हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / state

सुप्रीम कोर्ट तक सिस्टम से लड़ी अकेली नारी, पति को खो चुकी शीला के संघर्ष से हजारों कर्मियों को मिला अनुबंध अवधि की पेंशन का हक - Pension Right Battle in SC

हिमाचल प्रदेश में अब अनुबंध सेवाकाल के हजारों कर्मचारियों को पेंशन का लाभ मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जिन भी कर्मचारियों की अनुबंध अवधि के कारण नियमित दस साल की सेवा पूरी नहीं हुई. अब उन्हें भी OPS का लाभ मिलेगा. ये संभव हो पाया है शीला देवी के संघर्ष के कारण. शीला देवी के संघर्ष की कहानी जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Sheela Devi fought battle of pension right up to Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 12, 2024, 7:01 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश की एक अकेली नारी ने सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया और राज्य के हजारों कर्मचारियों के लिए अनुबंध अवधि की पेंशन का रास्ता प्रशस्त किया. हिमाचल में कर्मचारी वर्ग में ये केस शीला देवी के नाम से चर्चित हुआ. एक दशक से भी अधिक समय तक शीला देवी ने हिमाचल प्रदेश राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल से लेकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ी. आखिरकार शीला देवी का संघर्ष कामयाब हुआ और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हिमाचल सरकार ने अनुबंध अवधि की पेंशन से जुड़ा ऑफिस मेमोरेंडम जारी कर दिया.

शीला देवी के पति डॉ. प्रकाश ठाकुर आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी थे. सेवाकाल के दौरान ही हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई थी. डॉ. ठाकुर पहले अनुबंध के तहत नियुक्त हुए थे. आठ साल का अनुबंध सेवाकाल पूरा करने के बाद वे नियमित हुए थे. अभी उन्हें नियमित हुए तीन साल का अरसा हुआ था कि उनका ड्यूटी के दौरान देहांत हो गया. पति को खोने के बाद शीला देवी ने पेंशन के हक के लिए लड़ाई लड़ी. ये लड़ाई अनुबंध सेवाकाल को पेंशन के लिए गिने जाने को लेकर थी. अंतत: तेरह साल की लड़ाई कामयाब हुई और सुप्रीम कोर्ट से निर्णय आने के बाद हिमाचल सरकार को अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिने जाने को लेकर ऑफिस मेमोरेंडम जारी करना पड़ा.

वित्त विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार ने जारी किया ऑफिस मेमोरेंडम (ETV Bharat)

अनुबंध सेवाकाल का खामियाजा भुगता

बिलासपुर जिले की रहने वाली शीला के पति डॉ. प्रकाश ठाकुर को राज्य सरकार ने वर्ष 2000 में अनुबंध पर आयुर्वेद विभाग में नियुक्ति दी. उस समय अनुबंध सेवाकाल आठ साल का होता था. इस समय अनुबंध सेवाकाल घटकर दो साल का रह गया है, लेकिन पहले ये अवधि आठ साल की थी. डॉ. प्रकाश ठाकुर ने आठ साल की अनुबंध सेवा अवधि पूरी की और वे वर्ष 2008-09 में नियमित हो गए. फिर नियमित नौकरी करते हुए उन्हें तीन साल ही हुए थे कि वर्ष 2011 के जनवरी माह में उनकी ड्यूटी के दौरान मौत हो गई.

डॉ. ठाकुर की सेवाकाल के दौरान मौत के बाद आयुर्वेद विभाग ने डेथ-कम-रिटायरमेंट ग्रेच्युटी यानी डीसीआरजी की मामूली रकम मिलाकर उनकी पत्नी शीला देवी को कुल 1.40 लाख रुपए जारी किए. एनपीएस के तहत शीला को अपने पति की आयुर्वेद विभाग में सेवा के बदले करीब 800 रुपए मासिक पेंशन ही मिलनी थी. इस रकम से गुजारा संभव नहीं था. कुल मिलाकर बात ये हुई कि पति की आठ साल अनुबंध सेवा व तीन साल नियमित सेवा के बाद भी शीला देवी को कोई पेंशन नहीं मिल पा रही थी.

हक के लिए पहुंची हाईकोर्ट

शीला देवी ने अपने हक के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जनवरी 2011 में उनकी पति की मौत हुई और अगस्त 2011 में शीला देवी न्याय के लिए हाईकोर्ट पहुंची. उधर, घटनाक्रम कुछ यूं बदला कि हिमाचल में फिर से राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बहाल हो गया. ट्रिब्यूनल के बहाल होने से मामला हाईकोर्ट से वहां के लिए शिफ्ट होना था, लेकिन इसमें दो साल का समय लग गया. खैर, बाद में वर्ष 2016 में हिमाचल प्रदेश राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने शीला देवी को राहत दी और सरकार को आदेश जारी किया कि सेवानिवृति से जुड़े सभी लाभ दिए जाएं. वहीं, शीला देवी चाहती थी कि उन्हें पेंशन का हक मिले और अनुबंध अवधि को भी कंसीडर किया जाए.

इधर, फिर नियति ने शीला देवी की परीक्षा ली. राज्य में सत्ता बदलते ही प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बंद हो गया और मामला फिर से हाईकोर्ट चला गया. लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि सरकार ऐसे मामलों में गलत प्रक्रिया नहीं अपना सकती. पूर्व सरकार के कार्यकाल में हाईकोर्ट ने नवंबर 2018 में निर्णय दिया कि अनुबंध की अवधि को पेंशन के लिए गिना जाए. जब तत्कालीन जयराम सरकार ने मामले में कोई कार्रवाई नहीं की तो शीला देवी ने वर्ष 2019 के जुलाई माह में अवमानना याचिका दाखिल कर दी. हाईकोर्ट में अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और राज्य सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

सुप्रीम कोर्ट से भी शीला देवी के हक में आया फैसला

खैर, फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. शीला देवी ने ठान लिया था कि अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिनने संबंधी इस केस को अंजाम तक पहुंचाना है. चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने शीला देवी के हक में फैसला दिया. पिछले साल अगस्त में राज्य सरकार को इस मामले में हार मिली और सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया, जिसमें अदालत ने अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिने जाने के आदेश जारी किए थे. राज्य में सत्ता परिवर्तन हो चुका था. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद रिव्यू याचिका दाखिल की. शीला देवी ने हार नहीं मानी. खैर, रिव्यू याचिका भी खारिज हो गई.

बड़ी बात ये है कि शीला देवी ने ये लड़ाई अकेले ही लड़ी. इस दौरान किसी भी कर्मचारी यूनियन का उन्हें साथ और सहयोग नहीं मिला. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार को ऑफिस मेमोरेंडम जारी करना पड़ा है. इससे अनुबंध सेवाकाल वाले हजारों कर्मियों को पेंशन का लाभ मिल सकेगा. ईटीवी भारत ने इस संदर्भ में 10 जून को (बड़ा फैसला: जिन कर्मियों की अनुबंध अवधि के कारण पूरी नहीं हुई दस साल की रेगुलर सेवा, उन्हें अब मिलेगी ओपीएस) शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी. शीला देवी इस लड़ाई में एक थी, लेकिन लाभ अनेक को मिलेगा. हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों की सेवा से जुड़े मामलों में शीला देवी का एक दशक से भी लंबा संघर्ष मिसाल रहेगा.

ये भी पढ़ें:बड़ा फैसला: जिन कर्मियों की अनुबंध अवधि के कारण पूरी नहीं हुई 10 साल की रेगुलर सेवा, उन्हें अब मिलेगी OPS

ABOUT THE AUTHOR

...view details