शहडोल। आज हम एक ऐसी काम की मशीन के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो दिखने में बहुत छोटी और सिंपल सी दिखती है, लेकिन यह आपको पैसे कमाने में बहुत ज्यादा मदद करेगी. इस मशीन की खासियत जान आप भी हैरान हो जाएंगे. साथ ही कैसे ये हर वर्ग के लोगों के लिए फायदेमंद है. इसे जानने के बाद आप भी इसे ढूंढने लग जाएंगे. जहां महुआ के पेड़ पाए जाते हैं उनके लिए ये मशीन बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है.
आदिवासियों के लिए बड़े काम की है डोरी
शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य वनांचल एरिया है. यहां के जंगलों में महुआ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं. इसके अलावा लोगों के खेतों में भी काफी तादाद में महुआ के पेड़ पाए जाते हैं. महुआ के फूल के बारे में तो हर कोई जानता है कि फूल कितना कीमती है. महुआ के फल को गांव में डोरी कहा जाता है. डोरी को लोग घर लेकर तो आ जाते हैं, लेकिन इसे सही मायने में काम के लायक बनाने के लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है, क्योंकि जो महुआ का फल होता है, उसमें दो परत होती है. ऊपरी परत हरी वाली होती है जो पकने पर आसानी से बाहर निकल जाती है. फिर उसके अंदर एक हार्ड भाग होता है, जिसे किसी दूसरी ठोस वस्तु से तोड़कर उसके अंदर के भाग को निकाला जाता है और वही काम की चीज होती है.
बड़े काम का है महुआ का फल
महुआ के फल के अच्छे दाम भी मिलते हैं, क्योंकि जो डोरी होता है, इसका बहुत औषधीय महत्व है. कई लोग इसके तेल को खाने और शरीर में लगाने पर प्रयोग करते हैं. यह तेल एक अच्छे मॉइश्चराइजर का भी काम करता है और बाजार में महंगे दामों पर बिकता है. शायद इसी वजह से डोरी के सीजन में ज्यादातर आदिवासी महुआ के पेड़ के नीचे ही मिलेंगे, क्योंकि इस सीजन में ये इनकी आय का एक बड़ा साधन भी होता है. आदिवासी वर्ग के लोग इससे अच्छे खासे पैसे भी कमा लेते हैं.
आसान नहीं है डोरी फल को निकालना
महुआ के फूल को लोग आसानी से बटोरकर व सुखाने के बाद अच्छे दामों में बेंच देते हैं, लेकिन महुआ के फल के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है. डोरी को फोड़ते हुए स्थानीय महिला रामकली बैगा ने बताया कि डोरी को काम के लायक बनाना इतना आसान नहीं होता है. जब बेंचने जाओ तो लोग खरीदते समय मोल भाव बहुत करते हैं, लेकिन इसे तैयार करने में बहुत मेहनत लगती है. सुबह-सुबह महुआ के पेड़ों से डोरी लाने के बाद दिन भर एक-एक डोरी को फोड़ते हैं. इसमें पूरे दिन में एक व्यक्ति महज 4 से 5 किलो डोरी ही फोड़ पाएगा. इसके अलावा पत्थर से फोड़ते हैं तो कई बार उनके हाथ भी कुचल जाते हैं. खाद्य वैज्ञानिक डॉ. अल्पना शर्मा बताती हैं कि ऐसे ही लोगों के लिए अब डोरी फोड़ने की एक सस्ती मशीन आ गई है, जिसे 'महुआ डिकोटिकेटर' बोला जाता है. इस मशीन का फायदा ये है कि इससे जो काम महिलाएं पत्थर से फोड़ने पर दिनभर में 4 से 5 किलो फोड़ पाती हैं, ये मशीन महज 1 घंटे में ही वह काम कर देगी. जिससे वह कम समय में ज्यादा कामकर और पैसा कमा सकती हैं.
महुआ डिकोटिकेटर मशीन