ETV Bharat / bharat

कर्नाटक सरकार ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए पेश किया अध्यादेश, राज्यपाल ने लौटाया - KARNATAKA

कर्नाटक के राज्यपाल ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को लौटा दिया, जिसमें कर्ज वसूली के लिए बल प्रयोग को रोकने का प्रावधान था.

karnataka governor
राज्यपाल थावरचंद गहलोत (X@TCGEHLOT)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 7, 2025, 7:19 PM IST

बेंगलुरु: राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के माइक्रो लोन और स्मॉल लोन (बलपूर्वक कार्रवाई की रोकथाम) अध्यादेश को वापस भेज दिया. इससे कर्नाटक सरकार की अनरजिस्टर्ड और बिना लाइसेंस वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को कर्जदारों पर बलपूर्वक कार्रवाई करने से रोकने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है. साथ ही गहलोत ने सजा और माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र पर इसके संभावित प्रभाव पर चिंता व्यक्त की.

बता दें कि पिछले हफ्ते राज्य मंत्रिमंडल ने पारित अध्यादेश में ओर्डिनेंस के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लिए 10 साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव पेश किया था.इस पर राज्यपाल ने कहा, " जब दिए जा जाने वाले कर्ज की अधिकतम राशि 3 लाख रुपये है, तो 5 लाख रुपये का प्रस्तावित जुर्माना अपने आप में प्राकृतिक सिद्धांतों के खिलाफ है."

क्यों लाया गया अध्यादेश?
पिछले दो महीनों में राज्य के विभिन्न भागों से माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने भोले-भाले कर्जदारों को परेशान करने के मामले सामने आने और कुछ कर्जदारों की आत्महत्या करने की रिपोर्टें सामने आने के बाद राज्य सरकार को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए अध्यादेश लाना पड़ा.

कठोर दंड के अलावा अध्यादेश में ओर्डिनेंस की तारीख तक कर्ज लेने वालों को ब्याज सहित हर कर्ज से पूरी तरह से मुक्ति देकर उधारकर्ताओं को राहत प्रदान करने की मांग की गई थी. इसके अलावा इसमें प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में कर्ज वसूली के लिए किसी भी अदालत में सभी लंबित कार्यवाही को बढ़ावा देने के अलावा अदालतों को कर्जदारों के खिलाफ कार्यवाही करने से रोकना शामिल था.

'मौलिक अधिकारों का उल्लंघन'
राज्यपाल ने कहा, "अध्यादेश में उन्हें कर्ज देने वालों को अपनी लंबित राशि वसूलने का कोई उपाय नहीं दिया गया है. यह किसी व्यक्ति को उसके अधिकारों और कानूनी उपायों के लिए लड़ने से रोकने के समान है, जो संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है."

राज्यपाल ने कहा कि अध्यादेश समग्र रूप से कर्ज देने के सिद्धांतों के खिलाफ लगता है और यह बिजनेस के साथ-साथ छोटे कर्जदारों को भी प्रभावित करेगा, जिनको बैंकों से कर्ज नहीं मिलता है. उन्होंने कहा, "यह (अध्यादेश) समाज में सद्भावना और भाईचारे को खत्म कर सकता है, क्योंकि यह कर्ज लेने वालों को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ कर्ज देने वालों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करता है."

अध्यादेश को बजट सत्र में लाने की सलाह
उन्होंने अध्यादेश की आवश्यकता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा कानून अनधिकृत उधारदाताओं से निपटने के लिए पर्याप्त प्रभावी हैं. ऐसी समस्याओं से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए इनफोर्समेंट मशीनरी द्वारा मौजूदा ढांचे का कुशल कार्यान्वयन काफी है. राज्य सरकार से उनकी चिंताओं को संबोधित करते हुए अध्यादेश को फिर से प्रस्तुत करने के लिए कहते हुए, राज्यपाल ने अध्यादेश को जल्दबाजी में पारित करने के बजाय अगले महीने शुरू होने वाले बजट सत्र में विस्तृत विचार-विमर्श के बाद एक प्रभावी अधिनियम लाने की सलाह दी.

यह भी पढ़ें- राज्यपाल के आदेश पर ध्यान देते हैं नौकरशाह, जम्मू कश्मीर के विधायकों का आरोप

बेंगलुरु: राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के माइक्रो लोन और स्मॉल लोन (बलपूर्वक कार्रवाई की रोकथाम) अध्यादेश को वापस भेज दिया. इससे कर्नाटक सरकार की अनरजिस्टर्ड और बिना लाइसेंस वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को कर्जदारों पर बलपूर्वक कार्रवाई करने से रोकने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है. साथ ही गहलोत ने सजा और माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र पर इसके संभावित प्रभाव पर चिंता व्यक्त की.

बता दें कि पिछले हफ्ते राज्य मंत्रिमंडल ने पारित अध्यादेश में ओर्डिनेंस के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के लिए 10 साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव पेश किया था.इस पर राज्यपाल ने कहा, " जब दिए जा जाने वाले कर्ज की अधिकतम राशि 3 लाख रुपये है, तो 5 लाख रुपये का प्रस्तावित जुर्माना अपने आप में प्राकृतिक सिद्धांतों के खिलाफ है."

क्यों लाया गया अध्यादेश?
पिछले दो महीनों में राज्य के विभिन्न भागों से माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने भोले-भाले कर्जदारों को परेशान करने के मामले सामने आने और कुछ कर्जदारों की आत्महत्या करने की रिपोर्टें सामने आने के बाद राज्य सरकार को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए अध्यादेश लाना पड़ा.

कठोर दंड के अलावा अध्यादेश में ओर्डिनेंस की तारीख तक कर्ज लेने वालों को ब्याज सहित हर कर्ज से पूरी तरह से मुक्ति देकर उधारकर्ताओं को राहत प्रदान करने की मांग की गई थी. इसके अलावा इसमें प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में कर्ज वसूली के लिए किसी भी अदालत में सभी लंबित कार्यवाही को बढ़ावा देने के अलावा अदालतों को कर्जदारों के खिलाफ कार्यवाही करने से रोकना शामिल था.

'मौलिक अधिकारों का उल्लंघन'
राज्यपाल ने कहा, "अध्यादेश में उन्हें कर्ज देने वालों को अपनी लंबित राशि वसूलने का कोई उपाय नहीं दिया गया है. यह किसी व्यक्ति को उसके अधिकारों और कानूनी उपायों के लिए लड़ने से रोकने के समान है, जो संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है."

राज्यपाल ने कहा कि अध्यादेश समग्र रूप से कर्ज देने के सिद्धांतों के खिलाफ लगता है और यह बिजनेस के साथ-साथ छोटे कर्जदारों को भी प्रभावित करेगा, जिनको बैंकों से कर्ज नहीं मिलता है. उन्होंने कहा, "यह (अध्यादेश) समाज में सद्भावना और भाईचारे को खत्म कर सकता है, क्योंकि यह कर्ज लेने वालों को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ कर्ज देने वालों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करता है."

अध्यादेश को बजट सत्र में लाने की सलाह
उन्होंने अध्यादेश की आवश्यकता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा कानून अनधिकृत उधारदाताओं से निपटने के लिए पर्याप्त प्रभावी हैं. ऐसी समस्याओं से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए इनफोर्समेंट मशीनरी द्वारा मौजूदा ढांचे का कुशल कार्यान्वयन काफी है. राज्य सरकार से उनकी चिंताओं को संबोधित करते हुए अध्यादेश को फिर से प्रस्तुत करने के लिए कहते हुए, राज्यपाल ने अध्यादेश को जल्दबाजी में पारित करने के बजाय अगले महीने शुरू होने वाले बजट सत्र में विस्तृत विचार-विमर्श के बाद एक प्रभावी अधिनियम लाने की सलाह दी.

यह भी पढ़ें- राज्यपाल के आदेश पर ध्यान देते हैं नौकरशाह, जम्मू कश्मीर के विधायकों का आरोप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.