उत्तरकाशी: पुरोला प्रखंड के सुदूरवर्ती शिकारू गांव के ग्रामीणों को आखिर कब तक सड़क का इंतजार करना पड़ेगा. सडक की मांग को लेकर शिकारू के ग्रामीण दो बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की भी चेतावनी दे चुके हैं. लेकिन आखिरी क्षण में अधिकारियों के आश्वासन के बाद वोट तो पड़े पर गांव तक रोड आज तक नहीं पहुंची. गजब तो तब हो गया जब 1998-99 में शासन ने पुरोला-करड़ा-धड़ोली और शिकारू गांव के नाम से 18 किमी सड़क स्वीकृत हुई और लोनिवि ने डेढ़ दशक पूर्व सात किमी पहले करड़ा गांव तक निर्माण कर भी दिया. लेकिन करड़ा के ग्रामीण और वनभूमि विवाद से शिकारू गांव सड़क से आज तक नहीं जुड़ पाया है.
पुरोला तहसील मुख्यालय से महज 18 किमी दूरी पर शिकारू ग्राम करड़ा के अंतर्गत आता है. जहां लोगों का सेब, नाशपाती, खुमानी आदि की बागवानी समेत मटर, टमाटर, आलू, चौलाई, राजमा फसलों के उत्पादन के साथ ही भेड़-बकरी पालन मुख्य व्यवसाय है. लगभग 400 जनसंख्या वाले शिकारू गांव के लोगों को आज भी करड़ा से आगे 7 किमी पैदल चलना पड़ रहा है. वहीं बीते दो दशकों से शिकारू के ग्रामीण सड़क निमार्ण की मांग विधायक और सांसद से बार बार गुहार लगा चुके हैं. लेकिन डेढ़ दशक से सड़क की मांग अब केवल डीपीआर और कागजों में ही अटकी पड़ी है. हालात इस कदर है कि गांव तक सड़क न होने का खामियाजा महिलाओं को प्रसव के दौरान भुगतना पड़ता है. जबकि गंभीर बीमारी के समय मरीजों को चारपाई और पीठ में उठाकर करड़ा तक लाना पड़ता है. वहीं सेब, टमाटर, आलू की फसलों को पीठ और खच्चरों से ढोनी पड़ती है.