मंडी: 2013 का वो मंजर देश आज भी नहीं भूला है, जब उत्तराखंड में बाढ़ ने तबाही मचाई थी. इस बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया था. कई घर, होटल, मकान,दुकान मलबे में दब गए थे. इस बाढ़ ने भले ही पूरे इलाके में तबाही मचाई हो, लेकिन बाबा केदारनाथ के उस मंदिर का बाल भी बांका नहीं कर सका. हालांकि मंदिर परिसर का हिस्सा बाढ़ के मलबे की चपेट में आ गया था. इसी तरह का तांडव 2023 में हिमाचल ने भी मचाया था. इस बाढ़ में भी जान-माल का भारी नुकसान हुआ था. घर-दुकानें सब कुछ तबाह हो गई थी, लेकिन मंडी का पंचवक्त्र मंदिर भारी सैलाब के बीच भी जस का तस रहा. ब्यास नदी के पानी में ये मंदिर पूरी तरह डूब गया था. सैलाब में डूबे मंदिर की वो तस्वीरें कौन भूल सकता है. उस दृश्य ने 2013 में बाढ़ में डूबे केदारनाथ मंदिर की याद दिला दी थी
550 साल पुराना मंडी का पंचवक्त्र मंदिर दिखने में केदारनाथ की तरह लगता है. कुदरत के कहर के साथ केदारनाथ मंदिर की तरह भगवान भोलेनाथ का पंचवक्त्र मंदिर 2023 में लहरों से संघर्ष करता रहा. पंचवक्त्र मंदिर ने घंटो तक ब्यास नदी की लहरों का जमकर सामना किया. मंदिर के आसपास सब तबाह हो गया, ब्यास नदी की धारा मंदिर के ऊपर से होकर गुजर गई, लेकिन मंदिर को आंच तक नहीं आई और साढ़े पांच सौ साल पुराना ये मंदिर अपनी जगह खड़ा रहा. लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे थे.
ब्यास नदीं के तट पर स्थित है पंचवक्त्र मंदिर
हिमाचल के मंडी को छोटी काशी कहा जाता है, जिस तरह काशी गंगा नदी के तट पर स्थित है, उसी तरह मंडी ब्यास नदी के तट पर स्थित है. यहां पंचवक्त्र सहित शिव के कई प्राचीन हैं जैसे भूतनाथ, त्रिलोकीनाथ, अर्धनारीश्वर काफी प्रसिद्ध हैं. पंचवक्त्र मंदिर सुकेती और ब्यास नदी के संगम पर स्थित है. मंदिर के पुजारी हरीश कुमार ने बताया कि, 'ये मंदिर राजाओं के समय का है. पंचवक्त्र मंदिर करीब 550 साल पुराना है.' कुछ किताबें में जिक्र है कि इस मंदिर का निर्माण राजा सिद्ध सेन ने बनवाया था. वहीं, कुछ किताबो में इस मंदिर के निर्माण श्रेय राजा अजबर सेन को दिया जाता है.
2023 में हिमाचल प्रदेश में आने वाली तबाही के समय मंडी के पंचवक्त्र महादेव मंदिर की तस्वीरों को कई सालों तक याद रखा जाएगा. इस मंदिर के आसपास आज भी तबाही के निशान नजर आते हैं. मंडी शहर को मंदिर से जोड़ने वाला पुराना लोहे का पुल भी नदी में आई बाढ़ में बह गया था. ब्यास नदी के प्रचंड धराओं ने मंदिर के दरवाजे को नुकसान पहुंचाया था. मंदिर में भारी मलबा आ गया था, लेकिन मंदिर की दिव्यता और भव्यता पर कोई असर नहीं हुआ था. मंदिर ज्यों का त्यों खड़ा रहा. प्रागण में विराजमान नंदी भी मलबे में दब गए थे, लेकिन नंदी महाराज भी अपने स्थान पर डटे रहे थे.
नदी के पानी में डूब गया था मंदिर