लातेहारः जिला सदर प्रखंड के भूसूर पंचायत स्थित सरइडीह गांव के ग्रामीणों ने अपने गांव तक पहुंचने के लिए श्रमदान से कच्ची सड़क का निर्माण आरंभ किया है. आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस गांव में पहुंचने के लिए आज तक सरकारी स्तर पर सड़क नहीं बनाई गई है. सरकारी तंत्र और जनप्रतिनिधियों की विकास के प्रति उदासीनता से तंग आकर यहां के ग्रामीणों ने खुद ही अपने गांव तक सड़क निर्माण करने का संकल्प लिया है.
एक तरफ तो सरकारी तंत्र के द्वारा गांव-गांव तक विकास की बात कह अपनी पीठ खुद ही थपथपाई जाती है. लेकिन अभी भी कई ऐसे गांव हैं जहां सरकारी तंत्र के द्वारा बुनियादी सुविधाओं को भी बहाल नहीं किया जा सका है. इसी प्रकार का एक गांव लातेहार सदर प्रखंड का सरइडीह गांव है. पूरी तरह आदिवासी बहुल इस गांव में पहुंचने के लिए आज तक एक सड़क का निर्माण भी नहीं हो पाया है.
लातेहार जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रहने के बावजूद इस गांव में रहने वाले लोग गांव तक पहुंचने के लिए एक सड़क के लिए तरस रहे हैं. वर्तमान में स्थिति है कि गांव तक पहुंचने के लिए मात्र पगडंडी ही सहारा है. ग्रामीणों को अपने गांव तक पहुंचाने के लिए लगभग 1 किलोमीटर तक पगडंडी पर चलना पड़ता है. बरसात के दिनों में तो यहां के ग्रामीणों का जीवन पूरी तरह नारकीय बन जाता है. ऐसे में गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल लाने के लिए ग्रामीणों को आज भी प्राचीन जमाने की तरह खटिया या डोली का सहारा लेना पड़ता है.
सरकार, प्रशासन और प्रतिनिधियों से नहीं मिला सहारा
ग्रामीणों के द्वारा पिछले कई वर्षों से लगातार सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से सड़क के लिए गुहार लगाई गयी. लेकिन आज तक गांव में पहुंचने के लिए कहीं से एक सड़क का निर्माण नहीं कराया गया. अंत में हार कर यहां के ग्रामीणों ने खुद ही श्रमदान कर गांव तक पहुंचाने के लिए काम चलाऊ कच्ची सड़क निर्माण करने का संकल्प लिया. ग्रामीणों ने गांव में चंदा किया और मोरम मिट्टी खरीद कर गांव तक किसी प्रकार पहुंचने के लिए श्रमदान से सड़क का निर्माण आरंभ कर दिया.
ग्रामीण करीमन सिंह, नागेंद्र उरांव, सीता देवी समेत अन्य लोगों ने बताया कि गांव में पहुंचने के लिए सड़क नहीं होने के कारण बरसात के दिनों में ग्रामीणों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. गांव में आना-जाना इतना मुश्किल हो जाता है कि अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल भी पहुंचने में ग्रामीणों को पसीने छूटने लगते हैं. जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों से भी कई बार गुहार लगाई गई कि गांव में सड़क का निर्माण करवाया जाए पर आज तक किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया. मजबूरी में उन लोगों के द्वारा गांव में ही चंदा करके श्रमदान से मिट्टी मोरम सड़क का निर्माण कराया जा रहा है.