शहडोल। अब किसान भी रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती करना चाह रहा है. क्योंकि रासायनिक और केमिकल युक्त खेती करने से न केवल उनके खेत की मिट्टी खराब हो रही है, साथ ही उससे पैदा होने वाली फसल भी सेहत के लिए उतना लाभकारी नहीं होता है. ऐसे में किसान अब एक बार फिर से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. और प्राकृतिक खेती में जीवामृत किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि ये मिट्टी को सोना बना देता है. Making of Organic Pesticide
कैसे तैयार करें जीवामृत?
जीवामृत को बहुत ही आसान तरीके से और बहुत ही सस्ती लागत में बनाया जा सकता है. या यूं कहें कि जब भी आप जीवामृत बनाएंगे तो इसमें लगने वाला सामान आपके घर में ही आसानी से उपलब्ध रहता है. इनका इस्तेमाल करके आप जीवामृत तैयार कर सकते हैं. शहडोल के कृषि वैज्ञानिक डॉ बी के प्रजापति बताते हैं कि, जीवामृत बनाने के लिए किसान को मुख्य रूप से 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. फिर इसमें 10 किलो देसी गाय का गोबर ले लें, जो आसानी से किसानों के यहां मिल जाएगा. 10 लीटर गोमूत्र ले लें, 1 किलोग्राम गुड़ ले लें, 1 किग्रा बेसन, 200 ग्राम चूना और 50 ग्राम उपजाऊ मिट्टी किसी भी खेत की मिट्टी या पीपल और बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी मिल जाए तो उससे बेहतर कुछ नहीं. अब इन सभी सामग्री को एक ड्रम या बड़े बर्तन या बड़े घड़े में भर लें और उसे अच्छी तरह से मिला दें. फिर इसके बाद इस मिश्रण को हिलाकर 48 घंटे तक रख दें और फिर 48 घंटे बाद आपके खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए जीवामृत बनकर तैयार हो जाएगा.''
जीवामृत के फायदे
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के प्रजापति बताते हैं कि, जो व्यक्ति केमिकल युक्त या रासायनिक खेती नहीं करना चाहता है और जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर आना चाहता है, उसके लिए जीवामृत किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि यह आपके खेतों की उपजाऊ शक्ति बढ़ा देता है. पोषक तत्वों की भरमार कर देता है. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि, जीवामृत से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व की भरमार हो जाती है. इसे मिट्टी में डालते ही फसलों को फायदा पहुंचाने वाले जीवाणु, बैक्टीरिया, वायरस, केंचुआ, राइजोबियम बैक्टीरिया की संख्या अपने आप बढ़ने लगती है. इसके साथ ही भूमि में कार्बन की संख्या भी बढ़ती है. इससे भूमि की संरचना में सुधार होता है. जिस खेत में इसे डालते हैं वहां फसल की उपज अच्छी हो जाती है. जीवामृत का मुख्य उद्देश्य भूमि की उपज को बढ़ाना होता है. इससे भूमि में मौजूद अलग-अलग तरह के पोषक तत्व आ जाते हैं.