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सोमवती अमावस्या: तीर्थराज पुष्कर में श्राद्ध कर्म के लिए उमड़े लोग, भाद्रपद में 10 साल बाद आई है यह अमावस्या - Somvati Amavasya

हिंदू धर्म शास्त्रों में सोमवती अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्व है. इस दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म किसी तीर्थ स्थान पर करने से उन्हें शांति मिलती है.सोमवती अमावस्या के मौके पर तीर्थराज पुष्कर में पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर श्रद्धालुओं का स्नान और श्राद्ध कर्म और पूजा अर्चना के लिए तांता लगा हुआ है. सोमवती के साथ आज कुशा अमावस्य भी है. जानिए इनका महत्व ...

Somvati Amavasya
तीर्थराज पुष्कर में श्राद्ध कर्म के लिए उमड़े लोग (Photo ETV Bharat Ajmer)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 2, 2024, 3:10 PM IST

तीर्थराज पुष्कर में श्राद्ध कर्म के लिए उमड़े लोग (Video ETV Bharat Ajmer)

अजमेर: भाद्रपद में सोमवती अमावस्या 10 वर्ष बाद आई है. वर्ष में सोमवती अमावस्या 2 से 4 बार आती है. इस मौके पर तीर्थ स्थलों में स्नान, ध्यान, पूजा अर्चना खासकर पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है. सोमवती अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते है. सूर्य के प्रभाव से चंद्रमा का प्रभाव शून्य हो जाता है. माना जाता है कि मन को एकाग्रचित करने का यह सबसे उपयुक्त दिन है. पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म के लिए सोमवती अमावस्या को श्रेष्ठ बताया गया है.

तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र शर्मा के अनुसार सोमवती अमावस्या सुबह 5 बजकर 21 मिनट से लेकर मंगलवार 7 बजकर 24 मिनट तक है. खास बात है कि सोमवार शाम 6 बजकर 20 मिनट तक शिव योग और उसके बाद सिद्ध योग भी है. यही वजह है तीर्थराज पुष्कर में सुबह से ही पुष्कर के पवित्र सरोवर के घाटों पर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा हुआ है. भाद्रपद में आई सोमवती अमावस्या के अवसर का लाभ उठाते हुए श्रद्धालुओं ने तीर्थराज पुष्कर सरोवर में स्नान किया. इसके बाद तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध और ​पिंडदान किए.

पढ़ें: सोमवती अमावस्या 2024: आज की रात करें ये उपाय, पितरों का मिलेगा आर्शीवाद, मां लक्ष्मी आएंगी आपके घर

गरुड़ पुराण के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करना श्रेष्ठ माना जाता है. ऐसा करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. साथ ही शिव योग होने पर शिव पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं. श्रद्धालुओं ने श्राद्ध कर्म, सरोवर की पूजा के साथ शिव पूजा भी की. पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने अपने श्रद्धा के अनुसार दान पुण्य किया. श्रद्धालुओं ने जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के भी दर्शन किए.

पांडव भी आए थे पुष्कर:महाभारत के युद्ध के बाद अपनों की हत्या और पितरों की मुक्ति के प्रयोजन से पांडव भी पुष्कर आए थे. यहां श्राद्ध कर्म के लिए पांडवों ने वर्षों तक पंचकुंड में रहकर सोमवती अमावस्या का इंतजार किया था. जब सोमवती अमावस्या नहीं आई तो पांडवों को बिना श्राद्ध कर्म के ही हिमालय की ओर लौटना पड़ा था.

कुशा अमास्या का भी है महत्व:पंडित सतीश ने बताया कि सोमवती अमावस्या के साथ कुशा अमावस्या भी सोमवार को है. उन्होंने बताया कि आज के दिन जंगल से कुशा घर लानी चाहिए. यदि ऐसा नहीं कर सकते तो किसी पंसारी की दुकान से ही कुशा घर में जरूर लाएं. इस कुशा का उपयोग सूतक के अलावा अन्य मांगलिक कार्यो में करें.

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