेहरे पर अजीब सी चमक दिखती है. वो कहते हैं, मैं जब साल 2000 में दिल्ली में रहता था. उस समय पहली बार मैंने मशरूम का स्वाद चखा था. मैं ब्राह्मण परिवार से आता हूं, मुझे लगा कि किसी ने नॉनवेज खिला दिया. बाद में मेरे दोस्तों ने कहा कि नहीं यह वेज है और इसे खाया जा सकता है. मैंने दोबारा खाया तो उसका टेस्ट लाजवाब लगा और वह स्वाद आज तक मेरे जुबान पर है. उसके बाद से मैं इस मशरूम को लेकर एक लंबा संघर्ष किया है.
''जब मैं मशरूम खाया था तो मेरे अंदर यह जिज्ञासा हुई कि आखिर यह चीज है क्या? इसे कैसे बनाया जाता है? इसे कैसे उगाया जाता है? इन तमाम चीजों की जिज्ञासा मेरे अंदर हुई. दोस्तों ने बताया कि जहां मैं काम करता था (आजादपुर मंडी) वहां यह मशरूम आता था. उस समय मैं पहली बार मशरूम को देखा था.''-शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन
'मशरूम के बारे में जिज्ञासा बढ़ी' :शशि भूषण का कहना था लोगों ने उन्हें बताया गया कि यह खुंबी है. खुंबी मेरे लिए नया शब्द था. फिर बाद में लोगों ने बताया कि इसे मशरूम कहते हैं. लोगों ने कहा कि यह दिल्ली के नजदीक हरियाणा में होता है. इसके बाद समय निकालकर जहां-जहां इसका पैदावार होता था, मैं वहां जाता था. जब भी छुट्टी मिलती थी, मैं वहां चला जाता था. मैं लगातार उसके बारे में जानना चाहता था.
''एक बार तो मैं मशरूम खरीद कर घर ले गया था लेकिन, मुझे मशरूम की सब्जी कैसे बनती है, यह बनाने नहीं आया. फिर मेरे दिमाग में यह बात आई कि क्यों नहीं इसे अपने यहां उगाया जाए? अपने यहां उपजाया जाए? मैं लगातार हरियाणा के किसानों से बातचीत करता रहा.''-शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन