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फैशन की दुनिया में दिखेगी सोहराई पेंटिंग, फैशन क्षेत्र की छात्राएं परिधान में दे रहीं जगह - SOHRAI PAINTING IN FASHION

सोहराई पेंटिंग अब फैशन की दुनियां में भी दिखाई देगी. कई परिधानों पर इस पेंटिंग को जगह दी गई है.

Sohrai painting in Fashion
सोहराई पेंटिंग वाली साड़ी पहने मॉडल (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 24, 2024, 8:09 PM IST

Updated : Dec 25, 2024, 11:39 AM IST

हजारीबाग: 5000 वर्ष पुरानी सोहराई कला फैशन के दुनिया में हजारीबाग अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करने को लेकर आतुर दिख रहा है. गुफा से निकली हुई यह कला दूर तक अपनी पहचान तय कर चुकी है. अब यह कला मॉडलिंग के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही है. गुफा से निकलकर परिधानों में सोहराई कला उतारी जा रही है.

फैशन की दुनिया में दिखेगी सोहराई पेंटिंग (ईटीवी भारत)

झारखंड की एक मात्र जीआई टैग प्राप्त सोहराई कला अब फैशन की दुनिया में भी अपनी जगह बनाने को आतुर दिख रही है. साड़ियों के साथ कई अन्य कपड़ों पर सोहराई उकेरा जा रहा है. हैंडमेड पेंटिंग के अब अमेरिका और ब्रिटेन तक कद्रदान मिलने लगे हैं. पटना के निफ्ट, पुणे के सिम्बायोसिस के अलावा विनोद भाव विश्वविद्यालय समेत दूसरे कॉलेजों की फैशन टेक्नोलॉजी की छात्राएं अब इस कला को सीख रहे हैं.

सोहराई पेंटिंग (ईटीवी भारत)

सोहराई पेंटिंग की साड़ी पहनकर आदिवासी लड़कियां कैटवॉक कर रही हैं. इसमें उनकी मदद फैशन टेक्नोलॉजी से जुड़ी छात्राएं कर रही हैं. इसमें मुख्य रूप से पद्मश्री बुलू इमाम का पूरा परिवार जिसमें उनकी पुत्रवधू अलका इमाम, बेटा जस्टिन और बेटी का भरपूर सहयोग मिल रहा है. अलका इमाम के पति और पुत्र का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उनके पुत्र एडम इमाम इसकी पूरी पृष्ठभूमि तैयार करते हैं, डिजाइन कैसा होगा उसका पूरा खाका तैयार करते हैं.

सोहराई पेंटिंग (ईटीवी भारत)

सोहराई झारखंड की एक पारंपरिक कला है जो घरों की दीवारों पर की जाती है. बड़कागांव के बादाम के इसको गुफा में इस कला को देखा जा सकता है. 5000 वर्ष से अधिक पुरानी इस कलाकृति में प्रकृति को स्थान दिया जाता है. फैशन डिजाइनिंग की छात्राएं कहती हैं कि वह दिन दूर नहीं है कि पेरिस फैशन शो में भी सोहराई की धमक देखने को मिलेगी. इसे लेकर नया जेनरेशन काम भी कर रहा है.

ऐसा कहा जाता है कि बादाम राजा ने इस कलाकृति को बनाया था. इसमें बनने वाले डिजाइनों में पेड़-पौधे, पत्ते, जीव-जंतु आदि के चित्र होते हैं. इसकी बारीकी इतनी है कि हर पत्ते और डिजाइन का अपना एक खास मतलब होता है. इस कला को पारंपरिक तौर पर जिंदा रखना एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में इसे फैब्रिक्स कपड़ों पर लाना जरूरी समझा जा रहा था. राज्य में पहले भी इसके लिए बहुत कोशिश हुई हैं. इस कला पर विशेष रूप से काम कर रही अलका इमाम का कहना है कि नई पीढ़ी इसे कैसे स्वीकार करें इसे देखते हुए कोशिश की जा रही है कि इस फैशन की दुनिया में भी लाया जाए.

हजारीबाग की अपनी कला सोहराई फैशन की दुनिया में भी पहचान मिले इसे लेकर अलका इमाम और उनकी छात्राएं मिलकर काम कर रही हैं. कहना गलत नहीं होगा कि वह दिन दूर नहीं है कि फैशन की दुनिया में सोहराई भी अपना जलवा दिखाएंगी.

हजारीबाग के दीपूगढ़ा में इस कला को कपड़ों पर उतारने के लिए अलग से वर्कशॉप चलाया जा रहा है. इसके सकारात्मक नतीजे भी सामने आने लगे हैं. सोहराई कलाकार अलका इमाम कहती हैं कि 2022 से दीपूगढ़ा में सोहराई सीखने वाले विद्यार्थियों के माध्यम से इस कला को कपड़ों पर उतारा जा रहा है. साड़ी, स्टॉल, स्कार्फ, दुपट्टा पर सोहराई की पेंटिंग की जा रही है. इससे इसके कई कद्रदान मिलने लगे हैं. विदेशों से इसकी डिमांड आने लगी है. एक साड़ी में पूरी तरह से सोहराई की डिजाइन बनाने में पांच से छह दिन और कभी- कभी तो 10 दिन तक तक का समय लग जाता है. पूरी तरह इसकी पेंटिंग हाथ से बनायी जाती है. इसलिए इसमें एक साथ 10 आर्टिजन को लगाया जाता है. भागलपुरी सिल्क पर की जाने वाली पेंटिंग की डिमांड इतनी है कि लोग खोजकर उसका ऑर्डर देते हैं.

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Last Updated : Dec 25, 2024, 11:39 AM IST

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