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दिव्यांग जागेश्वरी के फौलादी हौसले, पैरों से लिखकर तय किया यूनिवर्सिटी का सफर - Sagar Jageshwari Struggle Story

किसी भी सपने को पूरा करने के लिए हौसलों की जरूरत होती है. इसी हौसले के साथ जागेश्वरी अपने सपने को पूरा करने में जुटी हुई है. आर्थिक तंगी और दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी जागेश्वरी ने हिम्मत नहीं हारी है, वह मेहनत कर यूनिवर्सिटी पहुंच गई और डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना देख रही है.

SAGAR JAGESHWARI STRUGGLE STORY
दिव्यांग जागेश्वरी के फौलादी हौसले (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 2, 2024, 7:45 PM IST

Updated : Aug 2, 2024, 11:00 PM IST

सागर। कहते हैं कि इरादे बुलंद हो, तो कोई भी मुश्किल आपके रास्ते में बाधा नहीं बन सकती है. ऐसा ही कमाल सागर यूनिवर्सिटी में बीए की छात्रा जागेश्वरी ने कर दिखाया है. दरअसल, जागेश्वरी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है, लेकिन जागेश्वरी ने अपने परिवार की गरीबी और खुद की दिव्यांगता को कमजोरी ना बनाते हुए पैरों से लिखना सीखा और हायर सेंकडरी तक पढ़ाई कर सागर यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. फिलहाल जागेश्वरी बीए सेकंड ईयर की छात्रा है और ग्रेजुएशन के बाद पीएससी परीक्षा के जरिए डिप्टी कलेक्टर बनना चाहती है. जागेश्वरी के मजबूत इरादे देखकर कई लोग आर्थिक मदद के लिए आगे आए हैं.

दिव्यांग जागेश्वरी के फौलादी हौसले (ETV Bharat)

कौन है जागेश्वरी

बुंदेलखंड के पन्ना जिले के नादन गांव में जन्मी जागेश्वरी गर्ग फिलहाल डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में बीए की छात्रा है. जागेश्वरी गर्ग के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है. जागेश्वरी के पिता शालिकराम गर्ग एक मंदिर के पुजारी हैं. एक तरफ दिव्यांगता और दूसरी तरफ परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद जागेश्वरी ने हौसला नहीं खोया. बचपन से ही पैरों से लिखना सीख कर जागेश्वरी ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और फिर सागर के डॉक्टर हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय में बीए में प्रवेश लिया है.

जागेश्वरी गर्ग (ETV Bharat)

जागेश्वरी नाम की कहानी

जागेश्वरी गर्ग की मां आरती गर्ग का कहना है कि 'जागेश्वरी का जब जन्म हुआ था. तभी से उसके दोनों हाथ नहीं है. इसलिए उसके दादा ने उसका नाम जागेश्वरी रखा. जागेश्वरी के दादा का कहना था कि भगवान जगन्नाथ के भी हाथ नहीं थे. इसीलिए उनके नाम की तरह जागेश्वरी का नाम रखा है. दोनों हाथ न होने के कारण जागेश्वरी को पढ़ाई को लेकर हम लोगों ने दबाव नहीं बनाया, लेकिन दूसरे बच्चों को स्कूल जाता देखकर जागेश्वरी स्कूल जाने की जिद करने लगी और जब स्कूल पहुंची, तो सभी बच्चे अपने हाथ से लिखते थे. हाथ न होने के बावजूद जागेश्वरी ने कड़ी मेहनत करके पैरों से लिखना सीखा.

दिव्यांग जागेश्वरी के फौलादी हौसले (ETV Bharat)

यूनिवर्सिटी की हॉस्टल छोड़ने की मजबूरी

जागेश्वरी ने कड़ी मेहनत करके पढ़ना लिखना तो सीख लिया, लेकिन दोनों हाथ न होने के कारण कई कामकाज में उसको दिक्कत आती है और घर वालों की मदद लेना पड़ती है. पन्ना से आकर सागर यूनिवर्सिटी की हॉस्टल में जागेश्वरी के लिए मदद की जरूरत महसूस हुई और उसने विश्वविद्यालय से अपनी मां को हॉस्टल में साथ में रखने की अनुमति मांगी, लेकिन विश्वविद्यालय के नियमों के तहत गर्ल्स हॉस्टल में किसी को रहने की अनुमति नहीं होती है. तो विश्वविद्यालय प्रशासन चाहकर भी जागेश्वरी को अनुमति नहीं दे सका. ऐसे में जागेश्वरी अब किराए का कमरा लेकर शहर में रहना चाहती है, ताकि उसकी मां साथ में रह सके.

पैरों से लिखकर तय किया यूनिवर्सिटी का सफर (ETV Bharat)

सपने साकार करने में गरीबी आ रही आड़े

जागेश्वरी गर्ग ग्रेजुएशन करने के बाद पीएससी का एग्जाम देखकर डिप्टी कलेक्टर बनना चाहती है. डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए उसे किताबें और कोचिंग की जरूरत महसूस हो रही है. ऐसी स्थिति में उसकी पारिवारिक हालत आड़े आ रही है. शहर में रहने के लिए किराए से कमरा लेना है, ताकि मां साथ रह सके. वहीं प्रतियोगिता की परीक्षाओं की किताबें खरीदने के साथ कोचिंग के लिए भी आर्थिक तंगी आगे आ रही है.

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मदद के लिए आगे बढ़े हाथ

जब जागेश्वरी की परेशानी और बुलंद इरादों के बारे में स्थानीय लोगों को पता चला, तो युवा ब्राह्मण समाज मध्य प्रदेश के अध्यक्ष भरत तिवारी ने जागेश्वरी को शहर में कमरे की व्यवस्था की और उसका किराया भरत तिवारी ही अदा करेंगे. इसके अलावा सागर में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निजी कोचिंग के संचालक ने पीएसीसी की तैयारी के लिए जागेश्वरी गर्ग को निशुल्क प्रशिक्षण देना शुरू किया है. कोचिंग संस्थान में भी जागेश्वरी से किसी तरह की फीस नहीं ली जा रही है.

Last Updated : Aug 2, 2024, 11:00 PM IST

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