बीकानेर. देवी की उपासना के शारदीय नवरात्र के महापर्व में देवी के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है और हर दिन की पूजा का एक खास महत्व है. अपने मनवांछित कार्य में विजय की प्राप्ति के साथ ही संकट निवारण के लिए नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की स्वरूप की पूजा होती है. देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व है और साधक को पूजा-अर्चना से किसी भी विचार किए कार्य में आते संकट से छुटकारा मिलता है और विजय की प्राप्ति होती है।
इस तरह से हुआ देवी का अवतार : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ और असुरों से युद्ध में देवता जीतने में असफल रहे तब अलग-अलग देवी देवताओं के स्वरूप का अवतार हुआ. उन्होंने बताया कि असुरों से जीतने में असफल हो रहे देवताओं ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव से प्रार्थना करने पहुंचे. इस दौरान त्रिदेवों ने उन्हें मां दुर्गा की पूजा करने की सलाह दी. जिसके बाद देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा-आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया. जिसके बाद मां दुर्गा ने देवी चंद्रघंटा का अवतार लिया. मां चंद्रघंटा को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने तेज, तलवार और सिंह प्रदान किया. किराडू ने बताया कि नवरात्र के समय महिषासुर का देवताओं के साथ युद्ध चल रहा था और उसी समय देवी के अलग-अलग अवतार हुए थे. मां चंद्रघंटा का अवतार भी इसी समय हुआ था.