रांची: पिछले दिनों पटना में राजनीति के दो धुरंधरों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के पूर्व मंत्री सरयू राय की मुलाकात ने विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड की राजनीति में एक नई संभावनाओं को जन्म दे दिया है. अहम सवाल यह कि क्या बिहार और केंद्र की राजनीति में NDA का अहम हिस्सा के रूप में शामिल नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड, झारखंड की राजनीति में NDA से अलग होकर अपनी राजनीतिक जमीन तलाशेगा?
झारखंड की राजनीति में इस लिए भी मौजूं है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की 2014 से 2019 तक चली रघुवर दास की सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय की न सिर्फ पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात हुई, बल्कि सोशल मीडिया पर सरयू राय ने जो जानकारी शेयर की वह भी इस ओर इशारा करती है कि जदयू और भाजम के बीच चुनावी गठबंधन हो सकता है.
सरयू राय ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट X पर लिखा 'पटना मुख्यमंत्री निवास में @NitishKumar के साथ भेंट हुई. झारखंड विधानसभा के आगामी चुनाव में हमारी संभावित भूमिका के बारे में संक्षिप्त परंतु फलदायक चर्चा हुई. साथ में झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ने पर सहमति बनी. शेष चुनावी औपचारिकताओं पर जदयू नेतृत्व शीघ्र निर्णय लेगा'.
ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या झारखंड की राजनीति में विधानसभा चुनाव से पहले INDIA और NDA के बाद कोई तीसरा मोर्चा आकार लेने वाला है.
और अगर ऐसा होता है तो उसका राज्य और देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है, क्योंकि भले ही सरयू राय जिस भारतीय जनतंत्र मोर्चा नाम की पार्टी के संरक्षक हैं उसका कोई खास राजनीतिक वजूद अभी तक देखने को नहीं मिला है, लेकिन संयोग से ही सही नीतीश कुमार की जदयू क्षेत्रीय दल होकर भी केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
लोकसभा चुनाव में सुपर फ्लॉप प्रदर्शन रहा था सरयू राय की पार्टी का प्रदर्शन
भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई और रांची को एक आदर्श शहर बनाने के वादे के साथ सरयू राय की पार्टी भारतीय जनतंत्र मोर्चा (भाजम) ने 2024 लोकसभा आम चुनाव में सिर्फ एक लोकसभा सीट रांची पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी के अध्यक्ष धर्मेंद्र तिवारी के खुद मैदान में उतरने के बावजूद भाजम को महज 3094 मत ही मिले थे और उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गयी थी.
एक समय में मजबूत हुआ करता था झारखंड में जदयू का जनाधार
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड का जनाधार मजबूत हुआ करता था. जलेश्वर महतो, खीरु महतो, लालचंद महतो जैसे कई कुड़मी समुदाय के बड़े नेता, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रहे उदयनारायण चौधरी की बहन सुधा चौधरी और राजा पीटर झारखंड में NDA की सरकार में मंत्री भी रहे, लेकिन धीरे-धीरे कई दिग्गज नेताओं ने दल छोड़ दिया और संगठन कमजोर होता चला गया. 2014 और 2019 में झारखंड विधानसभा में एक भी विधायक जदयू का नहीं है.
सिर्फ सरयू-नीतीश की जोड़ी नतीजों में कोई बड़ा उलटफेर कर दें, इसकी संभावना बेहद कम
झारखंड की राजनीति को बेहद करीब से देखने और समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जदयू और भाजम मिलकर कोई बड़ा उलटफेर विधानसभा चुनाव के नतीजों में कर दे इसकी संभावना बेहद नगण्य है. संभावना इस बात की ज्यादा है कि साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर अगर जदयू की ओर से फाइनली सहमति मिल जाती है तब सरयू राय उन छोटे-छोटे चंक या ब्लॉक वाले दल को साथ लेने की कोशिश शुरू कर देंगे जो अभी तक राज्य की राजनीति में न तो NDA में हैं और न ही INDIA में. अगर जयराम महतो की पार्टी JKBSS, सीपीआई, सीपीएम झापा जैसी पार्टियों और व्यक्तिगत जनाधार वाले नेताओं को साथ जोड़ पाते हैं तब यह राज्य की राजनीति में कुछ नया हो सकता है.
सरयू-नीतीश की संभावित तीसरे मोर्चे पर क्या है झारखंड के राजनीतिक दलों की सोच