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झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, मां शैलपुत्री की पूजा कर मांगा आशीर्वाद - Sharidiye Navratri 2024 - SHARIDIYE NAVRATRI 2024

Sharidiye Navratri 2024: आज से शारदीय नवरात्रि 2024 की शुरुआत हो गई है. नवरात्रि के पहले दिन झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. इस मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है.

Sharidiye Navratri 2024
Sharidiye Navratri 2024 (Etv Bharat)

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 3, 2024, 9:40 AM IST

झज्जर: आज से शारदीय नवरात्रि 2024 की शुरुआत हो गई है. नौ दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है और मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. इस मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है.

मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता: माता भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को खास तरह के लाल रंग के रत्न जड़ित पोशाक और स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया है. इस बार माता भीमेश्वरी देवी की पोशाक कोलकाता से बनकर आई है. चांदी के सिंहासन पर विराजमान मां के भव्य रूप के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु बेरी पहुंचने लगे हैं. मान्यता है कि अश्विन नवरात्र में मां की पूजा अर्चना से विशेष फल मिलता है.

झज्जर के मां भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ (Etv Bharat)

पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा: मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में नवविवाहित जोड़े माता के दर्शन कर बेहतर भविष्य की कामना करते हैं. वहीं श्रद्धालु अपने नवजात शिशुओं के सिर का मुंडन करा कर बाल माता पर चढ़ाते हैं, ताकि उनके बच्चों के सिर पर मां की कृपा बनी रहे. आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है, तो पहले दिन मंदिर में माता शैलपुत्री की पूजा की गई. लोगों ने माता से आशीर्वाद भी लिया.

महाभारत कालीन है मंदिर का इतिहास: झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है. मान्यता है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने पाण्डु पुत्र भीम को कुलदेवी मां से विजय श्री का आशीर्वाद लेने के लिए भेजा था. जिसके बाद मां भीम के साथ चलने को तैयार हो गईं, लेकिन शर्त रखी कि रास्ते में कहीं उतारना नहीं होगा. जब भीम बेरी पहुंचे, तो उन्हें लघुशंका जाने के लिए कुलदेवी की प्रतिमा को नीचे रख दिया. तभी से मां भीमेश्वरी देवी यहां विराजमान हैं.

मंदिर में भक्तों का लगा तांता: माना जाता है कि मां की पूजा का सिलसिला महाभारत काल से ही चला आ रहा है. यहां के मंदिर को महाभारत काल में स्थापित किया गया था. बेरी में स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर की खास बात ये है कि यहां मां की प्रतिमा तो एक है, लेकिन मंदिर दो हैं. मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को रोजाना सुबह 5 बजे बेरी कस्बे से बाहर स्थित मंदिर में लाया जाता है. जहां श्रद्धालु माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं. वहीं दोपहर 12 बजे प्रतिमा को पुजारी अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं, जिसके बाद अंदर वाले मंदिर में मां आराम करती हैं.

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